सबसे पहले आप सभी को भोजली त्यौहार की हार्दिक शुभकामनाएं :
भोजली क्या है
लेखक - पं. गणेशदत्त राजू तिवारी जी महाराज, मल्हार।
'हमसफर मित्र'।
भोजली यानी भो-जली। इसका अर्थ है भूमि में जल हो। यही कामना करती है महिलाएं इस गीत के माध्यम से। इसीलिए भोजली देवी को अर्थात प्रकृति की पूजा करती हैं। छत्तीसगढ़ में महिलाएं धान, गेहूं, जौ या उड़द के थोड़े दाने को एक टोकनी में बोती हैं। उस टोकनी में खाद मिट्टी पहले रखती हैं। उसके बाद सावन शुक्ल नवमीं को बो देती हैं। जब पौधे उगते हैं, उसे भोजली देवी कहा जाता है। रक्षाबंधन के बाद भोजली को ले जाते हैं नदी में और वहाँ उसका विसर्जन करते हैं।और गंगा देवी को सम्बोधित करती हुई गाती है -
देवी गंगा
देवी गंगा लहर तुरंगा
हमरो भोजली देवी के
भीजे ओठों अंगा।
मांड़ी भर जोंधरी
पोरिस कुसियारे
जल्दी जल्दी बाढ़ौ भोजली
हो वौ हुसियारे।
आई गई पूरा
बोहाई गई मालगी।
हमरो भोजली देवी के
सोन सोन के कलगी।।
लिपी डारेन पोती डारेन
छोड़ि डारेन कोनहा।
सबोंें पहिरैं लाली चुनरी,
भोजली पहिरै सोना।।
आई गई पूरा,
बोहाई गई झिटका
हमरो भोजली देवी ला
चन्दन के छिटका।
"कुटि डारेन धान
पछिनी डारेन भूसा
लइके लइका हविन भोजली
झनि करिहों गुस्सा"।
कनिहा मा कमर पट्टा
हाथे उरमाले
जोड़ा नारियर धर के भोजली
जाबो कुदुरमाले।।
नानमुन टेपरी म बोयेन जीरा धाने
खड़े रइहा भोजली
खवाबा बीरा पाने।।
आठे के चाउर नवमी बोवा इन
दसमी के भोजली, जराइ कर होईन,
एकादसी के भोजली दूदी पान होईन।
दुआस के भोजली।
मोती पानी चढिन।
तेरस के भोजली
लहसि बिंहस जाइन
चौदस के भोजली
पूजा पाहूर पाइन
पुन्नी के भोजली
ठण्डा होये जाइन।।
No comments:
Post a Comment