यहां हैं रंग बदलने वाले अनुठा शिवमंदिर - HUMSAFAR MITRA NEWS

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Monday, July 6, 2020


रंग बदलने वाले अनुठा शिवमंदिर 

'हमसफर मित्र'। 

   आज से सावन का महीना की शुरूआत हो गया है। ये महीना शिवभक्तों के लिए एकदम खास माना जाता है। सावन महीने के शुरू होते ही भोले के भक्त मंदिरों की तरफ उमड़ने लगते हैं और शिवलिंग की पूजा करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं दुनिया में भगवान शिव का एक ऐसा मंदिर भी मौजूद है, जहां भगवान शिव के अनोखे रूप की पूजा होती है। यह ऐतिहासिक शिव मंदिर राजस्थान के धौलपुर जिले के बीहड़ में है। इस मंदिर को 'अचलेश्वर शिव मंदिर' के नाम से जाना जाता है। इस शिवलिंग के रंग बदलने के पीछे की वजह क्या है आज तक इसका जवाब शोधकर्ताओं तक नहीं दे सका। कई बार यहां वैज्ञानिकों की रिसर्च टीमें भी पहुंचे और जांच पड़ताल की लेकिन चमत्कारी शिवलिंग के रहस्य से पर्दा नहीं उठा सका।

   अचलेश्वर शिव मंदिर के बारे में मान्यता है कि जो भी कुंवारा लड़का या लड़की शादी से पहले मन्नत मांगने आते हैं, उनकी मुरादें जल्द पूरी हो जाती हैं। माना जाता है कि यहां भगवान भोलेनाथ की कृपा से लड़कियों को मनचाहा वर मिल जाता है। कहा जाता है कि जिनकी शादी नहीं होती है, वे जब श्रद्धा से शिवलिंग की पूजा करते हैं तो उनकी भी शादी हो जाती है। बताया जाता है कि यह मंदिर हजारों साल पुराना है।

   पहले बीहड़ में मंदिर होने की वजह से श्रद्धालु कम आते थे, लेकिन हालात बदलने के बाद अब यहां दूर-दूर से लाखों की संख्या में भक्त आते हैं और चमत्कारी शिवलिंग की पूजा-अर्चना करते हैं।

   अचलेश्वर महादेव मंदिर देश का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां भगवान शिव के अंगूठे की पूजा होती है। 15वीं शताब्दी में मेवाड़ शासन राणा कुंभा ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। यहां गर्भगृह में स्वंयभू शिवलिंग पातालखंड के रूप में मौजूद है। इसके ऊपर एक तरफ भगवान शिव के दाहिने पैर के अंगूठे का निशान उभरा हुआ है।

   अंगूठे के नीचे बने प्राकृतिक गड्ढे में कितना भी पानी डाल दिया जाए, लेकिन यह कभी नहीं भरता। अंगूठे पर चढ़ाया जाने वाला पानी कहां जाता है, इसका रहस्य आज तक कोई नहीं जान सका है। मंदिर के पुजारी पन्नालाल का दावा है कि यह देश का इकलौता मंदिर है, जहां भगवान शिव के अंगूठे की पूजा होती है, जबकि सभी मंदिरों में शिवलिंग की पूजा होती है। यहां भगवान शिव के पैरों के निशान भी मौजूद हैं।

   गर्भगृह के बाहर वाराह, नृसिंह, वामन, कच्छप, मत्स्य, कृष्ण, राम, परशुराम, बुद्ध व कलंगी अवतारों की काले पत्थर की मूर्तियां स्थापित हैं। मंदिर में बांयी ओर दो कलात्मक खंभों का धर्मकांटा बना हुआ है। बताया जाता है कि इस क्षेत्र के शासक राजसिंहासन पर बैठने से पहले अचलेश्वर महादेव से आशीर्वाद प्राप्त कर धर्मकांटे के नीचे प्रजा के साथ न्याय की शपथ लेते थे। मंदिर परिसर में द्वारिकाधीश का मंदिर भी बना हुआ है।

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