कैसे बचें किडनी की बीमारियों से - HUMSAFAR MITRA NEWS

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Sunday, September 27, 2020

 

कैसे बचें किडनी की बीमारियों से

प्रस्तुति - मनितोष सरकार (स्वास्थ्य संपादक - साइंस वाणी) 



'हमसफर मित्र न्यूज'। 

   किडनी हमारे शरीर में पेट के नीचले हिस्से के दोनों ओर एक-एक रहते हैं जो एक अखरोट के आकार का बना रहता है। किडनी हमारे शरीर के रक्त को साफ रखने में मदद करते हैं। हमारे शरीर में दो किडनी होतीं है, अगर एक खराब हो जाती हैं तो एक किडनी से भी काम चलाया जा सकता है। 


   वर्तमान समय में बदलती जीवन शैली के कारण किडनी की बीमारी तेजी से फैल रही है। किडनी की बीमारी रोजमर्रा के जीवन की रफ्तार को कम न कर दे, इस के लिए किडनी के रोगों के कारणों और बचाव से संबंधित जानकारी दे रही हैं हमारी विशेषज्ञ सोमा घोष। 

 

   देश में गुरदे के मरीजों की संख्या दिनोंदिन बढ़ रही है। मधुमेह और अधिक तनाव से पीडि़त व्यक्ति इस की चपेट में ज्यादा आते हैं। दर्दनिवारक दवाओं के अधिक सेवन और वैकल्पिक चिकित्सा में इस्तेमाल होने वाली विभिन्न धातुओं के सेवन से भी व्यक्ति गुरदे की बीमारी का शिकार हो जाता है। इस बीमारी का इलाज आज भी सीमित और महंगा है। प्रत्यारोपण द्वारा ही इस का इलाज संभव हो पाता है। इलाज के बावजूद मरीजों की मृत्युदर अधिक है। लेकिन जो व्यक्ति इस रोग से पीडि़त हो जाते हैं उन की शुरू में जांच कर के इलाज करने से रोग अपनी अंतिम अवस्था तक नहीं पहुंच पाता और समय रहते स्वस्थ हो जाता है।


   देश में किडनी की समस्याओं से जूझ रहे अनेकों मरीजों को देखते हुए वर्ष 1993 में नर्मदाबेन की याद में नर्मदा किडनी फाउंडेशन की स्थापना की गई। इस संस्था का उद्देश्य था, किडनी दान के नाम पर होने वाली धोखाधड़ी को रोकना और जरूरतमंद मरीज तक किडनी का पहुंचना व उस का प्रत्यारोपण होना। इस संस्था के द्वारा लोगों को किडनी का महत्त्व, उस के कार्य और समस्याओं के बारे में भी बताया जाता है ताकि समय रहते लोगों का इलाज संभव हो सके। 

मुंबई के लीलावती और नानावती अस्पताल के कंसल्टैंट नैफ्रौलोजिस्ट डा. भरत शाह का कहना है कि भारत में किडनी प्रत्यारोपण के औपरेशन का काम काफी कम है। 130 करोड़ की आबादी वाले इस देश में लगभग 12 करोड़ से अधिक लोग किडनी रोग से पीडि़त हैं। इन में से 3,500 हजार लोगों को ही किडनी के दानदाता मिलते हैं। ब्रेन डैथ वालों से किडनी बहुत कम मिल पाती है। ज्यादातर किडनी उन के सगे-संबंधियों द्वारा ही मिलती है। इसलिए प्रत्यारोपण के समय अवयवों की कमी खलती है। इस की संख्या में बढ़ोतरी किए जाने की जरूरत है।


   डॉ. भरत शाह का मानना है कि पहले लोग किडनी प्रत्यारोपण से डरते थे। लोगों में चेतना लाने के  लिए डॉ. भरत शाह को बताना पड़ा कि यह बीमारी क्या है। समूह में बहस के बाद नर्मदा किडनी फाउंडेशन नाम की यह संस्था इस नतीजे पर पहुंची कि किडनी का प्रत्यारोपण कर मरीज को स्वस्थ किया जाए। इस के लिए लोग किडनी दान करें।

  

   वर्ष 1994 में फाउंडेशन को मान्यता मिली, तब उस ने अपील की कि जिंदा व्यक्ति चाहे तो अपनी एक किडनी दान कर सकता है। इस के बाद ‘ब्रेन डैथ’ की बात चली और पाया गया कि ‘बे्रन डैथ’ के बाद कई घंटे तक व्यक्ति की किडनी ली जा सकती है। 1995 तक इस दिशा में जितना काम होना चाहिए था उतना नहीं हो पाया पर डॉ. भरत शाह की लगातार कोशिश से इस कल्याणकारी काम में सुधार आ रहा है। 


किडनी के कार्य


* मूत्र निर्माण एवं उत्सर्जन। 

* शरीर के जलअंश का नियमन। 

* ब्लडप्रैशर का नियमन। 

* एरिथ्रोपोइटिन नामक पदार्थ का उत्पादन। यह पदार्थ लाल रक्त कणों के निर्माण एवं बाद में हीमोग्लोबिन बनाने में सहायता करता है। 

*  विटामिन डी को सक्रिय कर के अस्थि निर्माण करने में सहायता करता है।


किडनी निष्क्रियता के चरण


तत्काल किडनी निष्क्रियता


 इस में किडनियां तात्कालिक रूप से अचानक बेकार हो जाती हैं।


तीव्र किडनी विफलता


 इस में किडनी अचानक कुछ दिन या कुछ घंटे के लिए काम करना बंद कर देती है लेकिन कुछ घंटे बाद ही यह फिर सक्रिय हो जाती है।


दीर्घकालीन किडनी विफलता


 इस स्थिति में व्यक्ति की किडनी धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त हो कर पूरी तरह निष्क्रिय हो जाती है।


किडनी रोग की अंतिम अवस्था


   इस का अर्थ यह है कि व्यक्ति की दोनों किडनियां अब किसी भी तरह काम करने की पहले जैसी अवस्था में नहीं लाई जा सकतीं। इसे किडनी की मृत्यु कहा जा सकता है। इस अवस्था में मरीज को किडनी प्रत्यारोपण द्वारा ही बचाया जा सकता है।


किडनी रोग के प्रमुख कारण


* मधुमेह। 

* अति तनाव। 

* दीर्घकालीन स्तबकवृक्कशोथ। 

* पेशाब के मार्ग में पथरी। 

* पेशाब की थैली में संक्रमण। 

* दर्द निवारक दवाओं का अधिक सेवन।


किडनी विफलता के लक्षण


* शरीर के अंगों में सूजन.

* उच्च रक्तचाप.

* सतत कमजोरी का बढ़ना.

* हड्डियों में दर्द.

* झागदार एवं रक्तमय मूत्र.

* पेशाब की मात्रा व संख्या में बदलाव या बारबार पेशाब के लिए जाना। 

*  अनीमिया का बढ़ना।


   शुरुआती लक्षणों के जाहिर होने पर सतर्क हो जाना चाहिए ताकि इलाज संभव हो सके। इस के इलाज का खर्च किडनी निकाल कर लगाने तक लगभग 3 लाख 50 हजार रुपए और इसे शरीर द्वारा नकारे न जाने पर पहले महीने 15 हजार रुपए की दवाइयां और बाद में 3 हजार रुपए तक दवाइयों पर खर्च करना पड़ता है। मरीज के स्वास्थ्य को देखते हुए खर्च में कमीबेशी हो सकती है। 

डॉ . भरत शाह कहते हैं कि जब भी कोई किडनी मिलती है तो उसे लगाने से ले कर उस के बाद में आने वाले  खर्चे का पूरा विवरण व्यक्ति को दिया जाता है ताकि वह उस की जिम्मेदारी उठा सके।

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