कानपुर के पास भयंकर रेल हादसा, सुनकर रूहों कंप जाएगा
'हमसफर मित्र न्यूज'
कानपुर के पास पुखरायां गांव में हादसे का शिकार हुई इंदौर-पटना एक्सप्रेस में कर्इ परिवार उजड़ गए। ऐसी ही एक कहानी है भोपाल के सत्येंद्र सिंह की। वे पत्नी और बेटी के साथ ट्रेन के बी3 कोच में सफर कर रहे थे। इस कोच में जिंदा बचने वाले वे इकलौते शख्स हैं। उनकी पत्नी और बेटी दोनों हादसे में मारी गईं। हादसे के बाद आधे घंटे तक सत्येंद्र अपनी बेटी रागिनी की मदद की पुकार सुनते रहे। ट्रेन के डिब्बों के नीचे दबी रागिनी कहती रही, ”पापा, बचाओ… कोई है। बचाओ।” लेकिन सत्येंद्र कोई मदद नहीं कर पाए क्योंकि वे खुद टूटे डिब्बों के नीचे दबे हुए थे। ना तो वे अपनी बेटी तक पहुंच पाएं। उनसे कुछ ही दूरी पर आंखों के सामने रागिनी ने दम तोड़ दिया। सत्येंद्र की पत्नी की भी इस हादसे में मौत हो गई।
उनके बेटे ने बताया कि पापा अपनी एक अंगुली तक नहीं हिला सकते। उनका चेहरा लोहे के टुकड़ों के चलते बुरी तरह से मुड़ गया है। उनकी नाक में फ्रेंक्चर है और बमुश्किल सांस ले पा रहे हैं। उनकी टांगों और हाथों को भी काफी नुकसान पहुंचा है। सत्येंद्र सिंह को उनकी बेटी की मौत के चार घंटे तक बाद निकाला गया। सोमवार को उन्हें बताया गया कि वे बेटी के साथ पत्नी गीता को भी खो चुके हैं। उन्हें कानपुर से भोपाल एंबुलेंस में लाया गया। यहां पर उनकी आंखों से लगातार आंसू बहते रहे। ऐसी ही अवस्था में उन्होंने पत्नी की मांग में सिंदूर भरा क्योंकि गीता की मौत सुहागन के रूप में हुई थी। इसके बाद सत्येंद्र ने बेटी को आखिरी बार आशीर्वाद दिया। इस दौरान वहां मौजूद सैंकड़ों अन्य लोग भी रो पड़े। इसके बाद सत्येंद्र को अस्पताल ले जाया गया। वहां उनका ब्लड क्लॉट का ऑपरेशन किया जाएगा।
उनका बेटा अजय दिल्ली में काम करता है। उन्होंने बताया कि जिस समय हादसा हुआ उस समय सब लोग सो रहे थे। उनके पिता लोअर बर्थ, मां मिडिल बर्थ और बहन दूसरी तरफ निचली बर्थ पर थी। गौरतलब है कि पटना-कानपुर ट्रेन पुखरायां गांव के पास पटरी से उतर गई थी। इस हादसे में 150 के करीब लोगों की मौत हुई है। वहीं सैंकड़ों अन्य घायल हुए हैं।
'जनसत्ता' न्यूज से साभार
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