मेरा ईश्वर सड़कों पर चलता है - HUMSAFAR MITRA NEWS

Advertisment

Advertisment
Sarkar Online Center

Breaking

Followers


Youtube

Monday, September 25, 2023

 'आज की कहानी' 

 मेरा ईश्वर सड़कों पर चलता है

'हमसफर मित्र न्यूज' 

..........................................

मैं एक दिन ट्रेन से पटना जा रही थी। वहा एक दिन का काम था। मैं एक छोटा होटल देखी, वहां सामान रखा और कार्यक्रम स्थल के लिए निकल गई। लौटते हुए देर शाम हो गई थी। ऑटो से उतरकर रिक्शा लिया। याद था कि होटल किसी गली में है पर,गली तक पहुंचते-पहुंचते ऐसा लगा मैं गलत रास्ते पर हूं। ध्यान आया कि हड़बड़ी में होटल का पता लिए बगैर, सामान रख कर निकल गई थी। 

सिर्फ़ नाम याद था। अब सब तरफ गलियां ही गलियां दिख रही थी। पता नहीं चल रहा था किस जगह पर हूं। होटल का नाम बताया पर रिक्शे वाले को भी मालूम नहीं था। मैंने उनसे कहा कि वह मुझे उतार दे कहीं। मैं खुद ही ढूंढ़ लूंगी। उसे कहां-कहां घुमाती? उसने उतार दिया एक मोड़ पर। 

मैं अकेले चलने लगी।


कुछ देर बाद ऐसा लगा कोई अब भी पीछे है। 

मैंने देखा वह रिक्शा वाला गया नहीं था। पीछे-पीछे चल रहा था। मैं थोड़ी देर रुकी। वह भी रुका। ओह! अब अजीब लग रहा था। थोड़ी बेचैनी भी। मैं आगे बढ़ने लगी। देखा कुछ दूरी बनाकर वह भी बढ़ रहा है। थोड़ी देर खड़ी रही। देखा वह भी खड़ा है। कुछ सोचने के बाद मैं वापस लौटकर उसके पास गई। 

पूछा " आप क्या कर रहे हैं?" 

उसने कहा " क्या हो गया?" 

"आप पीछे-पीछे क्यों आ रहे?" 

रिक्शा वाले ने कहा...

"इसलिए आ रहे है कि देख रहा हूँ तुम रास्ता भटक गई हो।" उसने कहा।

" इससे आपको क्या? आप जाइए। " मैंने कहा। 

अब उसने कुछ झुंझला कर कहा " नहीं जाएंगे कहीं। रात का समय है और देख रहे हैं कि तुम्हें कुछ पता नहीं है शहर का। पैसे की बात नहीं है। हम खड़े हैं इधर। तुमको होटल मिल जाए फिर हम चले जाएंगे। " 


मैंने देखा वह कहीं जाने को तैयार नहीं है। उसे छोड़कर मैं आगे बढ़ती रही। जब भी पलट कर देखती। वह दूर खड़ा मिलता। खुद पर गुस्सा बहुत आ रहा था। सारा सामान उसी होटल के कमरे में था। बहुत देर बाद, एक जगह खड़ी-खड़ी सोचने लगी कि क्या करना चाहिए, तभी पलट कर देखा, जहां खड़ी थी वही वह होटल था। जहां सुबह सामान रखा था। आह! मैंने चैन की सांस ली। उस आदमी को इशारा किया तो वह पास आया। 


मैंने पास वाली दुकान से मिठाई खरीदी। उसे दिया और शुक्रिया कहा। सड़क पर साथ चलने और मेरे लिए रुके रहने के लिए। वह पहली बार मुस्कुराया और बोला " मेरी दो बेटियां हैं। एक तो तुम्हारी उम्र की है। हम इसीलिए खड़े थे।" 

मैं उसे देखती रही और वह अंधेरे में गुम हो गया। मैंने बाहर ही एक दुकान से चाय ली और सोचा। मेरा ईश्वर सड़कों पर चलता है। भटक जाऊं तो पास खड़ा मिलता है।



प्रस्तुति - मदन शास्त्री 'धरैल' नालागढ़ हिमाचल प्रदेश



No comments:

Post a Comment