सिर्फ एक रुपया काफी हैं ज़िंदगी बदलनें के लिए, लाखों के तो सिर्फ बहानें मिलते हैं:- सीमा वर्मा
बिलासपुर। संजय मिश्रा
'हमसफर मित्र न्यूज'।
जानिए कैसे बिलासपुर की बेटी सीमा ‘'एक रुपया मुहिम’' से गरीब और जरूरतमंदों के जीवन में ला रही हैं बदलाव
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ प्रदेश की सीमा वर्मा न्यायधानी बिलासपुर शहर के कौश्लेंद्र राव कॉलेज में एल.एल.बी. अंतिम वर्ष की छात्रा है, सीमा पिछले 5 सालों में 13 हज़ार से अधिक स्कूली बच्चों के लिए स्टेशनरी सामग्री उपलब्ध करवा चुकी हैं और 34 स्कूली बच्चों की पढ़ाई का एक वर्ष का खर्च भी उठा चुकी हैं, इस समय सीमा 50 बच्चों को निःशुल्क शिक्षा दे रही हैं।
मूलतः छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर की रहनें वाली सीमा अपनी पढ़ाई के साथ एक रूपिया मुहिम भी चलाती है, इस मुहिम के ज़रिए सीमा जरूरतमंद और गरीब बच्चों की मदद करती है।
“एक रुपिया मुहीम” के पीछे की कहानी
सीमा “एक रुपिया मुहीम” की शुरुआत को लेकर बताती हैं कि उसके साथ पढ़नें वाली सुनीता यादव एक दिव्यांग छात्रा है, वह ट्राईसिकल की मदद से कॉलेज आती थी, सीमा की इच्छा थी कि वह उसे इलेक्ट्रॉनिक ट्राईसिकल दिलवाए, उसनें इस विषय पर अपनें कॉलेज के प्रिंसिपल से बात की, उनका जवाब आया- एक हफ्ते बाद आना। इसके बाद सीमा नें सोचा इसके बारे में बाजार में भी पता कर लिया जाए, सीमा बताती हैं कि उसके दिमाग में पहले से ही यह बात चल रही थी कि अपनी सहेली के लिए कैसे भी करके इलेक्ट्रॉनिक ट्राईसिकल लाना है, फिर चाहे इसके लिए उसे कॉलेज के छात्रों के बीच क्यों न चंदा करना पड़े।
बाजार नें किया निराश
सीमा अपने कॉलेज से ट्राईसिकल के बार में पता करनें के लिए निकली, वह शहर के साईकिल दुकान गई तो मालूम पड़ा कि यह ट्राईसिकल मेडिकल काम्प्लेक्स में मिलेगी, जब सीमा मेडिकल काम्प्लेक्स पहुंची तो पता चला कि ट्राईसिकल यहाँ भी नहीं है, फिर सीमा नें मेडिकल शॉप वाले से ही पूछा कि ये कहाँ मिलेगा।
इसके बाद सीमा मेडिकल शॉप संचालक के बताए हुए पते पर पहुंची और जब ट्राईसिकल का दाम पूछा तो पता चला कि उसकी कीमत 35 हज़ार रूपये है और इसे दिल्ली से आर्डर पर मंगवाना पड़ता है, सीमा इस वक्त को याद करते हुए बताती है कि यह क्षण उनके लिए काफी कठिन था, लेकिन किसी भी हाल में वह अपनी सहेली सुनीता के लिए ट्राईसिकल लेनें ही वाली थी।
पंचर वाले नें दिखाया रास्ता
सीमा इसके बाद वहां से निकलकर एक पंचर वाले की दुकान पर जा पहुंची और पंचर बनानें वाले से इस विषय में जानकारी मांगी तो उसने पूछा कि आप कितना पढ़ी लिखी हो...?
सीमा नें जवाब दिया – बी.एस.सी. फाइनल ईयर में !
पंचर वाले नें कहा मैडम! ये सरकार फ्री ऑफ़ कॉस्ट देती है, सीमा नें इसके प्रोसेस के बारे में पूछा! फिर उसनें बताया कि उसे जिला पुर्नवास केंद्र जाना चाहिए, जहाँ आपको डाक्यूमेंट्स सबमिट करने होंगे, जिसमें 6 महिना या साल भर तक का वक़्त लग सकता है।
तब सीमा नें उससे पूछा कि इसे जल्दी पानें का कोई और रास्ता है क्या...?
उसनें सीमा को कलेक्टर या कमिश्नर के पास जानें का सुझाव दिया। उसनें यह भी बताया कि कमिश्नर साहब काफी नर्म दिल के और भावुक है, वह आपकी जल्दी मदद करेंगे।
प्रशासन से मिली मदद
सीमा नें बताया इसके बाद वह अपनें एक दोस्त के साथ कमिश्नर ऑफिस गई, जहाँ उसनें कमिश्नर समेत अन्य अधिकारियों को सुनीता के बारे में बताया, उसनें कमिश्नर से कहा कि सुनीता उसकी क्लासमेट थी और उसके दिव्यांग होना ही उसके लिए अभिशाप बना हुआ है, जिसके चलते उसे एक साल ब्रेक भी लगा है।
सीमा नें बताया कि कमिश्नर ऑफिस में सीमा की बात सुननें के बाद वहां के अधिकारियों ने डॉक्यूमेंट जमा करनें के लिए कहा, इसके बाद उसनें सभी डॉक्यूमेंट जमा कर दिए, दस्तावेज जमा करनें के बाद दूसरे दिन एडिशनल कमिश्नर नें सीमा को कॉल कर कहा अपनी फ्रेंड को डाक्यूमेंट्स में साइन करनें के लिए ऑफिस ले आओ, दस्तावेजों में हस्ताक्षर करानें के बाद तत्कालीन कमिश्नर सोनमणि बोरा के हाथों से इलेक्ट्रॉनिक ट्राईसिकल मिल गई।
पूरे वाकये से यह सीखा
सीमा बताती है की इस घटना से उसनें अपनें जीवन में तीन बातें सीखी :– सीमा कहती है कि वह औरों कि तरह अपनें घर में बैठी होती तो उसकी सहेली को ट्राईसिकल नहीं मिल पाती, यदि पंचर वाले नें उसे गाइड नहीं किया होता तो उसे मालूम ही नहीं चलता सरकार की ओर से दिव्यांग जनों के लिए योजना चलती है, हमारे और सरकार के बीच कितनी ज्यादा कम्युनिकेशन गैप है।
बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी की स्थापना से मिला ‘'एक रुपया मुहिम'’ का आईडिया
सीमा नें बताया कि जिस प्रकार बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय लोगों से एक-एक पैसा इक्कठा कर बनवाया गया था, इसी कांसेप्ट में साथ मैं लोगों से एक-एक रूपये मांग कर इक्कठा करती थी जो जरुरतमंदों कि जरूत में काम आती है।
सीमा नें बताया कि जब उसनें पैसा इक्कठा करनें की शुरूआत की तो उसनें लगभग ₹2,34,000 तक इक्कठा किया इन रूपयों से हम बच्चों की फीस भरते जा रहे थे, स्टार्टिंग में तो मैंने खुद लोगों से बच्चों के लिए मिले पैसों से उनकी फीस भरी और धीरे-धीरे लोग खुद मेरे बच्चों से जुड़नें लगे, जैसे बिलासपुर के तत्कालीन एस.पी. मयंक श्रीवास्तव नें 6 बच्चों को गोद ले लिया था, इसके बाद आईपीएस और बिलासपुर रेंज के आईजी रतनलाल डांगी नें भी सीमा को आर्थिक सहायता दी और उसके समाज सेवा के इस काम को सराहा, सीमा आईपीएस डांगी और अपनी माँ को अपने जीवन की प्रेरणा भी मानती है।
सीमा कहती हैं – यह कार्य युवाओं को मोटिवेट करनें के लिए भी करती हैं, बच्चों को गुड टच, बैड टच, पॉक्सो एक्ट, मौलिक अधिकारों, बाल विवाह, राइट टु एजूकेशन, बाल मजदूरी आदि की जानकारी भी देती हैं, सीमा सभी लोगों से अपील करती हैं कि आप अपनें फील्ड से रिलेटेड जानकारी अपनें घर वालो को, आस पास वालों को देकर उन्हें जागरूक कर सकते है, जागरुकता से ही अपराध में कमी आएगी।
सीमा के काम को काफी सराहना मिली है और अब तक क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर के दो दर्जन से ज्यादा पुरस्कार उन्हें मिलें हैं।
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