पितृपक्ष का अर्थ - HUMSAFAR MITRA NEWS

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Wednesday, September 2, 2020

 पितृपक्ष अर्थात श्राद्ध पक्ष 


श्राद्ध   अर्थात  श्रद्धार्थ मिदं  श्राद्धम।                           श्रध्दया इदं श्रादध्म।     

                   

 पंडित श्री प्रदुम्न जी महाराज मुढीपार ९९२६२७३७७३।     

          पितरो की पूजा को साक्षात भगवान विष्नु की पूजा माना ही गया है     जैसे मनुष्य का आहार अन्न है  पशुओं का आहार तृन है  वैसे ही पितरो का आहार अन्न का सार तत्व      गंध और रस है          अतः  पितर अन्न  व जल का सारतत्त्व ही ग्रहण करते है  शेष जो स्थूल वस्तु है  वह यही रह जाती है  जीव अलग अलग कर्मो के कारण मरने की जो गति होती है   कोई दिब्य जीव  कोई देवता  कोई प्रेत  कोई हाथी कोई घोड़ा  कोई चींटी  कोई तृन बन जाता है       नाम और गोत्र के उच्चारण के साथ जो अन्न  जल आदि पितरो को दिया जाता है    भगवान विश्वदेव एवं  अग्निस्वत के कारण  अ यरमा नाम के    दिब्य पितर      हव्य  और कव्य    को पितरो तक पहुचा देते है   यदि पितर देवयोनि को प्राप्त हुए है तो  दिया गया अन्न  उन्हें  अमृत होकर प्राप्त होता है  यदि गंधर्व  बन गए है तो वह अन्न उन्हें भोगो के रूप में मिलता है  यदि पशु योनि में है हो  तृण के रूप मे मिलता है  नाग योनि पितरो को वायु के रूप में  रक्छास योनि को आमिष के रूप  इस प्रकार से अ यरमा नामक के  पितर अ यरमा लोक में देते है            पितर  अपने पुत्र और पौत्र के द्वारा    दिया गया जलांजी तिलांजी  होम को ग्रहण करके  शुभ  आशिर्वाद देते है ।              जै श्री राम                       

   पंडित श्री पदुमन महराज जी

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