सबसे पहले पिंड दान किसने किया था
जय श्री राधे
'हमसफर मित्र न्यूज
गया जी मे सबसे पहले पिंड दान कौन किया फाल्गु नदी, केक्ति ,गाय, तुलसी , को श्राप और बट वृक्ष को वरदान किसने दिया पौराणिक कथा में वर्णन आता है जब प्रभु राम जी का वनवास हुआ तो पुत्र के वियोग में राजा दशरथ की मृत्यु हो गया उसी समय वनवास काल मे राम लछ्मण और माता सीता तीनो पिता जी के श्राध्द के लिये गया धाम पहुँचते है पिंडदान के लिये श्री राम और लछ्मण जरुरी समान लेने जाते है और माता सीता उनका इंतिजार नदी के तट पर करती है काफी समय बीत जाने के बाद दोनो वापस नही लौटे तभी अचानक राजा दशरथ जी की आत्मा माता सीता के पास आकर पिंडदान की मांग करती है राजा दशरथ की मांग पर माता सीता फाल्गु नदी के किनारे बैठ कर वहाँ लगे केक्ति के फूल को गाय को तुलसी को बट वृक्ष को फाल्गु नदी को साक्षी मानकर बालू के पिण्ड बनाकर राजा दशरथ के लिए पिंडदान करती है। कुछ समय बाद जब भगवान राम और लक्ष्मण सामग्री लेकर लौटते है, तब सीता जी उन्हें बताती है कि वे महाराज दशरथ का पिंडदान कर चुकी है। इस पर श्रीराम बिना सामग्री पिंडदान को मानने से इनकार करते हुए उन्हें इसका प्रमाण देने को कहते है।तब फाल्गु नदी केकती गाय तुलसी सभी ने झूठ बोले पर बट वृक्ष ने सच कहा इसके बाद सीताजी ने महाराज दशरथ की आत्मा का ध्यान कर उन्ही से गवाही देने की प्रार्थना की सीता जी के आग्रह पर शवम महराज दसरथ की आत्मा प्रगट हो गयी और कहा सीता जी ने उनका पिंड दान कर दिया है अपने पिता की गवाही पाकर भगवान राम आस्वस्त हो गए वही सीता जी ने फाल्गु नदी को सुख जाने का श्राप दिया इसलिये यहां रेत बालू और मिट्टी सेभी पिंड दिया जाता है कभी जल न रहे बारिश में कुछ समय के लिये जल भरा रहता है फाल्गु नदी के दूसरे तट में सीता को कुंड है वहाँ का पानी नही सूक्तता है केकती के फूल को श्राप दिया तुम्हारा फूल किसी मे न चढ़े तुलसी को श्राप दिया तुम्हारा पौधा फाल्गु नदी में न उगे गाय को श्राप दिया अब तुम्हारा अपमान होगा वही पर वट वृक्ष को आशिर्वाद दिया तुम्हारा पूजा होगा परिकमा हो तम्हारे दरसन के बिना प्राणी के पुण्य अधूरा माना जायेगा।
जय श्री राधे
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