हमें कर्मों का फल नहीं बल्कि कर्म के पीछे के भावों का फल मिलता है... - HUMSAFAR MITRA NEWS

Advertisment

Advertisment
Sarkar Online Center

Breaking

Followers


Youtube

Wednesday, March 24, 2021

 🙏🏻जय परशुरामजी🙏🏻

हमें कर्मों का फल नहीं बल्कि कर्म के पीछे के भावों का फल मिलता है।

'हमसफर मित्र न्यूज'। 

**********************

1👉  आपने हर किसी से सुना होगा कि अच्छे कर्म करो फल अच्छा मिलेगा, बुरा कर्म करोगे तो फल भी बुरा मिलेगा । सही बात है लेकिन हमें कर्मों का नहीं अपितु भावों का फल मिलता है। आइए इस सिद्धान्त को समझने का प्रयास करते हैं।

2👉  फल हमें भावों का मिलता है ना कि कर्मों का, कर्म तो सिर्फ परिणाम तक पहुंचने का साधन मात्र है । ईश्वर मन को नोट कर रहा है ना कि शरीर को, शरीर से आप क्या करते हैं-ईश्वर को कोई मतलब नहीं है। बल्कि आपके मन में क्या चल रहा है,  ईश्वर वह नोट कर रहा है। शरीर तो वही करेगा जैसा मन उसे चलाएगा।

3👉  भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को 700 श्लोक की गीता सुनाकर भाव ही तो बदले, कहां वह कह रहा था कि ब्रह्म हत्या का पाप लगेगा और पुरी गीता ध्यान से सुनने के बाद कहता है "नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा" । मेरा मोह नष्ट हो गया अब मैं युद्ध करुंगा। कहां उसे अपने पूर्व भावों की वजह से 'ब्रह्म हत्या' का पाप लगता परन्तु अब तो 'धर्म की रक्षा' का पुण्य मिलेगा और मिला भी क्योंकि भाव बदल गए तो परिणाम बदल गए, लेकिन कर्म वही रहा।

4👉  अगर कोई बीच सड़क पर लोगों पर लाठी चलाएगा तो क्या होगा ? शायद पुलिस पकड़ ले जाए, शायद एक दिन जेल में भी डाल दे। पर अगर यही काम कोई पुलिस वाला करे, तो उसे जेल में नहीं डालेंगे बल्कि मेडल से नवाजा जाएगा। अब कर्म तो एक ही किया लाठी  चार्ज का, पर एक को मेडल और एक को जेल ? क्योंकि कर्म के पीछे भाव अलग अलग थे, एक का भाव हिंसा को कम करने का था तथा दूसरे का हिंसा फैलाना।

5👉  व्रत उपवास में भी हम कर्म एक ही करते हैं - भूखा रहने या भूख सहन करने का, पर भाव अथवा उद्देश्य अलग-अलग होने से फल अलग-अलग मिलता है, वैभव लक्ष्मी में लक्ष्मी की प्राप्ति, करवाचौथ में पति की लम्बी आयु, 16 सोमवार अच्छे पति के लिए आदि आदि । सभी व्रतों में कर्म एक ही है भूखा रहने का, पर भाव अलग-अलग होने के कारण फल अलग-अलग  मिलता है । कर्म तो फल तक पहुंचने का एक मात्र साधन है । भिखारी को खाना ना मिले तो दो- तीन दिन तक भूखा रहता है - उसे तो किसी फल की प्राप्ति नहीं होती क्योंकि उसके भूखे रहने के पीछे कोई भाव नहीं है। इस प्रकार अलग-अलग भाव होने से फल भी अलग-अलग मिलता है, चाहे कर्म समान ही हो।


पंडित गणेशदत्त राजू तिवारी जिलाध्यक्ष
विश्व ब्राह्मण महापरिषद बिलासपुर छ.ग.।
9098571220/9977701806

No comments:

Post a Comment