'जयंती विशेष'
भारत के महान गणितज्ञ रामानुजम जयंती आज, पढ़ें उनके जीवनी, कैसे बना महान गणितज्ञ
प्रस्तुति - 'मनितोष सरकार', (संपादक)
'हमसफ़र मित्र न्यूज'
रामानुजन विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। उनका जन्म 22 दिसम्बर 1887 को मद्रास से 400 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित इरोड नामक एक छोटे-से गांव में हुआ था। रामानुजन जब बहुत छोटे रहे होंगे उसी समय उनका परिवार इरोड से कुम्भकोणम आ गया। संसार में ऐसे अनेक गणितज्ञ हुए हैं जिनके कुटुम्ब के लोग गणितज्ञ या फिर गणित से लगाव वाले थे। लेकिन रामानुजन का मामला एकदम से भिन्न है। वे बहुत ही साधारण परिवार से ताल्लुक रखते थे।
रामानुजन की प्रारंभिक शिक्षा:
उनके पिता कुम्भकोणम में एक कपड़ा व्यापारी के यहां मुनीम का काम करते थे। जब वे पांच वर्ष के थे तो उनका दाखिला कुम्भकोणम के प्राइमरी स्कूल में करा दिया गया। सन् 1898 में इन्होंने टाउन हाईस्कूल में प्रवेश लिया और सभी विषयों में बहुत अच्छे नम्बर हासिल कए। यहीं पर रामानुजन को जी. एस. कार की गणित पर लिखी किताब पढ़ने का मौका मिला। इस पुस्तक से प्रभावित होकर उन्होंने स्वयं ही गणित पर कार्य करना प्रारंभ कर दिया।
रामानुजन धार्मिक प्रवृत्ति और शांत स्वभाव के चिन्तनशील बालक थे। अपने खपरैल की छत वाले पुश्तैनी घर के सामने एक ऊंचे चबूतरे पर बैठ कर रामानुजन गणित के सवाल हल करने में डूब जाते थे। रामानुजन का गणित के प्रति जबर्दस्त लगाव था। विशुद्ध गणित के अतिरिक्त अन्य विषयों, जैसे गणितीय भौतिकी और अनुप्रयुक्त गणित में उनकी रुचि नहीं थी। रामानुजन गणित की खोज को ईश्वर की खोज के सदृश मानते थे। इसी कारण गणित के प्रति उनमें गहरा लगाव था। उन्हें विश्वास था कि गणित से ही ईश्वर का सही स्वरूप स्पष्ट हो सकता है। वे संख्या 'एक' को अनन्त ईश्वर का स्वरूप मानते थे। वे रातदिन संख्याओं के गुणधर्मों के बारे में सोचते, मनन करते रहते थे और सुबह उठकर कागज पर अकसर सूत्र लिख लिया करते थे। उनकी स्मृति और गणना शक्ति अद्भुत थी। वे π, √2, e आदि संख्याओं के मान दशमलव के हजारवें स्थान तक निकाल लेने में सक्षम थे। यह उनकी गणितीय मेधा का प्रमाण है।
रामानुजन जब दसवीं कक्षा के छात्र थे तो उन्होंने स्थानीय कॉलेज के पुस्तकालय से उच्च गणित में जार्ज शुब्रिजकार रामानुजन हार्डी का एक ग्रन्थ "सिनॉप्सिस आफ प्योर मैथेमेटिक्स" प्राप्त किया। इस ग्रन्थ में बीजगणिज, ज्यामिति, त्रिकोणमिति और कलन गणित के 6165 सूत्र दिये गये हैं। इनमें से कुछ सूत्रों की बहुत संक्षिप्त उपपत्ति दी गई है। यह ग्रन्थ रामानुजन के लिये उच्च गणित का बहुत बड़ा खजाना था। वे गम्भीरता से इस ग्रन्थ के प्रत्येक सूत्र को हल करने में जुट गये और इन सूत्रों को सिद्ध करना उनके लिए गवेषणा का कार्य बन गया।
उन्होंने पहले मैजिक स्क्वायर तैयार करने की कुछ विधियाँ खोज निकालीं। रामानुजन ने समाकलन पर अच्छा ज्ञान अर्जित कर लिया। बीजगणित की कई नई श्रेणियां उन्होंने खोज निकालीं। उनके गुरु डॉ. हार्डी ने लिखा है- "इसमें संदेह नहीं है कि इस ग्रन्थ ने रामानुजन को बेहद प्रभावित किया और उनकी पूर्ण क्षमता को जगाया। यह ग्रन्थ उत्कृष्ट कृति नहीं है परन्तु रामानुजन ने इसे सुप्रसिद्ध कर दिया। इसके अध्ययन के बाद ही एक गणितज्ञ के रूप में रामानुजन के जीवन का नया अध्याय शुरू हुआ।"
कुम्भकोणम के शासकीय महाविद्यालय में अध्ययन के लिए रामानुजन को छात्रवृत्ति मिलती थी। परंतु रामानुजन द्वारा गणित के अलावा दूसरे विषयों की अनदेखी करने पर उनकी छात्रवृत्ति बंद कर दी गई। सन् 1905 में रामानुजन मद्रास विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा में सम्मिलित हुए परंतु गणित को छोड़कर शेष सभी विषयों में वे अनुत्तीर्ण हो गए। सन् 1906 एवं 1907 की प्रवेश परीक्षा का भी यही परिणाम रहा। आगे के वर्षों में रामानुजन कार की पुस्तक को मार्गदर्शक मानते हुए गणित में कार्य करते रहे और अपने परिणामों को लिखते गए जो कि 'नोटबुक' नाम से प्रसिद्ध हुए। रामानुजन को प्रश्न पूछना बहुत पसंद था। उनके प्रश्न अध्यापकों को कभी-कभी बहुत अटपटे लगते थे। मसलन कि संसार में पहला पुरुष कौन था? पृथ्वी और बादलों के बीच की दूरी कितनी है?
रामानुजन का व्यवहार बड़ा ही मधुर था। सामान्य से कुछ ज्यादा ही कृशकाय, और जिज्ञासा से चमकती आखें इन्हें एक अलग पहचान देती थीं। इनके सहपाठियों के अनुसार इनका व्यवहार इतना सौम्य था कि कोई इनसे नाराज हो ही नहीं सकता था। विद्यालय में इनकी प्रतिभा ने दूसरे विद्यार्थियों और शिक्षकों पर छाप छोड़ना आरंभ कर दिया। इन्होंने स्कूल के समय में ही कालेज के स्तर की गणित का अध्ययन कर लिया था। एक बार इनके विद्यालय के हेडमास्टर ने कहा भी कि विद्यालय में होने वाली परीक्षाओं के मापदंड रामानुजन के लिए लागू नहीं होते। हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद इन्हें गणित और अंग्रेजी में अच्छे अंक लाने के कारण सुब्रमण्यम छात्रवृत्ति मिली और आगे कालेज की शिक्षा के लिए प्रवेश भी मिला।
रामानुजन के शोधपत्र:
सन् 1909 में इनका विवाह हो गया और वे आजीविका के लिए नौकरी ढूँढ़ने लगे। नौकरी की खोज के दौरान रामानुजन कई प्रभावशाली व्यक्तियों के सम्पर्क में आए। 'इंडियन मैथमैटिकल सोसायटी' के संस्थापकों में से एक रामचंद्र राव भी उन्हीं प्रभावशाली व्यक्तियों में से एक थे। रामानुजन ने रामचंद्र राव के साथ एक वर्ष तक कार्य किया। इसके लिए उन्हें 25 रुपये महीना मिलता था। इन्होंने 'इंडियन मैथमैटिकल सोसायटी' के जर्नल के लिए प्रश्न एवं उनके हल तैयार करने का कार्य प्रारंभ कर दिया। सन् 1911 में बर्नोली संख्याओं पर प्रस्तुत शोधपत्र से इन्हें बहुत प्रसिद्धि मिली और मद्रास में गणित के विद्वान के रूप में पहचाने जाने लगे।
सन् 1912 में रामचंद्र राव की सहायता से मद्रास पोर्ट ट्रस्ट के लेखा विभाग में लिपिक की नौकरी करने लगे। रामानुजन ने गणित में शोध करना जारी रखा और सन् 8 फरवरी 1913 में इन्होंने जी. एच. हार्डी को पत्र लिखा। साथ में स्वयं के द्वारा खोजे प्रमेयों की एक लम्बी सूची भी भेजी। ये पत्र हार्डी को सुबह नाश्ते के टेबल पर मिले। इस पत्र में एक अनजान भारतीय द्वारा बहुत सारे बिना उपपत्ति के प्रमेय लिखे थे जिनमें से कई प्रमेय हार्डी देख चुके थे। पहली नज़र में हार्डी को ये सब बकवास लगा। उन्होंने इस पत्र को एक तरफ रख दिया और अपने कार्यों में लग गए। परंतु इस पत्र की वजह से उनका मन अशांत था। इस पत्र में बहुत सारे ऐसे प्रमेय थे जो उन्होंने न कभी देखे और न सोचे थे। उन्हें बार-बार यह लग रहा था कि यह व्यक्ति (रामानुजन) या तो धोखेबाज है या फिर गणित का बहुत बड़ा विद्वान। रात को 9 बजे हार्डी ने अपने एक शिष्य लिटिलवुड के साथ एक बार फिर इन प्रमेयों को देखना शुरू किया तथा आधी रात तक वे लोग समझ गये कि रामानुजन कोई धोखेबाज नही बल्कि गणित के बहुत बड़े विद्वान हैं जिनकी प्रतिभा को दुनिया के सामने लाना आवश्यक है। इसके बाद हार्डी ने उन्हें कैम्ब्रिज बुलाने का फैसला किया। हार्डी का यह निर्णय एक ऐसा निर्णय था जिससे न केवल उनकी बल्कि पूरे गणित की ही धारा बदल गई।
सन् 1913 में हार्डी के पत्र के आधार पर रामानुजन को मद्रास विश्वविद्यालय से छात्रवृत्ति मिलने लगी। अगले वर्ष सन् 1914 में हार्डी ने रामानुजन के लिए कैम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज आने की व्यवस्था की। रामानुजन ने गणित में जो कुछ भी किया था वह सब अपने बलबूते किया था। रामानुजन को गणित की कुछ शाखाओं का बिलकुल भी ज्ञान नहीं था, पर कुछ क्षेत्रों में उनका कोई सानी नहीं था। इसलिए हार्डी ने रामानुजन को पढ़ाने का जिम्मा स्वयं लिया। हार्डी ने इस बात को स्वीकार किया है कि जितना उन्होंने रामानुजन को सिखाया, उससे कहीं ज्यादा रामानुजन ने उन्हें सिखाया। सन् 1916 में रामानुजन ने कैम्ब्रिज से बी.एस-सी. की उपाधि प्राप्त की।
रामानुजन और हार्डी के कार्यों से शुरू से ही महत्वपूर्ण परिणाम मिले। सन् 1917 से ही रामानुजन बीमार रहने लगे थे और अधिकांश समय बिस्तर पर ही रहते थे। बीमारी की एक वजह थी। रामानुजन ब्राह्मण कुल में पैदा हुए थे। वे धर्म-कर्म में विश्वास करते थे तथा आचार-विचार का कड़ाई से पालन करते थे। रामानुजन शाकाहारी थे और इंग्लैण्ड में रहते समय अपना भोजन स्वयं पकाते थे। इंग्लैण्ड की कड़ी सर्दी और उस पर कठिन परिश्रम। फलस्वरूप रामानुजन का स्वास्थ्य खराब रहने लगा। और जब उनमें तपेदिक के लक्षण दिखाई देने लगे तो उन्हें अस्पताल में भर्ती कर दिया गया। इधर उनके लेख उच्चकोटि की पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगे थे। सन् 1918 में एक ही वर्ष में रामानुजन को कैम्ब्रिज फिलोसॉफिकल सोसायटी, रॉयल सोसायटी तथा ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज तीनों का फेलो चुना गया। इससे रामानुजन का उत्साह और भी अधिक बढ़ा और वह काम में जी-जान से जुट गए। सन् 1919 में स्वास्थ ज्यादा खराब होने की वजह से उन्हें भारत वापस लौटना पड़ा।
रोचक किस्से:
एक बार का किस्सा है। रामानुजन अस्पताल में भर्ती थे। डॉ. हार्डी टैक्सी में बैठकर उन्हें देखने अस्पताल पहुँचे। टैक्सी का नंबर 1729 था। रामानुजन से मिलने पर डॉ. हार्डी ने ऐसे ही सहज भाव से कह दिया कि यह एक अशुभ संख्या है। बात यह थी कि 1729= 7x13x19। यहाँ आप देखेंगे कि 1729 का एक गुणनखंड 13 है। यूरोप के अंधविश्वासी लोग इस 13 संख्या से बहुत भय खाते हैं। वे संख्या 13 को अशुभ मानते हैं। वे 13 संख्यावाली कुर्सी पर बैठने से बचेंगे, 13 संख्यावाले कमरे में ठहरने से बचेंगें। इसलिए डॉ. हार्डी ने रामानुजन से कहा था कि 1729 एक अशुभ संख्या है। लेकिन रामानुजन ने झट जवाब दिया- नहीं, यह एक अद्भुत संख्या है। वास्तव में यह वह सबसे छोटी संख्या है जिसे हम दो घन संख्याओं के जोड़ से दो तरीकों में व्यक्त कर सकते है; जैसे- 1729 = 123 + 13 तथा 1729=103+93
इलिनॉय विश्वविद्यालय के गणित के प्रोफेसर ब्रूस सी. बर्नाड्ट ने रामानुजन की तीन पुस्तकों पर 20 वर्षों तक शोध किया और उनके निष्कर्ष पाँच पुस्तकों के संकलन के रूप में प्रकाशित हुए हैं। प्रो. बर्नाड्ट कहते हैं, “मुझे यह सही नहीं लगता जब लोग रामानुजन की गणितीय प्रतिभा को किसी दैवीय या आध्यात्मिक शक्ति से जोड़ कर देखते हैं। यह मान्यता ठीक नहीं है। उन्होंने बड़ी सावधानी से अपने शोध निष्कर्षों को अपनी पुस्तिकाओं में दर्ज किया है।" सन् 1903 से 1914 के दरम्यान कैम्ब्रिज जाने से पहले रामानुजन अपनी पुस्तिकाओं में 3,542 प्रमेय लिख चुके थे। उन्होंने ज्यादातर अपने निष्कर्ष ही दिए थे, उनकी उपपत्ति नहीं दी। शायद इसलिए कि वे काग़ज़ ख़रीदने में सक्षम नहीं थे और अपना कार्य पहले स्लेट पर करते थे। बाद में बिना उपपत्ति दिए उसे पुस्तिका में लिख लेते थे।
रामानुजन के प्रमुख गणितीय कार्यों में एक है किसी संख्या के विभाजनों की संख्या ज्ञात करने के फार्मूले की खोज। उदाहरण के लिए संख्या 5 के कुल विभाजनों की संख्या 7 है। इस प्रकार: 5, 4+1, 3+2, 2+2+1, 2+1+1+1, 1+1+1+1+1 । रामानुजन के फार्मूले से किसी भी संख्या के विभाजनों की संख्या ज्ञात की जा सकती है। उदाहरण के लिए संख्या 200 के कुल 3972999029388 विभाजन होते हैं। हाल ही में भौतिक जगत की नयी थ्योरी 'सुपरस्ट्रिंग थ्योरी' में इस फार्मूले का काफ़ी उपयोग हुआ है। रामानुजन ने उच्च गणित के क्षेत्रों जैसे संख्या सिद्धान्त, इलिप्टिक फलन, हाईपरज्योमैट्रिक श्रेणी इत्यादि में अनेक महत्वपूर्ण खोज कीं। रामानुजन ने वृत्त की परिधि और व्यास के अनुपात 'पाई' (π) के अधिक से अधिक शुद्ध मान प्राप्त करने के अनेक सूत्र प्रस्तुत किए हैं। ये सूत्र अब कम्प्यूटर द्वारा π के दशमलव के लाखों स्थानों तक परिशुद्ध मान ज्ञात करने के लिए कारगर सिद्ध हो रहे हैं। आज सुपरकम्प्यूटरों की क्षमता प्रायः इस परीक्षण से आंकी जाती है कि वे π का मान दशमलव के कितने स्थानों तक कितने अल्पकाल में प्रस्तुत कर सकते हैं।
सन् 1919 में इंग्लैण्ड से वापस आने के पश्चात् रामानुजन कुम्भकोणम में रहने लगे। उनका अंतिम समय चारपाई पर ही बीता। वे चारपाई पर पेट के बल लेटे-लेटे काग़ज़ पर बहुत तेज गति से यूँ लिखते रहते थे मानो उनके मस्तिष्क में गणितीय विचारों की आँधी चल रही हो। रामानुजन स्वयं कहते थे कि उनके द्वारा लिखे सभी प्रमेय उनकी कुलदेवी नामगिरि की प्रेरणा हैं। इंग्लैण्ड का मौसम उन्हें रास नहीं आया था। उनका गिरता स्वास्थ्य सबके लिए चिंता का विषय बन गया और यहां तक कि डॉक्टरों ने भी जवाब दे दिया था। अंतत: रामानुजन के जीवन की सांध्यवेला आ ही गई। 26 अप्रैल 1920 की सुबह वे अचेत हो गए, और दोपहर होते-होते उनका देहावसान हो गया। उस समय वे महज 32 वर्ष के थे। अल्पायु में उनके असामयिक निधन से गणित जगत की अपूरणीय क्षति हुई।
उनकी मृत्योपरान्त मॉक थीटा फंक्शन से सम्बन्धित उनकी 'नोटबुक' मद्रास विश्वविद्यालय में जमा थी, जो बाद में प्रो. हार्डी के जरिए डॉ. वाटसन के पास पहुँची। तदोपरान्त रामानुजन की यह 130 पृष्ठों की नोटबुक ट्रिनिटी कालेज के ग्रन्थालय को सौंपी गई। इस 'नोट बुक' में रामानुजन ने जल्दी-जल्दी में लगभग 600 परिणाम प्रस्तुत किए हैं परन्तु उनकी उपपत्ति नहीं दी थी। विस्कोन्सिन विश्वविद्यालय के गणितज्ञ डॉ. रिचर्ड आस्की लिखते है- “मृत्युशैय्या पर लेटे-लेटे साल भर में किया गया रामानुजन का यह कार्य बड़े-बड़ै गणितज्ञों के जीवनभर के कार्य के बराबर है। सहसा यकीन नहीं होता कि उन्होंने अपनी उस दशा में यह कार्य किया। कदाचित किसी उपन्यास में ऐसा विवरण दिया जाता तो उस पर कोई भी विश्वास नहीं करता।" रामानुजन की नोट बुकों की यह अमूल्य विरासत गणितज्ञों के लिए शोध का विषय रहेगी। संख्या-सिद्धान्त पर उनके हैरतअंगेज कार्य के लिए उन्हें 'संख्याओं का जादूगर' माना जाता है। उनके महान गणितीय अवदान के लिए रामानुजन को "गणितज्ञों का गणितज्ञ" भी कहा जाता है।
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