वटसावित्री पूजन विधि एवं व्रतकथा - HUMSAFAR MITRA NEWS

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Wednesday, June 9, 2021

 जय श्री परशुरामजीः

वटसावित्री पूजन विधि एवं व्रतकथा 

'हमसफर मित्र न्यूज' 

वट सावित्री व्रत 10 जून, गुरुवार को है. वट सावित्री व्रत जीवनसाथी की लंबी आयु और स्वस्थ जीवन की कामना हेतु किया जाता है. इस दिन महिलाएं बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं, परिक्रमा करती हैं और कलावा बांधती हैं. इस बार शनि जयंती और सूर्य ग्रहण वाले दिन वट सावित्री व्रत पड़ रहा है. वट सावित्री व्रत पति की लंबी आयु के लिए रखा जाता है।

वट सावित्री व्रत के लिए पूजन सामग्री:

बांस की लकड़ी से बना बेना (पंखा), लाल और पीले रंग का कलावा, अगरबत्ती या धूपबत्ती, पांच प्रकार के 5 फल, तांबे के लोटे में पानी, पूजा के लिए सिन्दूर और लाल रंग का वस्त्र पूजा में बिछाने के लिए।

वट सावित्री व्रत शुभ मुहूर्त:

अमावस्या तिथि प्रारम्भ: 9 जून 2021, दोपहर 01:57 बजे

अमावस्या तिथि समाप्त: 10 जून 2021, शाम 04:22 बजे

उदया तिथि में अमावस्या तिथि 10 जून को है, इसलिए यह व्रत और पूजन 10 जून को करना ही शुभ है।

वट सावित्री व्रत पूजा विधि:

शादीशुदा महिलाएं इस दिन तड़के सुबह उठकर नहा-धोकर पवित्र हो जाएं. इसके बाद लाल या पीली साड़ी पहनकर पूरा दुल्हन की तरह सजें-संवरें. अब बांस की पूजा वाली डलिया में पूजा का सारा सामान व्यवस्थित तरीके से रख लें. अब वट (बरगद) के पेड़ के नीचे के स्थान को अच्छे से साफ़ कर वहां एक चौकी लगाकर सावित्री और सत्यवान की मूर्ति स्थापित कर दें. इसके बाद फूल, रोली, कलावा, अक्षत, दिया, धूपबत्ती और सिन्दूर से उनका पूजन करें. इसके बाद उन्हें लाल रंग का वस्त्र अर्पित करें और साथ ही फल भी चढ़ाएं. इसके बाद बेना (पंखे) से हवा करें. अब अपने बालों में बरगद का एक पत्ता खोंस लें. अब खड़े होकर 5, 11, 21, 51, 108 यानी कि विषम संख्या में वट के पेड़ के चारों तरफ परिक्रमा करें।

卐। जय श्री हरि ।卐। 

🌸सती सावित्री सत्यवान की कथा🌸

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महाभारत एक ऐसा ग्रन्थ है जिसमे अनेकों पौराणिक, धार्मिक कथा-कहानियों का संग्रह है। ऐसी ही एक कहानी है सावित्री और सत्यवान की, जिसका सर्वप्रथम वर्णन महाभारत के वनपर्व में मिलता है।  जब वन में गए युधिष्ठर, मार्कण्डेय मुनि से पूछते है की क्या कोई अन्य नारी भी द्रोपदी की जैसे पतिव्रता हुई है जो पैदा तो राजकुल में हुई है पर पतिव्रत धर्म निभाने के लिए जंगल-जंगल भटक रही है। तब मार्कण्डेय मुनि, युधिष्ठर को कहते है की पहले भी सावित्री नाम की एक नारी इससे भी कठिन पतिव्रत धर्म का पालन कर चुकी है और मुनि, युधिष्ठर को यह कथा सुनाते है।


मद्रदेश के अश्वपतिनाम का एक बड़ा ही धार्मिक राजा था। जिसकी पुत्री का नाम सावित्री था। सावित्री जब विवाह योग्य हो गई। तब महाराज उसके विवाह के लिए बहुत चिंतित थे। उन्होंने सावित्री से कहा बेटी अब तू विवाह के योग्य हो गयी है। इसलिए स्वयं ही अपने योग्य वर चुनकर उससे विवाह कर लें। धर्मशास्त्र में ऐसी आज्ञा है कि विवाह योग्य हो जाने पर जो पिता कन्यादान नहीं करता, वह पिता निंदनीय है। ऋतुकाल में जो स्त्री से समागम नहीं करता वह पति निंदा का पात्र है। पति के मर जाने पर उस विधवा माता का जो पालन नहीं करता । वह पुत्र निंदनीय है।


तब सावित्री शीघ्र ही वर की खोज करने के लिए चल दी। वह राजर्षियों के रमणीय तपोवन में गई। कुछ दिन तक वह वर की तलाश में घुमती रही। एक दिन मद्रराज अश्वपति अपनी सभा में बैठे हुए देवर्षि बातें कर रहे थे। उसी समय मंत्रियों के सहित सावित्री समस्त वापस लौटी। तब राजा की सभा में नारदजी भी उपस्थित थे। नारदजी ने जब राजकुमारी के बारे में राजा से पूछा तो राजा ने कहा कि वे अपने वर की तलाश में गई हैं। जब राजकुमारी दरबार पहुंची तो और राजा ने उनसे वर के चुनाव के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि उन्होंने शाल्वदेश के राजा के पुत्र जो जंगल में पले-बढ़े हैं उन्हें पति रूप में स्वीकार किया है।


उनका नाम सत्यवान है। तब नारदमुनि बोले राजेन्द्र ये तो बहुत खेद की बात है क्योंकि इस वर में एक दोष है तब राजा ने पूछा वो क्या तो उन्होंने कहा जो वर सावित्री ने चुना है उसकी आयु कम है। वह सिर्फ एक वर्ष के बाद मरने वाला है। उसके बाद वह अपना देहत्याग देगा। तब सावित्री ने कहा पिताजी कन्यादान एकबार ही किया जाता है जिसे मैंने एक बार वरण कर लिया है। मैं उसी से विवाह करूंगी आप उसे कन्यादान कर दें। उसके बाद सावित्री के द्वारा चुने हुए वर सत्यवान से धुमधाम और पूरे विधि-विधान से विवाह करवा दिया गया।


सत्यवान व सावित्री के विवाह को बहुत समय बीत गया। जिस दिन सत्यवान मरने वाला था वह करीब था। सावित्री एक-एक दिन गिनती रहती थी। उसके दिल में नारदजी का वचन सदा ही बना रहता था। जब उसने देखा कि अब इन्हें चौथे दिन मरना है। उसने तीन दिन व्रत धारण किया। जब सत्यवान जंगल में लकड़ी काटने गया तो सावित्री ने उससे कहा कि मैं भी साथ चलुंगी। तब सत्यवान ने सावित्री से कहा तुम व्रत के कारण कमजोर हो रही हो। जंगल का रास्ता बहुत कठिन और परेशानियों भरा है। इसलिए आप यहीं रहें। लेकिन सावित्री नहीं मानी उसने जिद पकड़ ली और सत्यवान के साथ जंगल की ओर चल दी।


सत्यवान जब लकड़ी काटने लगा तो अचानक उसकी तबीयत बिगडऩे लगी। वह सावित्री से बोला मैं स्वस्थ महसूस नही कर रहा हूं सावित्री मुझमें यहा बैठने की भी हिम्मत नहीं है। तब सावित्री ने सत्यवान का सिर अपनी गोद में रख लिया। फिर वह नारदजी की बात याद करके दिन व समय का विचार करने लगी। इतने में ही उसे वहां एक बहुत भयानक पुरुष दिखाई दिया। जिसके हाथ में पाश था। वे यमराज थे। उन्होंने सावित्री से कहा तू पतिव्रता स्त्री है। इसलिए मैं तुझसे संभाषण कर लूंगा। सावित्री ने कहा आप कौन है तब यमराज ने कहा मैं यमराज हूं। इसके बाद यमराज सत्यवान के शरीर में से प्राण निकालकर उसे पाश में बांधकर दक्षिण दिशा की ओर चल दिए। सावित्री बोली मेरे पतिदेव को जहां भी ले जाया जाएगा मैं भी वहां जाऊंगी। तब यमराज ने उसे समझाते हुए कहा मैं उसके प्राण नहीं लौटा सकता तू मनचाहा वर मांग ले।


तब सावित्री ने वर में अपने श्वसुर के आंखे मांग ली। यमराज ने कहा तथास्तु लेकिन वह फिर उनके पीछे चलने लगी। तब यमराज ने उसे फिर समझाया और वर मांगने को कहा उसने दूसरा वर मांगा कि मेरे श्वसुर को उनका राज्य वापस मिल जाए। उसके बाद तीसरा वर मांगा मेरे पिता जिन्हें कोई पुत्र नहीं हैं उन्हें सौ पुत्र हों। यमराज ने फिर कहा सावित्री तुम वापस लौट जाओ चाहो तो मुझसे कोई और वर मांग लो। तब सावित्री ने कहा मुझे सत्यवान से सौ यशस्वी पुत्र हों। यमराज ने कहा तथास्तु। यमराज फिर सत्यवान के प्राणों को अपने पाश में जकड़े आगे बढऩे लगे। सावित्री ने फिर भी हार नहीं मानी तब यमराज ने कहा तुम वापस लौट जाओ तो सावित्री ने कहा मैं कैसे वापस लौट जाऊं । आपने ही मुझे सत्यवान से सौ यशस्वी पुत्र उत्पन्न करने का आर्शीवाद दिया है। तब यमराज ने सत्यवान को पुन: जीवित कर दिया। उसके बाद सावित्री सत्यवान के शव के पास पहुंची और थोड़ी ही देर में सत्यवान के शव में चेतना आ गई।

जय प्रभु! जय श्री हरि ॥

इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित है, इन पर अमल करने से पहले संबंधित पंडित या अपने पुरोहितों से संपर्क करें।धन्यवाद।


पंडित गणेशदत्त राजू तिवारी मल्हार जिलाध्यक्ष
विश्व ब्राह्मण महापरिषद बिलासपुर छ.ग.।
9098571220 /9977701806

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