गजल।।
देह चंदन सी कद है उसका चिनारों की तरह।
ऐसी खूशबू जो खिले फूल बहारों की तरह।
रात को नींद नहीं चैन नही है दिन को।
ख्वाब देखें है आज मैने नजारों की तरह।।
हम उनके प्यार में गुमसुम से खोए रहते हैं।
जैसे तस्वीर बने बैठे दीवारों की तरह।।
वो एक नदी के मानिंद बहे जाती है।
हम खडे़ देखते रहते है किनारों की तरह।।
चांदनी आज यूं थरती पे ऐसी निखरी है।
वो उतर आई है ज्यों खुद ही सितारों की तरह।।
एक ठंडक सी छा गई है उनके आने से।
तपे बदन में बरसते वो फुहारों की तरह।।
वो जब तलक है मुखातिब वजूद है अपना।।
वरना रह जयेगें हम तन्हा मजारों की तरह।।
एम.एल. तिवारी बिल्हा बिलासपुर वार्ड नं पांच छ.ग.
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