बच्चे मन के सच्चे - HUMSAFAR MITRA NEWS

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Thursday, October 26, 2023

'आज की कहानी' 

 बच्चे मन के सच्चे

'हमसफर मित्र न्यूज' 



अम्मा नून कम है तरकारी में ।

चूल्हे के पास बैठा टुकुन खाने का पहला 

निवाला मुंह में रखते हुए बोल पड़ा ।


"दे रहे हैं रुको ।

" अम्मा ने इतना कहते हुए नमक के डिब्बे में 

हाथ लगाया तो टुकुन ने हाथ आगे कर दिया । 


"नहीं हाथ में नहीं देंगे ।

" इतना कह कर अम्मा ने थाली में नमक रख दिया । 


"हाथ में काहे नहीं ?

" खाने को छोड़ अम्मा की तरफ अपनी बड़ी बड़ी 

आंखों से घूरता हुआ टुकुन बोला।  


"हाथ में नून देने से सब धरम चला जाता है ।

" रोटी सेकती हुई अम्मा ने जवाब दिया । 


"कहां चला जाता है ?

" वो अब भी अम्मा को घूर रहा था । 


"हम तुमको नून देंगे तो हमारा धरम 

तुमको चला जाएगा ।" 


"तो उससे का होगा ?

" टुकुन की तरफ देखते हुए मां के 

हाथ पर सेक लग गया । 


वो तड़पते हुए बोली 

"तुम्हारी बतकही में हाथ जल गया । 

चलो चुपचाप खाना खाओ ।

" टुकुन ने इसी के साथ अम्मा के हाथ से 

मार भी खा ली । 


अब जब मां टुकुन को नमक देती वो जान बूझ कर 

हाथ आगे करता और मां के हाथ पर नमक ना 

रखने पर यही सवाल पूछता। 

मां अब उसके इस सवाल से चिढ़ने लगी थी । 

लेकिन समय बीतने के साथ टुकुन ने ये 

सवाल पूछना छोड़ दिया । 


गरीब की ज़िंदगी सांप सीढ़ी के खेल जैसी है । 

कब ऊंचाई छूती खुशियों को मुसीबतों का सांप 

डस ले और कब गरीब आसमान से सीधा ज़मीन पर 

आ पहुंचे कह नहीं सकते ।


इधर भी यही हुआ । 

एक दिन अम्मा बीमार पड़ गयी । 

टुकुन का परिवार जो कम में ही खुश था 

आज मुसीबतों के पहाड़ तले दब गया । 

टुकुन के पिता ने अपनी हैसीयत के हिसाब से 

आसपास के सभी डॉक्टरों को दिखाया लेकिन 

उसकी हालत में कुछ खास सुधार नहीं आ रहा था । 


टुकुन की अम्मा की बिगड़ती हालत और बढ़ रहे 

कर्जे की मार उसके पिता की हिम्मत और 

उसकी उम्मीदों को तोड़ रही थी । 


एक दिन टुकुन अपनी अम्मा के सिरहाने 

जा कर बैठ गया । 


"अम्मा तुमको क्या हो गया ।

" अम्मा को एक टक देखता टुकुन बोला । 


"कुछो नहीं बबुआ, बस थोड़ा बीमार हैं । 

जल्दी ठीक हो जाएंगे ।

" टुकुन की तरफ देख कर जबरदस्ती 

मुस्कुराते हुए अम्मा ने जवाब दिया । 


"बीमार कइसे होते हैं अम्मा ?"


"ई सब करम का खेल है बाबू । 

किए होंगे कोनो पाप जिसका सजा भोग रहे हैं ।" 


हम भारतीयों के लिए हमारी पीड़ा का कारण हमेशा हमारे किये गये पापों को ही माना जाता है। 

शायद गरीबी ही सबसे बड़ा पाप है 

इसीलिए गरीब को ही सबसे ज़्यादा 

सज़ा भी मिलती है । 


"जाओ देखो पपा खाना बना लिए हों तो 

ले के खा लो ।

" अम्मा टुकुन के सामने रोना नहीं चाहती थी । 

टुकुन एकदम शांत था । 

शायद कुछ सोच रहा था । 

वो अक्सर यही करता था । 

जब कोई बात उसके मन में गड़ जाती तो 

वो तब तक सोचता जब तक उसका 

नन्हा दिमाग कोई निष्कर्ष ना निकाल ले । 

 

शायद टुकुन ने सोच लिया था इसीलिए 

भागता हुआ चूल्हे के पास गया और 

जब तक उसके पिता उसे खाना खाने को 

कहते तब तक भागता हुआ फिर अम्मा के पास 

पहुंच गया । 


"अम्मा हाथ दो।"


"क्या हुआ ?"


"हाथ दो ना ।" 


"क्यों तंग कर रहा है टुकुन । 

जा के खाना खा ले।

" कमज़ोरी की वजह से चिढ़चिढ़ी हो चुकी 

अम्मा ने थोड़ा चिढ़ कर कहा । 


"अम्मा एक बार हाथ दो ना ।"


"ये ले ।

" अम्मा जानती थी कि टुकुन बहुत जिद्दी है।

जब तक वो हाथ ना आगे करेगी तब तक वो कहीं नहीं जाएगा । 

इसीलिए उसने हाथ आगे कर दिए । 

अम्मा की खुली हथेली पर टुकुन ने अपनी 

नन्हीं सी मुट्ठी खोल दी । 

मुट्ठी में समाया सारा नमक अम्मा की 

हथेली पर जमा हो गया ।


"अम्मा अब हम तुमको अपना सारा धरम दे दिए हैं। तुम्हारा सारा पाप कट जाएगा और तुम बहुत जल्दी 

ठीक हो जाओगी ।

" टुकुन के चेहरे पर संतोष था और मां की 

आंखों में हैरानी, करुणा, स्नेह मिले आंसू । 


अम्मा समझ नहीं पा रही थी इस पर टुकुन से क्या कहे । उसने टुकुन को करीब बुलाया और सीने से लगा लिया । टुकुन के पिता दूर से ये सब देख कर मुस्कुराते रहे थे । 


नमक से कुछ हो ना हो लेकिन अपने लिए 

बेटे के मन में ये इतना स्नेह और फिक्र देख कर 

अम्मा के अंदर की आधी बीमारी तो क्षण भर में 

ठीक हो गयी थी । 


बच्चे सच में आधा दुःख हर लेते हैं 



प्रस्तुति - मदन शास्त्री 'धरैल' नालागढ़ हिमाचल प्रदेश



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