दो बूढ्ढे बुढ्ढी की नोंक-झोंक - HUMSAFAR MITRA NEWS

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Monday, October 16, 2023

 'आज की कहानी' 

दो बूढ्ढे  बुढ्ढी की नोंक-झोंक

'हमसफर मित्र न्यूज' 



इन 60-65 साल के अंकल आंटी का 

झगड़ा ही ख़त्म नहीं होता...

एक बार के लिए मैंने सोचा 

अंकल और आंटी से बात करूं 

क्यों लड़ते हैं हरवक़्त, आख़िर बात क्या है... 

.

फिर सोचा मुझे क्या, 

मैं तो यहाँ मात्र दो दिन के लिए ही तो आया हूँ...

मगर थोड़ी देर बाद आंटी की जोर-जोर से 

बड़बड़ाने की आवाज़ें आयीं तो 

मुझसे रहा नहीं गया...

ग्राउंड फ्लोर पर गया मैं, 

तो देखा अंकल हाथ में वाइपर और 

पोंछा लिए खड़े थे...

मुझे देखकर मुस्कराये और फिर 

फर्श की सफाई में लग गए...


अंदर किचन से आंटी के बड़बड़ाने की 

आवाज़ें अब भी रही थीं...

कितनी बार मना किया है... 

फर्श की धुलाई मत करो... 

पर नहीं मानता बुड्ढा...

मैंने पूछा "अंकल क्यों करते हैं 

आप फर्श की धुलाई?, 

जब आंटी मना करती हैं तो"...

अंकल बोले " बेटा! फर्श धोने का शौक 

मुझे नहीं इसे है। 

मैं तो इसीलिए करता हूं 

ताकि इसे न करना पड़े।"... 

"ये सुबह उठकर ही फर्श धोने लगेगी 

इसलिए इसके उठने से पहले ही मैं धो देता हूं"

.

क्या!... मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ।

अंदर जाकर देखा आंटी किचन में थीं। 

"अब इस उम्र में बुढ़ऊ की हड्डी पसली 

कुछ हो गई तो क्या होगा? 

मुझसे नहीं होगी खिदमत।

आंटी झुंझला रही थीं।

परांठे बना कर आंटी सिल-बट्टे से 

चटनी पीसने लगीं...


मैंने पूछा "आंटी मिक्सी है तो फिर...

"तेरे अंकल को बड़ी पसंद है 

सिल-बट्टे की पिसी चटनी। 

बड़े शौक से खाते हैं। 

दिखाते यही हैं कि उन्हें पसंद नहीं।


उधर अंकल भी नहा धो कर फ़्री हो गए थे। 

उनकी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी,

"बेटा, इस बुढ़िया से पूछ! 

रोज़ाना मेरे सैंडल कहां छिपा देती है, 

मैं ढूंढ़ता हूं और इसको बड़ा मज़ा आता है 

मुझे ऐसे देखकर।" 


मैंने आंटी को देखा वो कप में चाय 

उड़ेलते हुए मुस्कुराईं और बोलीं,

"हां! मैं ही छिपाती हूं सैंडल, 

ताकि सर्दी में ये जूते पहनकर ही 

बाहर जाएं, 

देखा नहीं कैसे उंगलियां सूज जाती हैं इनकी।

हम तीनों साथ में नाश्ता करने लगे...


इस नोक झोंक के पीछे छिपे प्यार को 

देख कर मुझे बड़ा अच्छा लग रहा था।

नाश्ते के दौरान भी बहस चली दोनों की।

अंकल बोले "थैला दे दो मुझे! 

सब्ज़ी ले आऊं"... 

"नहीं कोई ज़रूरत नहीं! 

थैला भर भर कर सड़ी गली सब्ज़ी लाने की।

आंटी गुस्से से बोलीं। 


अब क्या हुआ आंटी!... 

मैंने आंटी की ओर सवालिया नज़रों से देखा 

और उनके पीछे-पीछे किचन में आ गया।...

.

"दो कदम चलने में सांस फूल जाती है 

इनकी, थैला भर सब्ज़ी लाने की 

जान है क्या इनमें"...

"बहादुर से कह दिया है 

वह भेज देगा सब्ज़ी वाले को।

" मॉर्निंग वॉक का शौक चर्राया है बुढ़‌ऊ को"...


 "तू पूछ उनसे! क्यों नहीं ले जाते मुझे भी साथ में।

"चुपके से चोरों की तरह क्यों निकल जाते हैं?

आंटी ने जोर से मुझसे कहा।

"मुझे मज़ा आता है इसीलिए जाता हूं अकेले।

अंकल ने भी जोर से जवाब दिया।


अब मैं ड्राइंग रूम में था, 

अंकल धीरे से बोले, "रात में नींद नहीं आती 

तेरी आंटी को, सुबह ही आंख लगतीं हैं, 

कैसे जगा दूं चैन की गहरी नींद से इसे। 

इसीलिए चला जाता हूं, 

गेट बाहर से बंद कर के।"

इस नोक-झोंक पर मुस्कराता, 

में वापिस फर्स्ट फ्लोर पर आ गया... 


कुछ देर बाद बालकनी से देखा 

अंकल आंटी के पीछे दौड़ रहे हैं।... 

"अरे कहां भागी जा रही हो, 

मेरे स्कूटर की चाबी ले कर... 

इधर दो चाबी।"

"हां! नज़र आता नहीं पर स्कूटर चलाएंगे। 

कोई ज़रूरत नहीं। 

ओला कैब कर लेंगे हम।" आंटी चिल्ला रही थीं।

"ओला कैब वाला किडनैप कर लेगा तुझे बुढ़िया।"

"हां कर ले! 

तुम्हें तो सुकून हो ही जाएगा।"


अंकल और आंटी की ये बेहिसाब नोंक-झोंक 

तो कभी ख़त्म नहीं होने वाली थी...

मगर मैंने आज समझा कि 

इस तकरार के पीछे छिपी थी 

इनकी एक दूसरे के लिए बेशुमार मोहब्बत 

और फ़िक्र...

मैंने आज समझा था 

कि *प्यार वो नहीं जो कोई "कर" रहा है..., 

प्यार वो है जो कोई "निभा" रहा है...


 दिल छू गयी कहानी।

काश बुढापे की यह नोक झोंक 

हर किसी की किस्मत में लिखी होती ईश्वर ने।



प्रस्तुति - चन्द्रशेखर  तिवारी



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