'प्रेरक प्रसंग' : भोजन का कुप्रभाव - HUMSAFAR MITRA NEWS

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Sunday, April 25, 2021

 'प्रेरक प्रसंग' 

भोजन का कुप्रभाव

प्रस्तुति - 'एम. के. सरकार, (संचालक /संपादक) 

' हमसफर मित्र न्यूज '





कहते हैं जैसा संगति बनाओगे वैसा ही आप का मन एवं चाल-चलन बनेगा। आज का 'प्रेरक प्रसंग' में ऐसे ही ज्ञानवर्धक जानकारी आपको बता रहे हैं..., तो पढ़ते रहिए आपका अपना 'हमसफर मित्र न्यूज' में... 


"एक नगर में एक भिखारिन एक गृहस्थी के यहाँ रोज भीख मांगने जाती थी। गृहिणी रोज ही उसे एक मुठ्ठी चावल दे दिया करती थी। यह बुढ़िया का दैनिक कार्य था और महीनों से नहीं कई वर्षों से यह कार्य बिना रुकावट के चल रहा था। एक दिन भिखारिन चावलों की भीख खाकर ज्यों ही द्वार से मुड़ी,गली में गृहिणी का तीन वर्ष का बालक खेलता हुआ दिखाई दिया। बालक के गले में एक सोने की चेन थी। बुढ़िया की नीयत बदलते देर न लगी। इधर-उधर नज़र दौड़ाई,गली में कोई और दिखाई नहीं पड़ा। बुढ़िया ने बालक के गले से चेन ले ली और चलती बनी।

 घर पहुँची,अपनी भीख यथा स्थान रखी और बैठ गई। सोचने लगी,"चेन को सुनार के पास ले जाऊंगी और इसे बेचकर पैसे खरे करुँगी।" यह सोचकर चेन एक कोने में एक ईंट के नीचे रख दी। भोजन बनाकर और खा पीकर सो गई। प्रातःकाल उठी,शौचादि से निवृत्त हुई तो चेन के सम्बन्ध में जो विचार सुनार के पास ले जाकर धन राशि बटोरने का आया था उसमें तुरंत परिवर्तन आ गया। बुढ़िया के मन में बड़ा क्षोभ पैदा हो गया। सोचने लगी-"यह पाप मेरे से क्यों हो गया? क्या मुँह लेकर उस घर पर जाऊंगी?" सोचते-सोचते बुढ़िया ने निर्णय किया कि चेन वापिस ले जाकर उस गृहिणी को दे आयेगी। बुढ़िया चेन लेकर सीधी वहीं पहुँची। द्वार पर बालक की माँ खड़ी थी। उसके पांवों में गिरकर हाथ जोड़कर बोली-"आप मेरे अन्नदाता हैं। वर्षों से मैं आपके अन्न पर पल रही हूँ। कल मुझसे बड़ा अपराध हो गया,क्षमा करें और बालक की यह चेन ले लें।"

चेन को हाथ में लेकर गृहिणी ने आश्चर्य से पूछा-"क्या बात है? यह चेन तुम्हें कहाँ मिली?" भिखारिन बोली-"यह चेन मैंने ही बालक के गले से उतार ली थी लेकिन अब मैं बहुत पछता रही हूँ कि ऐसा पाप मैं क्यों कर बैठी ?"

गृहिणी बोली-"नहीं, यह नहीं हो सकता। तुमने चेन नहीं निकाली। यह काम किसी और का है,तुम्हारा नहीं। तुम उस चोर को बचाने के लिए यह नाटक कर रही हो।"

"नहीं,बहिन जी,मैं ही चोर हूँ। कल मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी। आज प्रातः मुझे फिर से ज्ञान हुआ और अपने पाप का प्रायश्चित करने के लिए मैंने आपके सामने सच्चाई रखना आवश्यक समझा," भिखारिन ने उत्तर दिया। गृहिणी यह सुनकर अवाक् रह गई।

भिखारिन ने पूछा-"क्षमा करें,क्या आप मुझे बताने की कृपा करेंगी कि कल जो चावल मुझे दिये थे वे कहाँ से मोल लिये गये हैं।"

गृहिणी ने अपने पति से पूछा तो पता लगा कि एक व्यक्ति कहीं से चावल लाया था और एक पुल के  पास बहुत सस्ते दामों में बेच रहा था। हो सकता है वह चुराकर लाया हो। उन्हीं चोरी के चावलों की भीख दी गई थी।

भिखारिन बोली-"चोरी का अन्न पाकर ही मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी और इसी कारण मैं चेन चुराकर ले गई। वह अन्न जब मल के रूप में शरीर से निकल गया और शरीर निर्मल हो गया तब मेरी बुद्धि ठिकाने आई और मेरे मन ने निर्णय किया कि मैंने बहुत बड़ा पाप किया है। मुझे यह जंजीर वापिस देकर क्षमा माँग लेनी चाहिए।"

गृहिणी तथा उसके पति ने जब भिखारिन के मनोभावों को सुना तो बड़े अचम्भे में पड गये। भिखारिन फिर बोली-"चोरी के अन्न में से एक मुठ्ठी भर चावल पाने से मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो सकती है तो वह सभी चावल खाकर आपके परिवार की क्या दशा होगी,अतः, फेंक दीजिए उन सभी चावलों को।" गृहिणी ने तुरन्त उन चावलों को बाहर फेंक दिया।"

अतः आप भी इमानदारी से कमा कर गृहस्थ चलाया करें। किसी भी तरह के बेइमानी से कमाया हुआ धन आपको बेइमानी की ओर ले जा सकते हैं...

'हमसफर मित्र'

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