जय माता रानी की
नवरात्रि के पहले दिन अखंड ज्योत जलाकर करें घटस्थापना, जानें विधि व नियम
पं. गणेशदत्त राजू तिवारी जी महाराज, मल्हार
'हमसफर मित्र न्यूज'।
नवरात्रि की शुभ शुरुआत घटस्थापना यानी कलश स्थापना से होती है। शुभ मुहूर्त पर कलश स्थापित करना बेहद लाभदायक माना जाता है। जानकार बताते हैं कि कलश स्थापित करने के साथ कुछ नियमों पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
वर्ष में कुल 4 बार मनाया जाता है नवरात्रि का शुभ पर्व, इस वर्ष आज 13 अप्रैल से प्रारंभ हो रही है चैत्र नवरात्रि।13 अप्रैल को है घटस्थापना, मुहूर्त अनुसार कलश स्थापित करने से मां दुर्गा के नौ स्वरूपों का मिलता है आशीर्वाद।घट स्थापित करते समय कुछ नियमों पर देना चाहिए विशेष ध्यान, लग्न के अनुसार अखंड ज्योति को करें प्रज्वलित।
आज 13 अप्रैल को प्रतिपदा है और आज दिन से चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो रही है। 13 अप्रैल से प्रारंभ होकर चैत्र नवरात्रि 22 अप्रैल को समाप्त हो जाएगी। परंपराओं के अनुसार, नवरात्रि की शुरुआत कलश स्थापना से होती है। नवरात्रि के लिए घटस्थापना विधिवत शुरुआत माना जाता है। जानकार बताते हैं कि घटस्थापना या कलश स्थापना शुभ मुहूर्त पर करना चाहिए। इसी के साथ नवरात्रि की पूजा के लिए कुछ नियमों का पालन भी करना चाहिए। नवरात्रि के पहले ही दिन अखंड ज्योत जलाई जाती है जिसे लग्न के अनुसार प्रज्जवलित किया जाता है। अगर आप भी इस वर्ष चैत्र नवरात्रि व्रत रखकर मां दुर्गा को प्रसन्न करना चाहते हैं तो घटस्थापना शुभ मुहूर्त पर अवश्य करें
घटस्थापना के लिए शुभ मुहूर्त और नियम।
घटस्थापना के लिए शुभ मुहूर्त
चैत्र नवरात्रि प्रारंभ: - 13 अप्रैल 2021, मंगलवार
अभिजीत मुहूर्त: - दोपहर (12:00 से लेकर 12:44 तक)
सुबह के लिए शुभ मुहूर्त: - सुबह 10:45 से लेकर दोपहर 01:50 तक
दोपहर में शुभ मुहूर्त: - 03:30 से लेकर शाम 05:00 बजे तक
शाम के समय शुभ मुहूर्त: - 8:00 बजे से लेकर 9:30 बजे तक
घट स्थापना की विधिः
घर के उत्तर पूर्व दिशा में किसी स्थान को अच्छी तरह साफ कर कलश स्थापित करें। उत्तर पूर्व पूजन के लिए सर्वोत्तम दिशा मानी जाती है। कलश स्थापित करने के लिए मुहूर्त में ही पहले श्रीगणेश की पूजा करके कलश स्थापित करें। जहां कलश स्थापित करना है वहां एक साफ लाल कपड़ा बिछाएं और नारियल पर मौली बांधें एवं कलश पर रोली या चंदन से स्वास्तिक बनाएं। कलश में गंगा जल भरें और इसमें आम के पत्ते, सुपारी,हल्दी की गांठ, दुर्वा, पैसे और आम के पत्ते डालें। यदि कलश के ऊपर ढक्कन रखना चाहती हैं तो ढक्कन में चावल भर दें, यदि कलश खुला है तो उसमें आम के पत्ते डाल दें। इसके बाद कलश के बीच में नारियल रखें और दीप जलाकर पूजा करें। ध्यान रहे कि मां दुर्गा की मूर्ति के दाईं तरफ कलश को स्थापित किया जाना चाहिए।
चैत्र नवरात्रि में घटस्थापना के नियम
नवरात्रि के पहले दिन श्रद्धालुओं को घट स्थापित करने के बाद अखंड ज्योति अवश्य प्रज्वलित करनी चाहिए तथा ज्वारे भी स्थापित करना चाहिए। परंपराओं के अनुसार, घट स्थापित करके ही देवी पूजन किया जाता है। जानकार बताते हैं कि देवी पूजन के बाद दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से फल दोगुना बढ़ जाता है। नवरात्रि के प्रत्येक 9 दिनों में दुर्गा सप्तशती का पाठ करना बेहद फायदेमंद माना जाता है। अगर आप दुर्गा सप्तशती का पाठ करने में असमर्थ हैं तो आप नवार्ण मंत्र का जाप भी कर सकते हैं। नवरात्रि का समापन पूर्णाहुति हवन तथा कन्या भोज के साथ होता है। आप नवार्ण मंत्र, सिद्ध कुंजिका स्तोत्र तथा दुर्गाअष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र के साथ भी पूर्णाहुति हवन को संपन्न कर सकते हैं। अगर आप अखंड ज्योति प्रज्वलित कर रहे हैं तो कलावा यह मौली का उपयोग हमेशा करें। अखंड ज्योति प्रज्वलित करते समय लग्न पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
आज नवरात्रि का पहला दिन होता है मां शैलपुत्री को समर्पित।घटस्थापना या कलश स्थापना के बाद करनी चाहिए मां शैलपुत्री की पूजा, संपूर्ण हिमालय पर राज करती हैं माता।मां शैलपुत्री की पूजा करके अवश्य करना चाहिए गाय का घी अर्पित, मां देती है आरोग्य जीवन का आशीर्वाद।
सनातन धर्म के प्रमुख पर्वों में से नवरात्रि का पर्व आज13 अप्रैल से प्रारंभ हो रहा है। नवरात्रि का शुभ शुरुआत घटस्थापना के साथ होता है। इसी दिन अखंड ज्योत जलाया जाता है तथा माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है। नवरात्र का पहला दिन मां दुर्गा के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री को समर्पित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता शैलपुत्री का जन्म पर्वतराज हिमालय के पुत्री के रूप में हुआ था इसीलिए उन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। शैलपुत्री माता पार्वती तथा उमा के नाम से भी जानी जाती हैं। माता शैलपुत्री बेहद शुभ मानी जाती हैं जिनके एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल मौजूद रहता है। माता शैलपुत्री वृषभ पर विराजमान रहती हैं। संपूर्ण हिमालय पर्वत माता शैलपुत्री को समर्पित है। कहा जाता है कि माता शैलपुत्री अत्यंत सौम्य स्वभाव की हैं और अपने भक्तों को वरदान देती हैं।
माता शैलपुत्री को प्रसन्न करने के लिए विधिवत तरीके से पूजा करें तथा आरती, मंत्र, कथा और भोग के साथ उनकी आराधना करें।
मां शैलपुत्री मंत्र
वन्दे वाच्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
No comments:
Post a Comment