[प्रेरक प्रसंग]
भगवान की कृपा का खेल
'हमसफर मित्र'।
एक दिन एक संत किसी गाँव से गुजर रहे थे। गांव के बाहर एक किसान गेंहूं की सिंचाई कर रहे थे। गेहूं की फसल बहुत अच्छी थी। लहलहाती फसल को देखकर संत ने कहा, भगवान की कृपा से इस बार बहुत अच्छी फसल हुईं हैं। पास में खड़े किसान ने इसे सुन लिया। किसान ने कहा - महाराज, इसमें भगवान की कृपा कहाँ से आ गई ? मैंने कड़ी मेहनत की है तब जाकर इतनी अच्छी फसल पैदावार हुई है। यह तो मेरे परिश्रम का परिणाम है। यदि मैं इतना मेहनत नहीं करता तो फसल अच्छी कैसे होती। उस समय किसान की बात सुनकर संत बगैर कुछ कहें मुस्कुराते हुए वहां से चले गए।कुछ दिनों के बाद वहीं संत फिर उसी रास्ते से लौट रहे थे तो देखा, वहीं किसान माथे पर हाथ रखकर उदास मन से खेत के पास बैठा था। संत उसे दुखी देखकर रूक गए, पास जाकर सांत्वना भरे शब्दों में बोले - भैया बहुत बुरा हुआ। तुम्हारी तो हरी भरी लहलहाती फसल नष्ट हो गई। किसान ने कहा - महाराज क्या बताऊँ, मुझे भगवान ने तबाह कर दिया। ओले और आंधी ने सारी फसल को बर्बाद कर दिया। तब संत बोले - भैया, भगवान की तो माया हैं ही। यही बात तो पिछले दिनों अच्छी फसल को देखकर भी मैने कही थी कि भगवान की कृपा है। तब तुम नहीं माने, बोले कि यह तो हमारे परिश्रम का फल है, इसमें भगवान की कृपा कहा से आई ? अब तुम कह रहे हो कि भगवान ने तबाह कर दिया। अच्छे काम का श्रेय तुम लो और बुरा हो तो भगवान को दोषी मानते हो ? ये सब भगवान की कृपा का खेल है।
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