छत्तीसगढ़ के लोकप्रिय पर्व छेरछेरा आज - HUMSAFAR MITRA NEWS

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Thursday, January 28, 2021

 

छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोक पर्व छेरछेरा की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं 

आलेख - 'पं. गणेशदत्त राजू तिवारी', मल्हार 

'हमसफर मित्र न्यूज'। 


..छत्तीसगढ़ की लोकसंस्कृति यहाँ के लोकमानस मे लोक रंगों की अनेक विधाएं है जो यहाँ के लोकजीवन का सहज चित्रण करती है| छत्तीसगढ़ मे वर्ष भर तरह - तरह के जनश्रुति से जुड़े त्योहार मनाये जाते है | पूष माह की पूर्णिमा को यहाँ समूचे प्रदेश में "छेरछेरा" का त्योहार पारम्परिक हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है , यह छत्तीसगढ़ की कृषि प्रधान संस्कृति और ग्रामीण जनजीवन में सम्पन्नता और समानता में समन्वय की भावना को प्रकट करता है | "छेरछेरा ,माई कोठी के धान हेर हेरा " के सामुहिक घोष के साथ बच्चे-बड़े मनना आरंभ करते हैं इस त्योहार को मनाना । गाँव ही नहीं शहरी क्षेत्रों में भी मनाया जाता है यह त्योहार । समूचे देश में छत्तीसगढ़ को " धान का कटोरा " के नाम से जाना जाता है ।

छत्तीसगढ़ में यह पर्व नई फसल के खलिहान से घर आ जाने के बाद मनाया जाता है। इस दौरान लोग घर-घर जाकर लोग धान जो इस प्रदेश की मुख्य फ़सल है , वह मुट्ठी भर माँगते हैं । जिसकी जितनी समाई होती होती है वह अपने द्वार आने वाले को उतना धान दान देता है । यहाँ यह दान सभी छोटे-बड़े , सभी वर्ग के लोग देते - लेते हैं । इसके पीछे की कथा रतनपुर के महाराजा कल्याण साय के इस दिन अपने राज्य वापस लौटने की खुशी से जुड़ी है । आठ वर्षों बाद महाराज दिल्ली से वापस अपनी राजधानी रतनपुर (अब बिलासपुर जिला में )लौटे थे , जिसकी खुशी में राज्य में धन-धान्य लुटाया गया था । राज कोष के अलावा प्रजा ने भी अपना धन-धान्य , कोठियों में रखा - जमा किया हुआ धान दान कर खुशी का इजहार किया था । इस सब को देखकर प्रसन्न हो कर महराज ने यह घोषणा की थी कि अब से हर वर्ष इसी तिथी को "छेरछेरा" पर्व मनाया जाएगा । तभी से प्रतिवर्ष यह त्योहार लोक परंपरा के अनुसार पौष माह की पूर्णिमा को " छेरछेरा पुन्नी " के नाम से मनाया जाता है। इस दिन सुबह से ही बच्चे, युवक व युवतियाँ हाथ में टोकरी, बोरी आदि लेकर घर-घर छेरछेरा माँगते हैं। वहीं युवकों की टोलियाँ डंडा नृत्य कर घर-घर पहुँचती हैं। धान मिंसाई हो जाने के चलते गाँव में घर-घर धान का भंडार होता है, जिसके चलते लोग छेर छेरा माँगने वालों को मुक्त हस्त दान देते हैं। इसी त्योहार में छत्तीसगढ़ के तमाम जमीदारों - दाऊ कहे जाने वाले सम्पन्न लोगों ने जरूरतमंदों - ब्राह्मणों को जमीन -जायदाद आदि भी दान दिया है । मंदिर-देवालय बनवाये हैं ।बहुत ही समृद्धशाली है छत्तीसगढ़ में छेरछेरा पुन्नी का इतिहास । इस दिन लोग इतने प्रसन्न बदन देखे जाते कि वे इस त्योहार के दिन कामकाज पूरी तरह बंद रहते हैं - पूरे दिन इस त्योहार की उमंग - तरंग में खोए रहते हैं । इस दिन लोग प्रायः गाँव छोड़कर बाहर नहीं जाते ।


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