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Saturday, January 14, 2023

 


☀️जानिए क्या है मकर संक्रांति, क्या है महत्व, पढ़े मकर संक्रांति पर्व का संपूर्ण जानकारी 

लेखक - 'मुकेश जालान' 

'हमसफर मित्र न्यूज' 







सूर्य का मकर राशि प्रवेश-14 जन० 8:44 pm


मकर सक्रांति पुण्य काल मुहूर्त-14.01.23

सूर्य का मकर राशि प्रवेश-14 जन० 8:44 pm

सक्रांति पुण्यकाल:- 14 जनवरी 2:20 pm के उपरांत सारा दिन

अन्य मत के अनुसार 14 जनवरी 11:08 am के उपरांत

यहां पर यह स्मरण योग्य है कि रात्रि में पुण्यकर्म का निषेध है।


पुण्य काल मुहूर्त-15.01.2023

7:15 am से 12:45 pm तक

महापुण्य काल मुहूर्त:-

7:15 am से 9:15 am तक


(स्मरण योग्य- पुण्यकाल का तात्पर्य है, स्नान-दान, पूजा-पाठ, तर्पण इत्यादि पुण्य कर्मकरने का समय।)



मकरसक्रांन्ति भारत के वैदिककालीन पर्वो मे से एक पर्व है, जोकि हर वर्ष प्रायः 14 जनवरी को आता है वर्ष 2023 मे, 14 जनवरी 8:44 pm पर सूर्य राशि परिवर्तन करके मकर राशि मे प्रवेश कर रहे हैं, अतः एक मत के अनुसार मकर संक्रांति का पुण्यकाल 14 जनवरी को दोपहर 2:20 (pm) से प्रांरभ होकर 5:41 pm तक अधिक प्रभावी रहेगा। परंतु एक अन्य मत के अनुसार इस दिन 11:08 am के उपरांत भी स्नान-दान इत्यादि पुण्य कर्म किए जा सकते है।


 यहां पर एक अन्य मत (तीसरे मत) के अनुसार ऐसा भी माना जाता है कि मकर संक्रांति पर सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक पुण्यकाल रहता है।


एक अन्य मत के अनुसार 15 जनवरी को मकर सक्रांति मनाना अधिक उपयुक्त होगा, 15 जनवरी का मुहूर्त इस प्रकार से रहेगा- पुण्य काल मुहूर्त- 7:15 am से 12:45 pm तक।



क्या होती है सक्रांति :-

 सूर्य साल के बारह महीनो मे प्रत्येक माह एक एक राशि मे भ्रमण करते है, और प्रत्येक अंग्रेज़ी माह के मध्य 15 तारीख़ के लगभग एक राशि से दूसरी राशि मे सूर्य के प्रवेश करने के समय को ही सक्रांति कहते है । 


क्यो शुभ होती है मकर सक्रांति:-

 मघ्य दिसम्बर से 13 जनवरी तक सूर्य धनु राशि मे होते है, धनु राशि मे सूर्य के होने से "पौष का महीना" अर्थात "मलमास" होता है, जिसमे सभी तरह के ब्याह-शादी आदि समस्त शुभ कार्य वर्जित होते है, और जब सूर्य इसी धनु राशि से निकल कर मकर राशि मे प्रवेश करते है तो "उत्तरायण अर्थात शुभ मांगलिक" कार्यो की शुरुआत का समय आंरभ हो जाता है । छह माह के काल "उतरायण" आंरभ होने के दिन को ही मकरसंक्रान्ति पर्व के रुप मे मनाया जाता है ।


दरअसल सूर्य वर्ष के बारह महीनो मे प्रत्येक माह अलग-2, बारह राशियो मे भ्रमण करते है:-


1. सूर्य का दक्षिणायन

मध्य जुलाई से लेकर 13 जनवरी तक के इस समय यानि, सूर्य के कर्क राशि से धनु राशि तक के भ्रमण के समय को दक्षिणायन कहते है।

 

दक्षिणायन सूर्य के समय सूर्य मे बल अर्थात तेज नही होता। इस वजह से छः माह के इस काल को मुर्हूत, आदि शुभ तथा मांगलिक कार्यो के लिए अच्छा नही माना जाता ।


दक्षिणायन काल में सूर्य दक्षिण दिशा की ओर झुकाव के साथ गति करने लगता है। मान्यता है कि दक्षिणायन का काल देवताओं की रात्रि है।

दक्षिणायन में रातें लंबी हो जाती है। 


दक्षिणायन व्रत और उपवासों का समय होता है। इस दिन कई शुभ और मांगलिक कार्य का करना निषेध होता है। सूर्य का दक्षिणायन होना कामनाओं और भोग की वृद्धि को दर्शाता है, इसलिए इस समय में किए गए कार्य जैसे पूजा, व्रत आदि से दुख और रोग दूर होते हैं।



2. सूर्य का उत्तरायण

"14 जनवरी मकर संक्रान्ति" से लेकर "मिथुन संक्रान्ति- यानि मध्य जुलाई", तक के काल को सूर्य का उतरायण काल माना जाता है । जिसे शुभ काल कहते है । सूर्य के इस उत्तरायण काल को शुभ तथा मांगलिक कार्यों के लिए शुभ माना जाता है ।


शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है।


मत्स्य पुराण और स्कंद पुराण में उत्तरायण के महत्व का विशेष उल्लेख मिलता है। मान्यता है कि आध्यात्मिक प्रगति और ईश्वर की पूजा-अर्चना के लिए उत्तरायण काल विशेष फलदायी होता है।


 इस प्रकार सूर्यदेव की यह संक्रमण क्रिया छह-२  महीने की अवधि की होती है, अर्थात दोनो अयन 6-6 महीने के होते हैं।


इस प्रकार मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य छः महीने तक दक्षिणायन मे होने से जो शुभ कार्य प्रतिबन्धित होते है, वह सब कार्य मकर सक्रांति (यानि सूर्य के उतरायण) होने से खुल जाते है, *इसी खुशी को मानने का पर्व है मकर सक्रांति।* 


इस दिन सूर्य के उत्तरायण मे होने से दिन बडे तथा राते छोटी होना शुरू हो जाती है ।


 मकरसंक्रान्ति वास्तव मे एक ऋतुपर्व है, इस दिन से भगवान सूर्य के उतरायण होने से देवताओ का ब्रह्ममुहूर्त आरम्भ हो जाता है, अर्थात इन छः महीनो को साधनाओ और परा-अपराविद्याओ की प्राप्ति का भी काल माना जाता है ।


 ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी  गृृहनिर्माण, देवप्रतिष्ठा, यज्ञ, आदि समस्त शुभकार्य और मुर्हूत उत्तरायण काल मे ही होने चाहिए । यहां तक की विभिन्न शुभकार्यो के अतिरिक्त मृृत्यु के लिए भी "उत्तरायण काल" को ही शुभ माना गया है, इन महीनो मे मृृत्यु होने से यमलोक अर्थात नरक जाने की संभावना कम रहती है ।


सूर्य का उत्तरायण प्रवेश जन-जन को प्राणहारी सर्दी की समाप्ति एवं वसन्त का शुभागमन का संदेश होता है । इस शुभ दिन को देश भर के विभिन्न प्रान्तो मे भिन्न-२ नामो से मनाया जाता है, दक्षिण भारत मे इसे पोगल के नाम से मनाया जाता है । 


मकरसंक्रान्ति की शुभता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि हिन्दु धर्म मे काले रंग को अशुभ  माना गया है, क्योकि काले रंग मे तमोगुणी तंरगो को ग्रहण करने की अधिक क्षमता होती है, परन्तु मकरसंक्रान्ति के दिन वातावरण मे रज तथा सत्वतंरगो की अधिकता होती है, इसीलिए मकरसंक्रान्ति के दिन काले रंग के वस्त्रो को उपयोग मे लाने की अनुमति सनातन धर्म ने दी है।


 शास्त्रो मे उल्लेख है की भगवान विष्णु भी मकर संक्रान्ति तथा माघमास की शुभता एवम् इनके स्नान के विषय मे कहते है की भगवान की भक्ति-पूजा करो या न करो, लेकिन यदि "मकरसंक्रान्ति स्नान" या "माघमास" के स्नान करते हो, तो अनन्त पुण्य फल की प्राप्ति अवश्य ही होती है ।


 सूर्य की सातवीं किरण भारत वर्ष में आध्यात्मिक उन्नति की प्रेरणा देने वाली है। सातवीं किरण का चमत्कारी प्रभाव भारत वर्ष में गंगा-यमुना के जल मे अधिक समय तक रहता है। इस भौगोलिक स्थिति के कारण ही हरिद्वार और प्रयाग में माघ मेला अर्थात मकर संक्रांति या पूर्ण कुंभ तथा अर्द्धकुंभ के विशेष उत्सव का आयोजन होता है।


ब्रह्मर्षि भृगु जी कहते है, संक्रान्ति एवं माघ के स्नान से सब पाप नष्ट हो जाते है, यह सब व्रतो से बढ़कर है, तथा यह सब प्रकार के दानो का फल प्रदान करने वाला है, जिनके मन मे स्वर्गलोक भोगने की अभिलाषा हो, आयु, आरोग्यता, रुप, सौभाग्य, एवं उत्तम गुणो मे जिनकी रुचि हो वह ,तथा वह व्यक्ति जो दरिद्रता, पाप और दुर्भाग्य रुपी  कीचड़ को धोना चाहते है, उन्हे "मकरसंक्रान्ति तथा माघमास" के स्नान अवश्य करने चाहिए ।



मकर संक्रान्ति का ऐतिहासिक महत्व:-

1. सूर्यदेव का पुत्र शनि की मकर राशि मे प्रवेश का पर्व:-

शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, और इस दिन सूर्य मकर राशि मे प्रवेश करते है, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है, ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं। चूंकि शनि मकर व कुंभ राशि का स्वामी है। लिहाजा यह पर्व पिता-पुत्र के अनोखे मिलन से भी जुड़ा है। एक मास मकर राशि मे गोचर करने के उपरांत कुंभ राशि मे प्रवेश करते है। 


2. मकरसंक्रांति के दिन भगीरथ ऋषि द्वारा पूर्वजों का उद्धार:-

मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगा को धरती पर लाने वाले भगीरथ ऋषि ने अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए इसी दिन तर्पण किया था। उनका तर्पण स्वीकार करने के बाद इसी दिन गंगा कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई समुद्र में जाकर मिल गई थी।


 कपिल मुनि ने अपने आश्रम मे गंगा मां के प्रवेश करते हुए प्रसन्नता से आह्लादित होते हुए, वरदान देते हुए कहा, 'मां गंगे त्रिकाल तक जन-जन का पापहरण करेंगी और भक्तजनों की सात पीढ़ियों को मुक्ति एवं मोक्ष प्रदान करेंगी। गंगा जल का स्पर्श, पान, स्नान और दर्शन सभी पुण्यदायक फल प्रदान करेगा।" 


3. भीष्म पितामह की इच्छा मृत्यु

मकर संक्रांति का महाभारत में भी वर्णन किया गया है, पुराणों में कहा गया है कि सूर्य के मकर राशि में होने से मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति की आत्मा मोक्ष को प्राप्त करती है, इसकी एक कथा भीष्म पितामह के जीवन से जुड़ी हुई है। भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। महाभारत के युद्ध में अर्जुन के बाणों से घायल भीष्म पितामाह ने गंगा के तट पर सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का छब्बीस दिनों तक इंतजार किया था। इच्छा मृत्यु का वरदान मिलने के कारण वह मोक्ष की प्राप्ति के लिए सूर्य के उत्तरायण होने तक जीवित रहे।


4. भगवान विष्णु द्वारा असुरों का संहार:-

मकर संक्रांति के दिन को बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन माना जाता है क्योंकि मकर संक्रांति के दिन ही भगवान विष्णु ने असुरों का अंत करके युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी। उन्होंने सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था। तभी से भगवान विष्णु की इस जीत को मकर संक्रांति पर्व के तौर पर मनाया जाने लगा।


5. यशोदा मैय्या:-

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार यशोदा मैय्या ने इस दिन श्रीकृष्ण के जन्म के लिए यह सक्रांति का व्रत रखा था, तब उसी दिन से मकर संक्रान्ति के व्रत की परिपाटी चली आ रही है।


6. फसलों की कटाई का त्यौहार:-

नई फसल और नई ऋतु के आगमन के तौर पर भी मकर संक्रांति धूमधाम से मनाई जाती है। पंजाब, यूपी, बिहार समेत तमिलनाडु में यह वक्त नई फसल काटने का होता है, इसलिए किसान मकर संक्रांति को आभार दिवस के रूप में मनाते हैं।


7. संक्रांति को देवता माना गया है। शास्त्रो मे वर्णन है कि संक्रांति ने ही संकरासुर नामक दानव का वध किया था।

 

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