धर्म कर्म
हम सभी जानते हैं आबद्ध जन्मांतरों की परिणिति
हम सभी जानते हें कि हमारी अधिभौतिक, अधिदैविक और अध्यात्मिक सत्ता प्रकृति के अत्यंत जटिल नियमों में आबद्ध जन्मान्तरों की परिणिति हे । और हम सब अपने माथे पर लिखे सुख-दुःख, धन-दारिद्र्य, मान-अपमान, सफलता-असफलता, स्वास्थ्य-बीमारी, आयु इत्यादि को अपरिहार्य रूप से भोगने के लिए विवश हें ।
फिर भी हम सभी को हमारे लिए किसी द्वारा की गई शुभकामना, प्रार्थना, शुभ सन्देश और सद्भावना की अभिव्यक्ति एक सुखद अनुभूति प्रदान करती हे । माता-पिता, वरिष्टों और संतों का आशीर्वाद तो सुनिश्चित रूप से मनोबल बढाता हे ।
और हम सभी अंतर्मन से इसकी अपेक्षा भी पालते हें, आखिर हम सभी पंचभूत से बने हाड़-माँस के पुतलों की यही न्यूनता-श्रेष्ठता हमें एक दूसरे से बांधे रखती ।
कृते च प्रतिकर्तव्यम् एष धर्मः सनातनः ।
पंडित गणेशदत्त राजू तिवारी, मल्हार।
अध्यक्ष विश्व ब्राह्मण महापरिषद, बिलासपुर, (छ.गढ)।
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