सेवा धर्म से मिलती है सुख और शांति... - HUMSAFAR MITRA NEWS

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Monday, April 26, 2021

 'प्रेरक प्रसंग' 

सेवा धर्म से मिलती हैं सुख और शांति

 

प्रस्तुति - मनितोष सरकार, बिल्हा (संचालक /संपादक) 

'हमसफर मित्र न्यूज' 




'हमसफर मित्र न्यूज' आज के 'प्रेरक प्रसंग' में ये बताना चाहता है कि पर सेवा से ही प्राप्त होता है सुख और शांति। वर्तमान कोरोना महामारी में समुचा विश्व जुझ रहा हैं, कई दीन दुखियारी इलाज के अभाव में अंतकाल हो जा रहा है, लॉकडाउन के चलते कई गरीब परिवारों को भुखा पेट सोना पड़ रहा है, इन सभी को देखते हुए कुछ ऐसे विवेकशील एवं धनाढ्य व्यक्ति हैं जो निशर्त सेवा भाव में जुटे हैं। मेरे विचार से उनसे ज्यादा सुख और शांति शायद ही कोई महसूस कर रहा होगा। मैं आभार व्यक्त करता हूं उन दान दाताओं को जो इस संकटकाल में सेवा भाव से लोगों को मदद करते आ रहे हैं। मैं बिल्हा के उन अग्रवाल बंधुओं को भी आभार व्यक्त करता हूं जिन्होंने कोरोना से ग्रसित मरीजों को अॉक्सीजन के तकलीफों को दूर करने के लिए 10 अॉक्सीजन मशीनें निशुल्क उपलब्ध कराई। तो आइये नीचे लिखे 'प्रेरक प्रसंग' का अध्ययन करते हैं... 

"एक साधु स्वामी विवेकानन्द जी के पास आया।अभिवादन करने के बाद उसने स्वामी जी को बताया कि वह उनके पास किसी विशेष काम से आया है। "स्वामी जी, मैने सब कुछ त्याग दिया है,मोह माया के बंधन से छूट गया हूँ परंतु मुझे शांति नहीं मिली। मन  सदा भटकता रहता है। एक गुरु के पास गया था जिन्होंने एक मंत्र भी दिया था और बताया था कि इसके जाप से अनहदनाद सुनाई देगा और फिर शांति मिलेगी। बड़ी लगन से मंत्र का जाप किया,फिर भी मन शांत नहीं हुआ।अब मैं परेशान हूँ।" इतना कहकर उस साधु की आँखे गीली हो गई। "क्या आप सचमुच शान्ति चाहते हैं",विवेकानन्द जी ने पूछा। बड़े उदासीन स्वर में साधु बोला ,इसीलिये तो आपके पास आया हूँ। स्वामी जी ने कहा,"अच्छा,मैं तुम्हें शान्ति का सरल मार्ग बताता हूँ। इतना जान लो कि सेवा धर्म बड़ा महान है।घर से निकलो और बाहर जाकर भूखों को भोजन दो,प्यासों को पानी पिलाओ,विद्यारहितों को विद्या दो और दीन,दुर्बल,दुखियों एवं रोगियों की तन,मन और धन से सहायता करो। सेवा द्वारा मनुष्य का अंतःकरण जितनी जल्दी निर्मल,शान्त,शुद्ध एवं पवित्र होता है,उतना किसी और काम से नहीं। ऐसा करने से आपको सुख,शान्ति मिलेगी।" साधु एक नए संकल्प के साथ चला गया। उसे समझ आ गयी कि मानव जाति की निः स्वार्थ सेवा से ही मनुष्य को शान्ति प्राप्त हो सकती है।"


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