सिर्फ दो मिनट के रोल से फिल्मों में प्रवेश किया संजीव कुमार ने - HUMSAFAR MITRA NEWS

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Tuesday, May 12, 2020

आज का मेहमान - संजीव कुमार


दो मिनट के रोल से फिल्मों में प्रवेश किया संजीव कुमार ने


संजीव कुमार का जन्म 9 जुलाई 1939 में गुजरात के सूरत में जेठालाल जरीवाला के यहां एक गुजराती वैश्य बनिया परिवार में हुआ था। इनका असली नाम हरीभाई जरीवाला था। इन्हें प्यार से लोग कुटुम्बी कहकर पुकारते थे। फिल्मों में आने के बाद इन्हें संजीव कुमार के नाम से जाना जाता है।
बचपन से ही अभिनय में रूचि रखने वाले संजीव कुमार मायानगरी मुंबई आ गया और रंगमंच में जुड़ गया फिर फिल्मालय के एक्टिंग स्कूल में दाखिला लिया। इस दौरान 1960 में बनी फिल्म 'हिन्दुस्तानी' में 2 मिनट का रोल उन्हें दिया गया था। तब से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और छोटे बड़े सभी रोलों में अभिनय करना शुरू कर दिया।
20 वर्ष की उम्र में कई छोटे भुमिका निभाये। फिल्म 'संघर्ष' में दिलीप कुमार के बाहों में दम तोड़ने का एक्टिंग कर एक अच्छे अभिनेता होने का गौरव प्राप्त किया।
इन्होंने लगभग 134 से अधिक फिल्में की है। शुरुआती दौर में अच्छा रोल नहीं मिलने के कारण कई फिल्में फ्लाप नजर आई। सर्वप्रथम मुख्य अभिनेता के तौर पर 1965 में बनी फिल्म 'निशान'में काम किया। धर्मेंद्र के साथ उन्होंने 1968 में फिल्म 'शिकार' में पुलिस अॉफिसर का रोल किया। हालांकि उस दौर में धर्मेंद्र के पास अन्य अभिनेता बौना था, फिर भी इस फिल्म में संजीव कुमार को सर्वश्रेष्ठ अभिनय के लिए फिल्मफेयर अवार्ड मिला।
वर्ष 1970 में बनी फिल्म 'खिलौना' में संजीव कुमार ने एक विजयकमल सिंह नाम के पागल व्यक्ति का किरदार निभाया था। दरअसल विजयकमल को एक सपना नामक लड़की से प्यार हो जाता है, लेकिन उनके पिता उनकी जबरदस्ती शादी कर देते हैं और सपना शादी के मंडप में ही आत्महत्या कर लेती है। ये देखकर विजयकमल अर्थात संजीव पागल हो जाते हैं। इस फिल्म को फिल्मफेयर पुरस्कारों की छह कैटेगरी में नामांकित किया गया था और दो कैटेगरी में पुरस्कार जीते थे।
वर्ष 1972 में आई फिल्म 'सीता और गीता' में संजीव कुमार ने रवि नामक एक लवर बॉय के किरदार में नजर आए थे। फिल्म में हेमामालिनी डबल रोल में नजर आई थी। दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को यह फिल्म इतनी पसंद आई थी कि उन्होंने इस फिल्म को 25 बार देखा था।
फिल्म 'खिलौना' में पागल का रोल अच्छा अदा करने के कारण निर्माता निर्देशक ने उन्हें एक और फिल्म में गूंगे बहरे का रोल दिया था। 1972 में बनी फिल्म 'कोशिश' में हरिचरण माथुर नामक एक गूंगे बहरे का रोल किया था।
वर्ष 1974 में बनी फिल्म 'नया दिन नयी रात में तो कमाल कर दिया था। उन्होंने इस फिल्म में एक साथ 9 रोल कर दर्शकों को अपना अभिनय का अदा दिखा दिया।
वर्ष 1975 में बनी फिल्म ' शोले' में एक जीवंत किरदार निभाने में सफलता मिली। अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, हेमा मालिनी और अमजद खान अभिनीत इस फिल्म में संजीव कुमार ने पूर्व पुलिस अधिकारी ठाकुर बलदेव सिंह का सीरियस रोल निभाया था। जिनका एकमात्र मकसद डाकू गब्बर सिंह से बदला लेना था। वर्ष 2002 में हुए एक सर्वेक्षण में फिल्म 'शोले' को सर्वश्रेष्ठ 10 भारतीय फिल्मों में पहला स्थान दिया गया था। 2005 में इसे 50 सालों की सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार भी मिला।
संजीव कुमार ने ऐसे ही अलग अलग फिल्मों में अलग अलग भुमिकाएं निभाई है। मरते दम तक इन्होंने फिल्में करने का रफ्तार कम नहीं किया। 47 वर्ष के अल्पायु में 6 नवंबर 1985 में इनकी मुंबई में स्वर्गवास हो गया। इनके निधन के बाद भी इनका कई फिल्में रिलीज हुई है।

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