पितृपक्ष श्राद्ध की जानकारी
पं. गणेशदत्त राजू तिवारी जी महाराज का कालम, मल्हार
'हमसफर मित्र न्यूज'।
पितृ पक्ष पन्द्रह दिन की समयावधि होती है जिसमें हिन्दु जन अपने पूर्वजों को भोजन अर्पण कर उन्हें श्रधांजलि देते हैं।
पितृ पक्ष भाद्रपद के चन्द्र मास में पड़ता है और पूर्ण चन्द्रमा के दिन या पूर्ण चन्द्रमा के एक दिन बाद प्रारम्भ होता है।
पञ्चाङ्ग के अनुसार पितृ पक्ष अश्विन के चन्द्र मास में पड़ता है और भाद्रपद में पूर्ण चन्द्रमा के दिन या पूर्ण चन्द्रमा के अगले दिन प्रारम्भ होता है।
यह चन्द्र मास की सिर्फ एक नामावली है जो इसे अलग-अलग करती हैं।
01सितम्बर (मंगलवार) पूर्णिमा श्राद्ध
02 सितम्बर (बुधवार) प्रतिपदा श्राद्ध
03 सितम्बर (बृहस्पतिवार) द्वितीया श्राद्ध
05 सितम्बर (शनिवार) तृतीया श्राद्ध
06 सितम्बर (रविवार) चतुर्थी श्राद्ध
07 सितम्बर (सोमवार) महा भरणी, पञ्चमी श्राद्ध
08 सितम्बर (मंगलवार) षष्ठी श्राद्ध
09 सितम्बर (बुधवार) सप्तमी श्राद्ध
10 सितम्बर (बृहस्पतिवार) अष्टमी श्राद्ध
11 सितम्बर (शुक्रवार) नवमी श्राद्ध
12 सितम्बर (शनिवार) दशमी श्राद्ध
13 सितम्बर (रविवार) एकादशी श्राद्ध
14 सितम्बर (सोमवार) द्वादशी श्राद्ध
15 सितम्बर (मंगलवार) मघा श्राद्ध, त्रयोदशी श्राद्ध
16 सितम्बर (बुधवार) चतुर्दशी श्राद्ध
17 सितम्बर (बृहस्पतिवार) सर्वपित्रू अमावस्या
पितृ पक्ष का अन्तिम दिन सर्वपित्रू अमावस्या या महालय अमावस्या के नाम से जाना जाता है। पितृ पक्ष में महालय अमावस्या सबसे मुख्य दिन होता है।
कौन कहलाते हैं पितर
जिस किसी के परिजन चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित हों, बच्चा हो या बुजुर्ग, स्त्री हो या पुरुष उनकी मृत्यु हो चुकी है उन्हें पितर कहा जाता है। पितृपक्ष में मृत्युलोक से पितर पृथ्वी पर आते है और अपने परिवार के लोगों को आशीर्वाद देते हैं। पितृपक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए उनको तर्पण किया जाता है। पितरों के प्रसन्न होने पर घर पर सुख शान्ति आती है।
श्राद्ध पक्ष
हिंदू धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व होता है। पितृपक्ष के 15 दिन पितरों को समर्पित होता है। शास्त्रों अनुसार श्राद्ध पक्ष भाद्रपक्ष की पूर्णिणा से आरम्भ होकर आश्विन मास की अमावस्या तक चलते हैं। भाद्रपद पूर्णिमा को उन्हीं का श्राद्ध किया जाता है जिनका निधन वर्ष की किसी भी पूर्णिमा को हुआ हो। शास्त्रों मे कहा गया है कि साल के किसी भी पक्ष में, जिस तिथि को परिजन का देहांत हुआ हो उनका श्राद्ध कर्म उसी तिथि को करना चाहिए।
पितृपक्ष में पूर्वजों का स्मरण और उनकी पूजा करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। जिस तिथि पर हमारे परिजनों की मृत्यु होती है उसे श्राद्ध की तिथि कहते हैं। बहुत से लोगों को अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि याद नहीं रहती ऐसी स्थिति में शास्त्रों में इसका भी निवारण बताया गया है।शास्त्रों के अनुसार यदि किसी को अपने पितरों के देहावसान की तिथि मालूम नहीं है तो ऐसी स्थिति में आश्विन अमावस्या को तर्पण किया जा सकता है। इसलिये इस अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है। इसके अलावा यदि किसी की अकाल मृत्यु हुई हो तो उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है। ऐसे ही पिता का श्राद्ध अष्टमी और माता का श्राद्ध नवमी तिथि को करने की मान्यता है।
पृतपक्ष की एक पौराणिक कथा-
कहा जाता है कि जब महाभारत के युद्ध में दानवीर कर्ण का निधन हो गया और उनकी आत्मा स्वर्ग पहुंच गई, तो उन्हें नियमित भोजन की बजाय खाने के लिए सोना और गहने दिए गए। इस बात से निराश होकर कर्ण की आत्मा ने इंद्र देव से इसका कारण पूछा। तब इंद्र ने कर्ण को बताया कि आपने अपने पूरे जीवन में सोने के आभूषणों को दूसरों को दान किया लेकिन कभी भी अपने पूर्वजों को नहीं दिया। तब कर्ण ने उत्तर दिया कि वह अपने पूर्वजों के बारे में नहीं जानता है और उसे सुनने के बाद, भगवान इंद्र ने उसे 15 दिनों की अवधि के लिए पृथ्वी पर वापस जाने की अनुमति दी ताकि वह अपने पूर्वजों को भोजन दान कर सके। इसी 15 दिन की अवधि को पितृ पक्ष के रूप में जाना जाता है।श्राद्ध पक्ष 2020 की महत्वपूर्ण तिथियां
पूर्णिमा श्राद्ध- 2 सितंबर 2020
पंचमी श्राद्ध- 7 सितंबर 2020
एकादशी श्राद्ध- 13 सितंबर 2020
सर्वपितृ अमावस्या- 17 सितंबर 2020
श्राद्ध किसे कहते हैं?
श्राद्ध का अर्थ श्रद्धा पूर्वक अपने पितरों को प्रसन्न करने से है। सनातन मान्यता के अनुसार जो परिजन अपना देह त्यागकर चले गए हैं, उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए सच्ची श्रद्धा के साथ जो तर्पण किया जाता है, उसे श्राद्ध कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के देवता यमराज श्राद्ध पक्ष में जीव को मुक्त कर देते हैं, ताकि वे स्वजनों के यहां जाकर तर्पण ग्रहण कर सकें।
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