शराबबंदी की मांग और मानव समाज की हकीकत : कौशिक
पं. गणेशदत्त राजू तिवारी
'हमसफर मित्र न्यूज'
राजसत्ता से या फिर राजनीतिक दलों से शराबबंदी लागू करने की मांग करना कितना अच्छा लगता हैं। ऐसा लगता हैं कि यदि यह मांग पूरी हो जाय तो राज्य में एक आदर्श मानव समाज का नया युग प्रारम्भ हो जायेगा। राजसत्ता द्वारा शराब के विक्रय को पोषित करने पर नागरिक पक्ष के द्वारा सीधा आरोप लगाया जाता हैं कि व्यक्ति, परिवार, समाज और राज्य की बर्बादी का एकमात्र कारण शराबखोरी ही है।
कोरोनाकाल ने एक बात जरूर बता दिया कि राजसत्ता चाहे शराबबंदी लागू कर दें, या चाहे शराबखोरी पर कड़े से कड़ा कानून बना दें पर शराब पीने की लत इतनी आसानी से छूटने वाली नहीं हैं। ऐसी जानलेवा महामारी के बावजूद लोग अवैध शराब बना रहे हैं, तस्करी कर रहे हैं, बेच रहे हैं, खरीद रहे हैं और पी रहे हैं ; वह भी कई गुने दाम पर । साथ ही शराब नहीं मिलने पर अन्य घातक रसायनों का सेवन करने से नहीं चुक रहे हैं चाहे इसका अंजाम मौत ही क्यों ना हो ।
छत्तीसगढ़ की मौजूदा सरकार ने सत्ता में आने से पहले राज्य में शराबबंदी लागू करने की बात कही थी। परंतु मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इस विषय पर अपने सरकार की नीति को पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि "छत्तीसगढ़ में शराबबंदी नोटबंदी की तरह यकायक लागू नहीं किया जाएगा" । उन्होंने इस विषय पर समाजशास्त्रीय अध्ययन को खास अहमियत दी। उनके तड़ाकभड़ाक शराबबंदी लागू नहीं करने के पीछे राज्य के बौद्धिक विचारकों की भूमिका है या अन्य समाजशास्त्रियों का या फिर उनके खुद का ! पर जो भी रहे आज हर कोई कह सकता है कि भूपेश सरकार ने इस मामले में बिल्कुल सही दृष्टिकोण अपनाया हैं।
भारत में जहाँ लोकतंत्र हैं और संवैधानिक शासन व्यवस्था हैं वहाँ या उसके किसी राज्य में विधि के शासन के ऊपर माफियाराज कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता। ज़रा गौर करें तो साफ दिखाई पड़ता हैं कि जिन राज्यों ने शराबबंदी लागू कर दी हैं वहाँ शराबखोरी अब भी जारी हैं। वहाँ शराबों की अवैध आपूर्ति बदस्तूर जारी हैं। ये अवैध आपूर्ति चाहे नेता करें या अधिकारी या फिर बिजनेस सिंडिकेट ; इसे विधि का शासन तो नहीं कह सकते, यकीनन यह माफियाराज ही कहा जायेगा। सभी जानते हैं कि माफियाराज में किसी वस्तु का न्यूनतम मूल्य नहीं बल्कि अधिकतम मूल्य चुकाना पड़ता हैं और मुनाफा सरकार के खजाने में नहीं बल्कि माफियाओं के जेब में जाता हैं।
नशे की शुरुआत व्यक्ति करता हैं और उसका पहला दुष्प्रभाव उसी के मानसिक, शारीरीक एवं आर्थिक स्थिति को झेलना पड़ता हैं। फिर परिवार, मोहल्ला और समाज उसके दुष्प्रभाव की चपेट में आता हैं।
सर्वजनकथन "शराब एक सामाजिक बुराई हैं ।" बिल्कुल सही कथन हैं। तो इसके समाधान के लिए सत्ता कैसे पूर्णतः उत्तरदायी हो सकता हैं ? सामाजिक बुराई को दूर करने में समाज की भूमिका निर्णायक होनी चाहिये कि सरकार की? समाज संकल्पित होकर परिवर्तन का शंखनाद करें और सरकार विधि , शासन एवं संसाधन के द्वारा अनुकूल वातावरण का निर्माण करें तभी इस सामाजिक असाध्य रोग को दूर किया जा सकता हैं अन्यथा कभी नहीं।
आपका
Jagdish kaushik
Ex President Municipal Bodari,
Motivational Speaker, Social Activist
& Dedicated Congressman
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