नरक चतुर्दशी की पौराणिक कथाः - HUMSAFAR MITRA NEWS

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Wednesday, November 3, 2021

 जय परशुरामजी

नरक चतुर्दशी की पौराणिक कथाः

'हमसफर मित्र न्यूज' 


नरकासुर एक दैत्य था, जिसका श्रीकृष्ण ने अपनी तीसरी पत्नी सत्यभामा की सहायता से संहार किया था। श्रीकृष्ण ने उसका संहार कर 16 हजार लड़कियों को कैद से आजाद करवाया था। तत्पश्चात उन लड़कियों को उनके माता पिता के पास जाने का निवेदन किया , जिसे उन्होनें अस्विकार कर कृष्ण से विवाह का प्रस्ताव रखा ,बाद में यही कृष्ण की सोलह हजार पत्नियां ऐवं आठ मुख्य पटरानियां मिलाकर सोलह हजार आठ रानियां कहलायी ।नरकासुर के वध के कारण इस दिन को नरक चतुर्दशी के रूप में मनाते हैं । 

नरक चतुर्दशी में दीपदान का महत्व

इस दिन यमराज को प्रसन्न करने के लिए दीपदान करने का विधान है। इस दिन घर के मुख्य द्वार पर सरसों के तेल का दीया जलाना चाहिए और घर के भीतर और बाहर नाली के आस-पास भी दीया प्रज्ज्वलित करके रखना चाहिए। इस दिन दीप दान करने से माता लक्ष्मी का वास घर में बना रहता है।

नरक चतुर्दशी में होती है यमराज की पूजा

नरक चतुर्दशी के दिन मुख्य रूप से यमराज की पूजा की जाती है। एक पौराणिक कथा के अनुसार जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर दैत्यराज बलि से तीन पग धरती मांगकर तीनों लोकों को नाप लिया तो राजा बलि ने उनसे प्रार्थना की- 'हे प्रभु! मैं आपसे एक वरदान मांगना चाहता हूं। यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं तो वर देकर मुझे कृतार्थ कीजिए। तब भगवान वामन ने पूछा- क्या वरदान मांगना चाहते हो, राजन? दैत्यराज बलि बोले- प्रभु! आपने कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से लेकर अमावस्या की अवधि में मेरी संपूर्ण पृथ्वी नाप ली है, इसलिए जो व्यक्ति मेरे राज्य में चतुर्दशी के दिन यमराज के लिए दीपदान करे, उसे यम यातना नहीं होनी चाहिए और जो व्यक्ति इन तीन दिनों में दीपावली  का पर्व मनाए, उनके घर को लक्ष्मीजी कभी न छोड़ें। राजा बलि की प्रार्थना सुनकर भगवान वामन बोले- राजन! मेरा वरदान है कि जो चतुर्दशी के दिन नरक के स्वामी यमराज को दीपदान करेंगे, उनके पितर कभी नरक में नहीं रहेंगे और जो व्यक्ति इन तीन दिनों में दीपावली का उत्सव मनाएंगे, उन्हें छोड़कर मेरी प्रिय लक्ष्मी अन्यत्र न जाएंगी। तभी से नरक चतुर्दशी का महत्व है और इस दिन बड़ी श्रद्धा भाव से डीप दान किया जाता है।


पं.गणेशदत्त राजू तिवारी जिलाध्यक्ष
मल्हार
विश्व ब्राह्मण महापरिषद बिलासपुर छ.ग.।

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