मन की अस्थिरता
'हमसफर मित्र'।
आपके विचारों में, मस्तिष्क में, स्मृतियों में ना जाने क्या - क्या भरा हुआ है। अक्सर वह सब चलने लग जाता है, जो बिल्कुल भी अच्छी बात नहीं है। यह जो मन है न, इसकी आदत है पृष्ठ पीसन करना, पीसे हुए को बार-बार पीसना। मन पर अगर कोई चोट लगी हुई हो तो आप देखेंगे कि मन बार-बार उसी को याद दिलाएगा। वह उसे बार-बार दोहराएगा। कोई चीज आपको परेशान कर रही हो तो आप देखना मन उसी को आपके सामने लाकर रखेगा। चक्की में एक बार पीस दिया जाए तो आदमी कहता है कि चलो पीस गया और आटा तैयार हो गया। लेकिन हमारा मन तो ऐसा विचित्र है कि जिस आटे को पीस लिया, उसी को दोबारा फिर पीसेगा। फिर रुकेगा नहीं, तीसरी बार भी पीसेगा, एक - दो बार नहीं, वह हजार बार पीसेगा। मन की यह पिसाई उस वस्तु का ऐसा रूप बना देता है कि वह चीज बेकार हो जाती है, दुखदायी बन जाती है। मन बार-बार दोहराता है कि अमुक ने तुम्हारा अपमान किया। भगवान कहते हैं कि इस से बाहर निकलो, योगस्थ हो जाओ, योगी बनकर चलो, अनासक्त होकर के चलो, यही चिंताओं का निदान है।
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