राम ने रावण को और दुर्गा ने असुर को नौ दिन तक युद्ध के बाद विजय प्राप्त करने के कारण मनाया जाता है दशहरा
✍️ मदन शास्त्री धरैल नालागढ़ हिमाचल प्रदेश
'हमसफर मित्र न्यूज'
दशहरा दस इन्द्रियों पर विजय का पर्व है, यह असत्य पर सत्य का विजय पर्व है, बहिर्मुखता पर अंतर्मुखता की विजय का पर्व है, अन्याय पर न्याय की विजय का पर्व है, दुराचार पर सदाचार की विजय का पर्व है, तमोगुण पर दैवीगुण की विजय का पर्व हैं, दुष्कर्मों पर सत्कर्मों की विजय का पर्व है, भोग पर योग की विजय का पर्व है, असुरत्व पर देवत्व की विजय का पर्व है, जीवत्व पर शिवत्व की विजय का यह दशहरा पर्व है।
दशहरा पर्व हमारे समाज व हमारे देश का महत्वपूर्ण धार्मिक त्योहार है जिसे माँ दुर्गाजी और भगवान् श्रीरामजी से जोडकर देखा जाता है, दशहरा त्यौहार को मानने के संदर्भ में अास्था ये है कि माँ दुर्गा ने महिषासूर से लगातार नौ दिनो तक युद्ध करके दशहरे के दिन ही महिषासुर का वध किया था, इसलिये नवरात्रि के बाद इसे दुर्गा के नौ शक्ति रूप के विजय-दिवस के रूप में विजया-दशमी के नाम से मनाते हैं।
जबकि भगवान् श्रीरामजी ने नौ दिनो तक रावण के साथ युद्ध करके दसवें दिन ही रावण का वध किया था, इसलिये इस दिन को भगवान् श्रीरामजी के संदर्भ में भी विजय-दशमी के रूप में मनाते हैं, साथ ही इस दिन रावण का वध हुआ था, जिसके दस सिर थे, इसलिये आज के दिन को "दशहरा" यानी दस सिर वाले के प्राण हरण होने वाले दिन के रूप में भी मनाया जाता है।
हमारे सनातन धर्म में दशहरा यानी विजय-दशमी एक ऐसा त्योहार है जो आज ही के दिन क्षत्रिय शस्त्र-पूजा करते हैं, जबकि ब्राम्हण शास्त्र-पूजा करते हैं, पुराने समय में राजा-महाराजा जब किसी दूसरे राज्य पर आक्रमण कर उस पर कब्जा करना चाहते थे, तो वे आक्रमण के लिए आज ही के दिन का चुनाव करते थे, जबकि ब्राम्हण विद्यार्जन के लिये गुरूकूलों में प्रस्थान करने हेतु आज ही के दिन का चुनाव करते थे।
सज्जनों! हिन्दु धर्म की मान्यतानुसार आज दशहरा पर्व के दिन जो भी काम किया जाता है, उसमें विजय यानी सफलता प्राप्त होती है, और इसी मान्यता के कारण ही व्यापारी भाई किसी नये व्यापार या प्रतिष्ठान का उद्घाटन करने या शुरूआत करने के लिये आज के दिन को उतना ही महत्व देते हैं, जितना दिपावली के बाद लाभ पंचमी अथवा दिपावली से पहले धनतेरस को देते हैं।
विजय-दशमी के इस दिन सामान्यत: बुराइ पर अच्छाई की विजय के प्रतीक के रूप में रावण के पुतले का दहन किया जाता है, और रावण दहन के बाद जब लोग घर लौटते हैं, तो सामान्यत: शमी के पत्तों को भी अपने घर लेकर आते है, जो कि इस अास्था का प्रतीक है कि शमी के पत्तों को घर लाने से घर में स्वर्ण का आगमन होता है।
शमी के पत्तों को घर लानें के संदर्भ में एक पौराणिक कथा है, कि एक बार एक राजा ने अपने राज्य में एक मंदिर बनवाया और उस मंदिर में भगवान् की प्राण-प्रतिष्ठा कर भगवान की स्थापना करने के लिये एक ब्राम्हाण को बुलाया, प्राण-प्रतिष्ठा कर भगवान् की स्थापना करने के बाद राजा ने ब्राम्हान से पूछा कि हे ब्रम्हान देव! आपको दक्षिणा के रूप में क्या दूँ?
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तब ब्राह्मण ने कहा कि हे राजन! मुझे एक लाख स्वर्ण मुद्रा चाहिये, ब्राह्मण की दक्षिणा सुनकर राजा को बडी चिंता हुई, क्योंकि राजा के पास देने के लिए इतनी स्वर्ण मुद्रायें नहीं थीं, और ब्राह्मण को उसकी मांगी गई दक्षिणा दिये बिना विदा करना भी ठीक नहीं था, इसलिये राजा ने ब्राह्मण को उस दिन विदा नहीं किया, बल्कि अपने मेहमान भवन में ही रात ठहरने की व्यवस्था कर दी।
राजा ब्राह्मण की दक्षिणा देने के संदर्भ में स्वयं काफी चिन्ता में था, कि आखिर वह किस प्रकार से ब्राह्मण की दक्षिणा पूरी करे, यही सोंचते-सोंचते व भगवान् से प्रार्थना करते-करते राजा की आँख लग गई और जैसे ही राजा की आँख लगी, तभी राजा को एक स्वपन आया जिसमें भगवान् प्रकट होकर उसे कहते हैं कि तुम अभी उठो और जाकर जितने हो सकें उतने शमी वृक्ष के पत्ते अपने घर ले आओ, तुम्हारी समस्या का समाधान हो जायेगा।
इतना कहकर भगवान् अन्तर्ध्यान हो गए और अचानक ही राजा की नींद खुल गई, राजा को स्वप्न पर ज्यादा विश्वास तो नहीं हुआ, लेकिन फिर भी राजा ने सोंचा कि शमी के पत्ते लाने में बुराई ही क्या है, सो राजा स्वप्नानुसार रात ही में स्वयं जाकर ढेर सारे शमी वृक्ष के पत्ते ले आया, जब सुबह हुई तो राजा ने देखा कि वे सभी शमी के पत्ते, स्वर्ण के पत्ते बन गये थे, राजा ने उन स्वर्ण के पत्तों से ब्राह्मण की दक्षिणा पूरी कर उसे विदा किया, जिस दिन राजा शमी के पत्ते अपने घर लाया था, उस दिन विजय-दशमी ही थी, इसलिए तभी से ये मान्यता हो गई कि विजय-दशमी की रात शमी के पत्ते घर लाने से घर में सोने का आगमन होता है।
आज दशहरा पर्व हैं, और कुछ ही दिनों में दिपावली का महापर्व का आगमन होने वाला हैं इन तयोहारों में आप सावधान और सजग रहें, असावधानी और लापरवाही से मनुष्य बहुत कुछ खो बैठता है, विजयादशमी और दीपावली के आगमन पर इस त्योहार का आनंद, ख़ुशी और उत्साह बनाये रखने के लिए सावधानीपूर्वक रहें।
पटाखों के साथ खिलवाड़ न करें, उचित दूरी से ग्रीन पटाखे चलायें, आप देवी-देवताओं के फोटो वाले पटाखें न तो खरीदें और नाहीं फोड़े, इससे हमारे देवी-देवताओं का अपमान होता है, तथा मिठाइयों और पकवानों की शुद्धता, पवित्रता का ध्यान रखें, आजकल ज्यादा कमाने के चक्कर में कुछ लोग मिलावटी, या डुप्लिकेट मावा की मिठाईयां धड़ल्ले से दुकानों में बेच रहे है।
ऐसे कुछ स्वार्थी व्यापारीयों से सजग व सावधान रहें, अगर ऐसे किसी व्यक्ति या व्यापारी आप के नजर में है, तो आप एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते उन्हें बेनकाब करें और उसकी उस विभाग को शिकायत करें ताकि त्योहारों की पवित्रता बनी रहे, भारतीय संस्कृति के अनुसार त्योहारों को आदर्शों एवम् सादगी तथा पवित्रता से मनायें।
पाश्चात्य जगत का अंधानुकरण ना करें, आप स्वदेशी वस्तु या सामान ही खरीदें एवम बेचे, ताकि अपना पैसा अपने देश में ही रहे, चायना या अन्य देशों की वस्तुओं का बहिष्कार कर आप स्वाभिमान भारतीय होने का परिचय दें, पटाखे घर से दूर चलायें और आस-पास के लोगों की असुविधा के प्रति सजग रहें, स्वच्छ्ता और पर्यावरण का ध्यान रखें, पटाखों से बच्चों को उचित दूरी बनाये रखने और सावधानि पूर्वक प्रयोग करने के लिये बाध्य करें।
भाई-बहनों! विजयादशमी के पर्व की आप सभी को बहुत बहुत बधाई, भगवान् श्री रामचन्द्रजी एवम् माँ भगवती से आप सभीके जीवन में सौभाग्य तथा सुख संपन्नता प्रदान करने की मंगल कामना करता हूँ, आप सभी हमेशा खुश रहें, सुखी रहे, आप सभी के मंगलमय् जीवन की ढेरों शुभकामनायें, आज के पावनदिवस की पावन वेला आप सभी के लिये मंगलमय् हो।
✍️ मदन शास्त्री धरैल नालागढ़ हिमाचल प्रदेश✍️
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