'आस्था'
नवरात्रि में पूजा के नौ दिन ही क्यों मनाये जाते हैं
कथावाचक - पं. आशीष शर्मा
'हमसफ़र मित्र न्यूज़'
पार्वती, शंकर से प्रश्न करते हैं कि "नवरात्र किसे कहते हैं!" शंकर उन्हें प्यार समझाते हैं-
नव शक्तिभि: संयुक्त राष्ट्रं तदुच्यते,* *एकैक देव-देवेषि! नवधा परितिष्ठता।
अर्थात् नवशक्तियाँ नवशक्तियों से संयुक्त है। इसकी प्रत्येक तिथि को एक-एक शक्ति के पूजन का विधान है।
साल में चार नवरात्रि होती हैं। चार में दो गुप्त नवरात्रि और दो सामान्य होती हैं। आम तौर पर पहली बार आश्विन चैत्र माह में आती है जबकि दूसरी बार आश्विन चैत्र माह में आती है। चैत्र माह की नवरात्रि को बड़ी या आश्विन माह की नवरात्रि को छोटी या शारदीय नवरात्रि कहा जाता है। आषाढ़ और माघ मास में गुप्त नवरात्रि आती है।
गुप्त नवरात्री साधनाओं के लिए अनुकरणीय है जबकि सामान्य नवरात्री शक्तियों की साधना के लिए। नवरात्रि में साधनाओं का प्रभाव बहुत अधिक होता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि नवरात्रि में पूजन के 9 दिन ही होते हैं? जब नवरात्रि में पूजा पाठ इतना महत्वपूर्ण होता है तो 9 दिन से अधिक की नवरात्रि क्यों नहीं बनती?
प्रकृति में महत्वपूर्ण परिवर्तन और विशेषता: प्रकृति में विशेष प्रकार का परिवर्तन होता है और ऐसे समय में हमारे आंतरिक व्यक्तिगत शरीर में भी परिवर्तन होता है। प्रकृति और शरीर में स्थित शक्ति को समझने से ही शक्ति के रहस्य का भी महत्वपूर्ण बोध होता है। असल में चैत्र और आश्विन के नवरात्रि का समय ऋतु परिवर्तन का समय है। ऋतु-प्रकृति का हमारे जीवन, ध्यान एवं धर्म में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। इसलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने बहुत ही सोच-विचार कर बताया और गर्मी की इन दोनों महत्वपूर्ण ऋतुओं के मिलन या संधिकाल को नवरात्रि का नाम दिया। यदि आप कहते हैं कि नौ दिन यानी 18 दिन का त्याग कर भक्ति करते हैं तो आपका शरीर और मन पूरे साल स्वस्थ और निश्चिन्त रहता है।
नौ दिनों में जो व्यक्ति अन्न का पूर्ण त्याग कर माता की भक्ति या ध्यान करता है, उसकी सभी प्रकार की मनोस्थिति हो जाती है। या, वह जो भी संकल्प लेकर नौ दिन की साधना करता है उसका यह संकल्प पूर्ण हो जाता है। इस दौरान कठिन साधना के ही नियम हैं। मन से कुछ लोग व्रत या उपवास रखते हैं, जो अनुचित है। जैसे कुछ लोग सामान छोड़ देते हैं, कुछ लोग बस सिर्फ सामान ही ले जाते हैं जो कि अनुचित है। शास्त्र सम्मत व्रत ही होते हैं।
साधना का समय : एक अंक में नौ अंक पूर्ण होता है। नौ के बाद कोई अंक नहीं होता। चिन्हों में नौ चिन्हों को महत्वपूर्ण माना जाता है। फिर साधना भी नौ दिन की ही आदर्श मानी जाती है। किसी भी मनुष्य के शरीर में सात चक्र होते हैं जो जागने पर मोक्ष का मार्ग प्राप्त करते हैं। नवरात्रि के नौ दिनों से लेकर 7 दिनों तक चक्रों को जागृत करने की साधना की जाती है। 8 वें दिन शक्ति की पूजा की जाती है। नौवा दिन शक्ति की सिद्धि होती है। शक्ति की सिद्धि अर्थात हमारे अंदर की शक्ति जागृत होती है। यदि सप्तचक्रों के दर्शन हों तो यह दिन कुंडलिनी देवता का माना जाता है।
इसलिए इन नौ दिनों में हिंदू धर्म ने माता के नौ सिद्धांतों को जोड़ा है। शक्ति के इन नौ सिद्धांतों को ही मुख्य रूप से पूजा माना जाता है। ये नौ रूप हैं- शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा देवी, कूष्मांडा देवी, स्कंद माता, कात्यायनी, मां काली, महागौरी और सिद्धिदात्री।
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