🚩🕉️आज देवउठनी एकादशी, जानिए संपूर्ण जानकारी🕉️🚩
'हमसफर मित्र न्यूज'
देवउठनी एकादशी आज 4 नवंबर को मनाई जाएगी। इस दिन लोग घरों में भगवान सत्यनारायण की कथा और तुलसी-शालिग्राम के विवाह का आयोजन करते हैं। देवउठनी एकादशी से मंगलकार्य शुरू हो जाते हैं। माना जाता है कि देवउठनी एकादशी को भगवान श्रीहरि चार माह की गहरी निद्रा से उठते हैं। भगवान के सोकर उठने की खुशी में देवोत्थान एकादशी मनाई जाती है। इसी दिन से सृष्टि को भगवान विष्णु संभालते हैं। इसी दिन तुलसी से उनका विवाह हुआ था।
इस दिन महिलाएं, पुरुष व्रत रखते हैं। परम्परानुसार देव देवउठनी एकादशी में तुलसी जी का विवाह किया जाता है, इस दिन उनका श्रंगार कर उन्हें चुनरी ओढ़ाई जाती है। उनकी परिक्रमा की जाती है। शाम के समय रौली से आंगन में चौक पूर कर भगवान विष्णु के चरणों को कलात्मक रूप से अंकित किया जाता है। रात्रि को विधिवत पूजन के बाद प्रात:काल भगवान को शंख, घंटा आदि बजाकर जगाया जाएगा और पूजा करके कथा सुनी जाएगी।
🚩देवउठनी एकादशी, तुलसी पूजा के सबसे शुभ मुहूर्त
🚩देव उठनी एकादशी पूजन के शुभ मुहूर्त।
एकादशी तिथि प्रारम्भ- 03 नवम्बर 2022 को शाम 07:30 बजे।
एकादशी तिथि समाप्त- 04 नवम्बर 2022 को शाम 06:08 बजे।
एकादशी पारण समय : 5 नवम्बर को सुबह 06:36 से 08:47 के बीच।
🚩तुलसी पूजा के शुभ मुहूर्त:-
अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11:42 से दोपहर 12:26 तक।
विजय मुहूर्त : दोपहर 01:54 से 02:38 तक।
अमृत काल : शाम 04:24 से 05:58 तक।
गोधूलि मुहूर्त : शाम 05:34 से शाम 06:00 तक।
दिन का चौघड़िया :
लाभ : सुबह 07:57 से 09:20 तक।
अमृत : सुबह 09:20 से 10:42 तक।
शुभ : दोपहर 12:04 से 01:27 तक।
रात का चौघड़िया :
लाभ : रात्रि 08:49 से 10:27 तक।
🚩तुलसी पूजा :
1. भगवान विष्णु को तुलसीजी बहुत ही प्रिय हैं। कार्तिक मास में तुलसीजी का पूजा करने से विशेष पुण्य लाभ मिलता है और जीवन से सारे दुख-संकट दूर हो जाते हैं।
2. शालिग्राम के साथ तुलसीजी की पूजा ऐसा करने से अकाल मृत्यु नहीं होती है।
3. कार्तिक मास में तुलसीजी की पूजा करके इसके पौधे का दान करना श्रेष्ठ माना गया है।
4. कार्तिक माह में तुलसी के पौधे को हर गुरुवार को कच्चे दूध से सींचना चाहिए। इससे माता तुलसी प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती हैं।
5. कार्तिक महीने में प्रतिदिन शाम को तुलसी के पौधे के सामने दीपक जलाकर रखना चाहिए। इसे पुण्य की प्राप्ति होती है और घर में सुख शांति बनी रहती है।
6. कार्तिक में ब्रह्म मुहूर्त में उठकर तुलसी को जल चढ़ाने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है।
7. तुलसी की पूजा और इसके सेवन से हर तरके रोग और शोक मिट जाते हैं और सौभाग्य में वृद्धि होती है।
🚩 एकादशी पूजा विधि
एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें।
स्नान के पश्चात भगवान विष्णु का स्मरण करते हुए व्रत का संकल्प लें।
संकल्प के बाद घर के आंगन को अच्छे से धोकर शुद्ध कर लें।
फिर घर के आंगन में भगवान विष्णुके पैरों की आकृति बनाएं।
ध्यान रहे पैरों की आकृति घर के अंदर की तरफ आती ही बनाएं।
यदि आपके घर में आंगन नहीं है तो आप ये कार्य अपने पूजा घर में कर सकते हैं!
एकादशी के पूरे दिन भगवान विष्णु के मन्त्रों का जाप और पाठ करें।
रात के समय पूरे घर के साथ साथ घर की चौखट और आंगन में दिए जलाएं।
भगवान विष्णु के पुनः वैकुण्ठ लौटने की खुशी में दीप जलाने की परंपरा मानी जाती है।
रात्रि में भगवान विष्णु समेत सभी देवी देवताओं की आरती करें।
शंख और घंटी बजाकर भगवान विष्णु को उठाएं।
भगवान विष्णु को भोग लगाएं और प्रसाद वितरण करें।
एकादशी की अगली सुबह से भगवान विष्णु की नियमित पूजा आरंभ कर दें।
देवउठनी एकादशी के दिन कुछ बातों का विशेष ध्यान रखने के लिए भी कहा गया है। इन बातों की अनदेखी करने से न सिर्फ आपकी पूजा खंडित हो सकती है बल्कि आपको भयकर पाप का भागी भी बना सकती है।
🚩सावधानियां
देवउठनी एकादशी के दिन निर्जला व्रत रखें।
अगर आप निर्जल नहीं रह सकते तो सिर्फ पानी ही पिएं।
घर के बुजुर्ग, गर्भवती महिलाएं या बीमार लोग व्रत के दौरान फलाहार का पालन कर सकते हैं।
एकादशी के दिन व्रत नहीं भी रखा तो भी भूलकर भी चावल ना खाएं।
किसी से गाली गलौच ना करें।
किसी भी प्राणी का दिल ना दुखाएं।
चुगली न करें।
मौन रहें।
व्रत वाले दिन से पहले दिनों में भी पूर्णता सात्विक भोजन करें। व जहां तक हो सके व्रत वाले दिन कुछ भी ना खाएं पिएं।
व्रत रखी हुई रात को श्री हरि कीर्तन करें व मंत्रोचार सहित श्रीहरि का गुणगान, जाप करें।
मान्यता है कि देवउठनी एकादशी का व्रत करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। जातक मृत्यु के बाद बैकुंठ धाम को जाता है। स्वंय श्रीकृष्ण ने एकादशी की महत्ता के बारे में युधिष्ठिर को बताया था। कहते हैं कि देवउठनी एकादशी पर प्रदोष काल में गन्ने का मंडर बनाकर श्रीहरि के स्वरूप शालीग्राम और तुलसी विवाह के बाद कथा का श्रवण जरूर करना चाहिए, इसके सुनने मात्र से पाप कर्म खत्म हो जाता है!
आइए जानते हैं
🚩देवउठनी एकादशी व्रत कथा:
एक राजा के राज्य में सभी लोग श्रद्धापूर्वक एकादशी का व्रत रखते थे। प्रजा और राज्य के नौकरों से लेकर पशुओं तक को एकादशी के दिन अन्न नहीं दिया जाता था। कहते हैं कि इस दिन किसी दूसरे राज्य का व्यक्ति राजा से बोला कि महाराज! कृपा करके मुझे नौकरी पर रख लें। तब राजा ने उसके सामने एक शर्त रखी कि रोज तो तुम्हें खाने को सब कुछ मिलेगा, लेकिन एकादशी के दिन अन्न ग्रहण करने के लिए नहीं मिलेगा।
राजा के कहने के मुताबिक वह व्यक्ति राजी हो गया। लेकिन जब एकादशी के दिन जब उसे फलाहार से सामना हुआ तो वह राजा के सामने जाकर कहने लगा महाराज! इससे मेरा पेट नहीं भरेगा। मैं भूखा ही मर जाऊंगा, मुझे अन्न दिया जाए। राजा ने उसे शर्त की बात याद दिलाई। लेकिन वह व्यक्ति अन्न त्याग करने के लिए तैयार नहीं हुआ। जिसके बाद राजा ने उसके लिए अन्न की व्यवस्थ कर दी। वह रोज की तरह नदी पर पहुंचा और स्नान करके भोजन पकाने लगा। जब भोजन बन गया तो वह भगवान को बुलाने लगा। आओ भगवान! भोजन तैयार है।
कहा जाता है कि उसके बुलाने पर पीतांबर धारण किए भगवान चतुर्भुज रूप में आ पहुंचे और प्रेम से उसके साथ भोजन ग्रहण करने लगे। भोजन करने के बाद भगवान अंतर्ध्यान हो गए। जिसके बाद वह व्यक्ति भी अपने काम पर चला गया। फिर पंद्रह दिन बाद अगली एकादशी को वह राजा से कहने लगा कि महाराज, मुझे दोगुना सामान दीजिए। उस दिन भूखा ही रह गया था। राजा के पूछने पर उसने बताया कि उसके साथ भगवान भी भोजन ग्रहण करते हैं। यह सुनकर राजा को थोड़ा अटपटा लगा और उन्होंने बताया कि उन्हे विश्वास नहीं हो रहा है कि भगवान उसके साथ भोजन करते हैं।
राजा की बात सुनकर वह बोला- महाराज! यदि विश्वास न हो तो साथ चलकर देख लें। राजा एक पेड़ के पीछे छिपकर बैठ गया। उस व्यक्ति ने भोजन बनाया भगवान को शाम तक पुकारता रहा, लेकिन भगवान नहीं आए. अंत में उसने कहा कि हे भगवान! यदि आप नहीं आए तो मैं नदी में कूदकर प्राण त्याग दूंगा।
इसके बाद भी भगवान नहीं आए. तब वह प्राण त्यागने के उद्देश्य से नदी की तरफ बढ़ा। प्राण त्यागने का उसका दृढ़ इरादा जान शीघ्र ही भगवान ने प्रकट होकर उसे रोक लिया और साथ बैठकर भोजन करने लगे। भोजन के बाद भगवान अपने गंतव्य को चले गए। यह देख राजा ने सोचा कि व्रत-उपवास से तब तक कोई फायदा नहीं होता, जब तक मन शुद्ध न हो। इससे राजा को ज्ञान मिला. वह भी मन से व्रत-उपवास करने लगा और अंत में स्वर्ग को प्राप्त हुआ।
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