हाथ से गया समय फिर वापस नहीं आता
समय बीत जाने के बाद व्यक्ति अधिकतर पश्चाताप ही करता है।
ज्योतिष कुमार, धरसिवा
'हमसफर मित्र न्यूज'
बाल्यावस्था में व्यक्ति खेलकूद में अपना समय खो देता है। किशोर अवस्था में पढ़ाई का बोझ रहता है। युवावस्था में धन कमाने की चिंता और घर चलाने का तनाव रहता है। प्रौढ़ अवस्था में समाज के भी कुछ काम करने पड़ते हैं। फिर 50 55 वर्ष की आयु के बाद वृद्धावस्था आरंभ हो जाती है। तब व्यक्ति का ज्ञान कुछ परिपक्व होता है, और जीने का ढंग समझ में आता है। तब तक शरीर में शक्ति बहुत घट जाती है। उस समय व्यक्ति अपने जीवन भर के अर्जित ज्ञान से कुछ विशेष कार्य करना चाहता है। अपनी कुछ आध्यात्मिक उन्नति करना चाहता है। कुछ व्यायाम ध्यान उपासना स्वाध्याय सत्संग आदि करना चाहता है। परन्तु तब तक शरीर और इंद्रियां ढीली हो जाती हैं, इस कारण वह कुछ विशेष कर नहीं पाता, और बस केवल पश्चाताप ही करता है, कि *यह जीवन तो अब बीत गया, शक्ति रही नहीं, अब तो अगले जन्म में ही कुछ करेंगे. इस प्रकार से पश्चाताप करता हुआ व्यक्ति, चाहते हुए भी कुछ विशेष कार्य नहीं कर पाता, और पश्चाताप की स्थिति में ही इस संसार से विदा हो जाता है।
इस प्रकार से समय की कीमत व्यक्ति को बहुत देर से समझ में आती है। अधिकांश लोगों के साथ ऐसा ही होता है। बहुत कम लोग ऐसे होते हैं, जो पूर्व जन्मों के अच्छे संस्कारों के कारण बचपन में, या किशोरावस्था में ही समय का मूल्य समझ लेते हैं। उन्हें बचपन से ही माता-पिता के उत्तम प्रशिक्षण से और पूर्व जन्मों के उत्तम संस्कारों से समय का मूल्य समझ में आ जाता है। वे तभी से अच्छे अच्छे कार्य करते जाते हैं, और वृद्धावस्था आने तक वे पर्याप्त अच्छी उन्नति कर लेते हैं। इस प्रकार के लोग अपने समय का पूरा सदुपयोग करते हैं। इनका जीवन सफल है। परन्तु ऐसे लोग बहुत कम होते हैं। अधिकांश लोग तो वैसे ही जीवन जीते हैं, जैसा ऊपर बताया गया है।
आपको भी अपनी वृद्धावस्था में पश्चाताप न करना पड़े, इसलिए छोटी आयु से ही समय का मूल्य समझें। अपने बड़े बुजुर्गों के अनुभव से लाभ उठाएं, उनके निर्देश आदेश का पालन करें, व्यायाम ध्यान उपासना स्वाध्याय सत्संग आदि शुभ कर्मों का आचरण करें, और अपने जीवन को सफल बनाएं।
➳✿࿐ *Jyotish Kumar* ⍟
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