संहिता संसोधन किए बिना तहसीलदार को नामांतरण दर्ज करने का आदेश जारी - HUMSAFAR MITRA NEWS

Advertisment

Advertisment
Sarkar Online Center

Breaking

Followers


Youtube

Monday, October 5, 2020

 

संहिता में संशोधन किए बिना तहसीलदार को नामांतरण दर्ज करने का आदेश जारी …

पं. गणेशदत्त राजू तिवारी। 




'हमसफर मित्र न्यूज'। 

रायपुर (रामगोपाल भार्गव) | किसी भी कानून में फेरबदल करने का अधिकार विधायिका यानी विधानमंडल, मंत्रिमंडल को है। पिछले शासनकाल में भी ऐसा होता रहा है, उच्च अधिकारी ऐसे-ऐसे फरमान निकालते रहे हैं जो कि विधायिका के अधिकार का हनन करते हैं।


ऐसा ही एक आदेश राजस्व सचिव ने पिछले दिनों जारी किया है। जिसके अनुसार भूमि का नामांतरण दर्ज करने का अधिकार तहसीलदार को दे दिया गया है। वे ही दर्ज भी करेंगे और पास भी करेंगे। जबकि भू-राजस्व संहिता 1959 की धारा 109, 110 में इस बात का उल्लेख है कि गांव में जो भी खरीद-बिक्री, फौती, बंटवारा होगा उसका नामांतरण पटवारी द्वारा नियत की गई पंजी में दर्ज करेगा और तहसीलदार के माध्यम से गांव में इसका प्रकाशन किया जाएगा। तत्पश्चात दावा-आपत्ति के आधार पर तहसीलदार या पंचायत नामांतरण को पास करेंगे। ऐसा ही होता रहा है। 


इससे ग्राम स्तर पर पुष्टि हो जाती थी और भूमि बिक्री हुई है या नहीं हुई है इसका पता चल जाता था। ग्रामीणों को सुविधा होती थी। क्योंकि ग्राम स्तर पर ही काम निपट जाता था। ऑनलाइन के नाम पर नामांतरण दर्ज करने का काम तहसीलदार को दे दिया। इससे ग्रामीण जन तहसील कार्यालय के चक्कर काटेंगे। रुपए-पैसे खर्च होंगे सो अलग। जिस प्रकार ग्रामीणों को सुविधा देने का प्रयास भूपेश सरकार कर रही है यह आदेश इसके उलट है।


ग्राम पंचायत के अधिकारों का हनन

इस आदेश से ग्राम पंचायत अधिनियम में प्रदत ग्राम पंचायत को नामांतरण पास करने का अधिकार समाप्त हो गया। बता दें कि अविवादित नामांतरण का निपटारा ग्रामीण स्तर पर ग्राम पंचायत ही निपटा देते थे। ग्रामीणों को गांव के बाहर जाना नहीं पड़ता था।


इस आदेश से क्या प्रभाव पड़ेगा?

जिस प्रकार संहिता की धारा 109, 110 संशोधन किए बिना आदेश जारी किया गया है। इससे तहसीलदारों पर कार्य का बोझ बढ़ेगा। जो दायित्व पटवारियों को दिया गया था वे इससे बरी हो जाएंगे। गलत नामांतरण पास होने की संभावना बढ़ जाएगी। क्योंकि विवाद की पुष्टि, प्रकाशन, पास करना सब तहसीलदार ही करेंगे।


नामांतरण पंजी भौतिक रूप से उपलब्ध नहीं होगा

अब तक यह होता रहा कि ऑफलाइन नामंत्रण पंजी होने के कारण आज से 100 साल पूर्व के नामांतरण की जांच करना संभव था और उस आधार पर न्यायालयीन फैसले लिए जाते थे। ऑनलाइन होने के बाद यह सब संभव नहीं रहेगा। क्योंकि अब नामांतरण पंजी भौतिक रूप से उपलब्ध नहीं हो सकेगा।


तो इसका फायदा किसको होगा?

इसका फायदा सिर्फ और सिर्फ भू माफियाओं, जमीन दलालों को होगा जो एग्रीमेंट या मुख्तारनामा के आधार पर ग्रामीणों से जमीन खरीदेंगे और बाहरी ही बाहर नामंत्रण पास हो जाएगा। ग्रामीण इलाकों में नेटवर्क और शिक्षा की कमी के कारण उन्हें अपने साथ होने वाले छल का पता नहीं चलेगा। अपुष्ट खबरों के अनुसार ऐसे आदेश निकालने के पीछे बड़े बिल्डर भूमि माफियाओं का हाथ होने से इनकार नहीं किया जा सकता। क्योंकि ऑफलाइन नामांतरण पंजी नहीं होने के कारण इसकी जांच भी संभव नहीं होगी।


कर्मचारी अधिकारियों का ओपिनियन

ऐसी जानकारी मिली है कि पटवारी इस पर मौन है वह ना तो इस आदेश का विरोध कर रहे हैं ना ही समर्थन। लेकिन तहसीलदारों द्वारा इस आदेश पर रोश जताने की सूचना है वे चाहते हैं कि धारा 109, 110 के अनुसार ऑफलाइन पंजी भी बनी रहे तथा पूर्ववत पटवारियों को दायित्व सौंपा जाए।


क्या इससे पूर्व भी ऐसे आदेश निकल हैं?

सरकार को सूचना दिए बगैर इससे पहले भी नियम विपरीत आदेश जारी किए गए हैं। इससे पूर्व राजस्व विभाग में ही एक आदेश जारी हुआ था जिसमें शामिल बटा खसरा नंबर को एक करते हुए 15000 नंबर जारी दिए जाने का आदेश दिया गया। कई जगह है इस आदेश का पालन भी किया गया। ऐसा करने के कारण मूल खसरा बटा नंबरों का अस्तित्व खत्म हो गया। इससे माफियाओं द्वारा फर्जी काम करने की गुंजाइश बढ़ गई। यह  आदेश भी भू राजस्व संहिता 1959 में संशोधन किए बिना सचिव स्तर पर जारी किया गया था।

No comments:

Post a Comment