[विश्व सिकल सेल दिवस दिनांक 19 जून विशेष]
सिकलसेल : जानिए इतिहास और महत्व: सिकल सेल रोग (SCD) क्या है? लक्षण और उपचार
लेखक - 'मनितोष सरकार' (संपादक)
'हमसफर मित्र न्यूज'
विश्व सिकल सेल दिवस हर साल 19 जून को मनाया जाता है। आनुवंशिक बीमारी सिकल सेल रोग (एससीडी) के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है, जो आमतौर पर भारत के अलावा अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, मध्य अमेरिका, सऊदी अरब, तुर्की, ग्रीस और इटली के लोगों में पाया जाता है। इस दिन अधिक से अधिक लोगों को स्थिति को समझने में मदद करता है और संगठनों को गरीब रोगियों के लिए धन इकट्ठा करने में योगदान देने के लिए प्रोत्साहित करता है और अन्य तरीकों से, जैसे कि कार्यक्रमों का आयोजन, जनजागरूकता शिविर आदि एससीडी एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता है और उद्देश्य को समझने के लिए सभी को प्रोत्साहित करना महत्वपूर्ण है। विश्व सिकल सेल दिवस, जो एससीडी के बारे में जागरूकता बढ़ाने और सिकल सेल रोगियों का समर्थन करने के लिए है।
विश्व सिकल सेल दिवस का इतिहास और महत्व
प्रति वर्ष 19 जून को विश्व सिकल सेल दिवस मनाया जाता है और इस वर्ष सिकल सेल सोसाइटी सिकल सेल समुदाय में 41 साल काम करने का जश्न मनाएंगे। विश्व सिकल सेल दिवस एक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सिकल सेल के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए एक संयुक्त राष्ट्र का मान्यता प्राप्त दिन है।
सिकल सेल रोग (SCD) क्या है?
वर्ष 2015 में पता चला था कि 1, 14,800 मौतें सिकल सेल रोग (एससीडी) के कारण हर साल होती हैं। इसे रोकथाम के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने 19 जून को विश्व सिकलसेल दिवस मनाने का निर्णय लिया है। यह एक अनुवांशिक रोग हैं जो माता-पिता में से कोई भी इस रोग से पीड़ित हो तो यह बच्चों पर होने का ज्यादातर संभावना रहता है।
ऐसे होते हैं रोग की उत्पत्ति
पहले ही कहा गया है कि सिकलसेल एक अनुवांशिक रोग हैं, जो पीड़ित माता-पिता से बच्चों पर यह रोग आता है। इसका असली कारण यह है कि पीड़ित व्यक्ति जन्म से ही इस रोग से ग्रस्त रहते हैं। दरअसल शरीर में जहां से रक्त का निर्माण होता है वहां के ढांचे की खराबी के कारण यह रोग उत्पन्न होता है। रक्त का निर्माण मेरूदंड के मज्जा से होता है। वहां का ढांचा गोलाकार न होकर अर्धचन्द्राकार होता है जिससे रक्त कोशिकाओं का आकार भी उसी प्रकार अर्धचन्द्राकार या हंसियाकार हो जाते हैं। फलस्वरूप गति के समय रक्त कोशिकाएं एक दूसरे से फंस जाते हैं और कहीं-कहीं एकत्र अथवा रुख जाते हैं जिससे शरीर के नसों में गांठ जैसे निशाने उभरते हुए देखा जाता है।
यह एक छत्र शब्द है जिसे आम तौर पर किसी व्यक्ति के माता-पिता से विरासत में मिले रक्त विकारों के समूह को दिया जाता है। सबसे आम प्रकार सिकल सेल एनीमिया (एससीए) के रूप में जाना जाता है। यह लाल रक्त कोशिकाओं में पाए जाने वाले ऑक्सीजन-हीमोग्लोबिन में एक असामान्यता का परिणाम देता है। विकारों का एक समूह जिसके कारण लाल रक्त कोशिकाएं मिस्पेन बन जाती हैं और टूट जाती हैं। सिकल सेल रोग के साथ, विकारों का एक विरासत में मिला समूह, लाल रक्त कोशिकाएं एक सिकल आकार में काम करती हैं। स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाओं (सिकल सेल एनीमिया) की कमी को छोड़कर, कोशिकाएं जल्दी मर जाती हैं और दर्द (सिकल सेल संकट) के कारण रक्त के प्रवाह को अवरुद्ध कर सकती हैं। संक्रमण, दर्द और थकान सिकल सेल रोग के लक्षण हैं। उपचार में दवा, रक्त आधान और शायद ही कभी अस्थि-मज्जा प्रत्यारोपण शामिल हैं। सिकल सेल वाले लोगों को जटिलताओं स्ट्रोक, तीव्र छाती सिंड्रोम, अंधापन, हड्डियों की क्षति और प्रतापवाद (लिंग के लगातार, दर्दनाक निर्माण) का भी खतरा होता है।
सिकल सेल एक अनुवांशिक बीमारी है। जिसका आधुनिका चिकित्सा विज्ञान में कोई निश्चित ईलाज नहीं है। यद्यपि यह रोग किसी भी स्थान पर किसी भी जाति में हो सकता है लेकिन अमुमन सिकल सेल रोग कुछ खास इलाको में रहने वाली कुछ खास जातियों में ज्यादा पाया जाता है। यह माता-पिता के जीन्स से पुश्तैनी तौर से मिलता है। हलांकि यह कहना मुश्किल है कि यह बीमारी कब और कहाँ से आई। लेकिन यह देखा गया है कि यह बीमारी उस भू-भाग पर ज्यादा है जहाँ मलेरिया बहुतायत में रहता है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि मलेरिया पैरासाइड़ से बचने के लिए लाल रक्तकणों ने यह रक्षात्मक रूप धारण किया होगा ।
पीढ़ियों तक चलती है यह बीमारी
इस बिमारी के रोकथाम के लिए शासन द्वारा भरपूर प्रयास किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ की विधान सभा में 27 मई 2004 को सिकलसेल रोग नियंत्रण के लिए एक अशासकीय संकल्प रखा गया था, जो सर्वसम्मति से पास हुआ था। सिकलसेल इंस्टीट्यूट की स्थापना वर्ष 2013 में किया गया था। एक जानकारी के अनुसार छत्तीसगढ़ की गोंड जनजाति में लगभग 20 प्रतिशत बीमारी का प्रचलन है। राज्य में कुर्मी और साहू जातियों में यह रोग पाया जाता हैं, जिनकी संख्या 20 से 22 प्रतिशत के बीच है। राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी उच्च स्तर पर सिकलसेल रोग मौजूद है। सिकलसेल रोग एक आनुवंशिक रोग है जो रक्त कोशिकाओं को प्रभावित करता है। यदि माता-पिता इस रोग से पीड़ित हैं तो बेशक विरासत में यह रोग शिशु को मिलेगा. बरसात के दिनों में तो सिकलसेल के रोगी दर्द के मारे तड़पते रहते है । झ्स रोग से पीड़ित व्यक्ति की आयु कम हो जाती है और इससे मृत्यू भी हो जाती है।
सिकल सेल एनीमिया में विरासत में मिला रोग एक सिकल आकार बनाता है। शरीर की छोटी रक्त वाहिनियों में यह सिकल नुकीला और कड़ा होकर फंस जाता है। रक्त और ऑक्सीजन के मार्ग में अवरोध होने से दर्द होता है जिससे रोगी दर्द से चिल्ला उठता है इसे सिकल क्राइसेस कहते हैं। डिस्क के आकार की रक्त कोशिकाएं लचीली होती हैं, जो बिना किसी समस्या के रक्त वाहिकाओं के अलग-अलग व्यास को नेविगेट करने में सक्षम होती हैं। सिकल कोशिकाओं में इस लचीलेपन की कमी होती है, इससे रक्त वाहिका के बंद होने की संभावना बढ़ जाती है। रक्त वाहिकाओं में रक्त का प्रवाह कम हो जाने से अथवा रुकावट पैदा होने पर हृदयाघात भी होने की प्रबल संभावना होती है और हार्ट अटैक से पीड़ित की मौत हो सकते हैं। लाल रक्त कोशिकाओं की कमजोर स्थिति के कारण मलेरिया परजीवी द्वारा आक्रमण किए जाने पर कोशिकाएं फट जाती हैं। यह कट पैरासाइट के प्रतिकृति चक्र को छोटा करता है और इस तरह मानव मेजबान को मलेरिया संक्रमण से बचाता है।
विवाह के पहले जांच करवाना अनिवार्य
जिस समुदाय में सिकलसेल की शिकायत है उस समुदाय के लोगों को विवाह के पूर्व रक्त की जांच करवाना अति आवश्यक है। जन्म कुण्डली से ज्यादा रक्त की जांच करवाना जरूरी है। विवाह के पूर्व लड़का-लड़की दोनों को सिक्लींग का टेस्ट करवाना इस लिए जरूरी है क्योंकि एक सर्वे के मुताबिक अगर दोनों पति-पत्नी में अगर सिक्लींग की शिकायत हो तो होने वाले बच्चो में इसकी शिकायत अधिक होती है। और अगर दोनों पति-पत्नी में से किसी एक में सिक्लींग हो तो होने वाले को सिक्लींग होने की आशंका नहीं के बराबर होता है। इस लिए पैथोलॉजी टेस्ट विवाह पूर्व करा लेना ज्यादा उचित है।
बचाव और उपचार
सिकलसेल बिमारी का अभी तक कोई पूर्ण उपचार का खोज नहीं हुआ है। इस लिए लक्षण अनुयायी उपचार किया जाता है। इससे रोग पर काबू तो नहीं कर सकते हैं पर डेंजर से रोकथाम किया जा सकता है। अधिकांश चिकित्सक फोलिक एसीड और स्टेरॉयड तथा लिवर संबंधित दवा से इसे रोकने का प्रयासी करते हैं। दरअसल इस बिमारी से शरीर में रक्त की कमी से एनीमिया हो जाती है। अधिक रक्त की कमी हो जाने पर चिकित्सक द्वारा खून चढ़ाई जाती हैं। लीवर के कार्यक्षमता कमजोर हो जाती हैं। लीवर में सूजन आ जाती है इस लिए पाचन क्रिया कमजोर हो जाती हैं जिससे कभी-कभी जी मिचलाना एवं उल्टी की भी शिकायत होती है। इस स्थिति में लीवर संबंधित दवा दिया जाता है। अत्यधिक दर्द होने पर दर्द निवारक दवा का भी इस्तेमाल किया जाता है। स्थायी उपचार नहीं होने के कारण रोगी की आयु कम हो जाती हैं। यथा संभव जीवन भर दवा के सहारे जीवित रहना पड़ सकता है।
कुछ आयुर्वेदिक एवं जड़ी-बूटियों से भी उपचार करने का दावा भी झुठी निकल गई। इससे भी राहत मिलने की संभावना बस हैं। पुरी तरह से जड़ से समाप्त करने में अक्षम रहा। सबसे अच्छा उपाय है अच्छे खानपान और लक्षण अनुसार दवा का सेवन।
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