चुंबक की खोज और इसका उपयोग - HUMSAFAR MITRA NEWS

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Tuesday, June 28, 2022

 [विज्ञान] 

चुंबक की खोज और इसका उपयोग 

लेखक - 'मनितोष सरकार' (संपादक) 

'हमसफर मित्र न्यूज' 





चुम्बक अति आवश्यक वस्तुओं में से एक है। चुंबक के बिना जितने भी इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएं हैं वह एक सपना बन जाता। अधिकांश इलेक्ट्रॉनिक वस्तु चुंबक के बिना अधूरा है। चुंबक के खोज के बाद ही साइंस जगत अग्रसर हुआ है। इस लिए चुंबक को एक अति आवश्यक वस्तुओं में से एक गिना जाता है। चुंबक की खोज के बाद केवल विज्ञान जगत ही नहीं भौगोलिक स्थिति का ज्ञान भी प्राप्त हुआ है। वर्ष 1922 में अमेरिका के दो वैज्ञानिक टेलर और लियो यंग ने चुंबक के शक्ति का अनुसरण करते हुए दिक सुचक यंत्र (राडार) का आविष्कार किया है। जो हमेशा उत्तर दिशा की ओर इंगित करते हैं क्योंकि भौगोलिक दृष्टि से उत्तर दिशा चेप्टा होता है। 'राडार' हवाई जहाज, जल जहाज आदि को दिशा निर्देश करते हैं। 


लगभग 800 वर्ष ईसा पूर्व में मैग्नेशिया शहर में ऎसे खनिज की खोज हुई, जो लोहे के टुकड़ों को अपनी ओर आकर्षित करता था। यही पहला प्राकृतिक चुंबक था। चुंबक चूंकि मैग्नेशिया शहर में पाया गया था, इसलिए शुरुआत में इस पदार्थ का नाम मैग्नेटाइट रखा गया। बाद में पता चला कि यह लोहे का एक ऑक्साइड फेरस ऑक्साइड है, तो इसका नाम बदलकर मैग्नेट यानी चुम्बक कर दिया गया।


यह मैग्‍नाइट अयस्‍‍क है जो कि लोहे का आक्‍साइड होता है ।चुंबक को स्‍वतंत्रता पूर्वक लटकाने पर यह हमेशा उत्‍तर दक्षिण दिशा में ठहरता है। चुंम्‍बक का अपने समान दूसरे चुम्बक को आकर्षित या प्रतिकर्षित करने के गुण को चुम्‍बकत्‍व कहा जाता है । चुंबक वह पदार्थ होते है जो लौह की वस्तुओ को आकर्षित करने का गुण रखते है। आइए जानते हैं चुंबक के बारे में अहम जानकारियां... 

 

चुम्बक के दो ध्रुव होते है-


उतरी ध्रुव। 

दक्षिण ध्रुव। 


चुम्‍बक के प्रकार


प्राकृतिक चुम्‍बक

प्राक्रतिक रूप से मिलने वाले चुम्‍बक को प्राक्रतिक चुम्‍बक कहते है। इसे lodestone भी कहा जाता है जैसे मैग्‍नेटाइट के पत्‍थर


कृत्रिम चुम्‍बक


कृत्रिम चुम्‍बक लोहे या इस्‍पात के  कृत्रिम तरीके से बनाये जाते है , कृत्रिम चुम्‍बक कहलाते है। जैसे छड चुम्‍बक , चुम्‍बकीय सुई चुम्‍बक आदि। 

 

कृत्रिम चुम्बक दो प्रकार के होते है


स्थाई चुम्बक –

ये वे कृत्रिम चुम्बक होते है जिनका चुंबकीय गुण हमेशा बना रहता है। 


अस्थाई चुंबक –

ये वे कृत्रिम चुम्बक होते है जिनका चुंबकीय गुण अस्थाई होता है। 


विद्युत चुम्‍बक


विद्युत चुम्‍बक किसी  विद्युत रोधी पदार्थ जैसे कार्ड बोर्ड  अथवा मोटे कागज की नलिका पर तॉंबे के तार  के फेरे लपेटकर एक कुण्‍डली बनायी जाती है फिर उसमे विद्युतधारा प्रवाहित करने पर वह एक दण्‍ड चुम्‍बक की भॉंति व्‍यवहार करने लगती है जिसे विद्युत चुम्‍बक कहा जाता है ।


चुम्‍बक के गुण


* चुम्‍बक के दो ध्रुव होते है उत्‍तरी ध्रुव तथा दक्षिणी ध्रुव ।

* चुम्‍बक के अन्‍दर अनुचुम्‍बकीय पदार्थ जैसे लोहा निकिल तथा कोबाल्‍ट को  आकर्षित करने का गुण पाया जाता है। 

* चुम्‍बक के दोनो ध्रुवो को मिलाने वाली रेखा चुम्‍बकीय अक्ष कहलाती है। 

* चुम्‍बक के समान ध्रुवो मे प्रतिकर्षण तथा विपरीत ध्रुवो मे आकर्षण होता है ।

* ध्रुवो के चुम्‍बकत्‍व का मान सर्वाधिक तथा मध्‍य मे न्‍यूनतम होता है तथा बिल्‍कुल मध्‍य मे शून्‍य होता है जिसे उदासीन बिंदु कहते है। 

* गर्म करने अथवा पीटने पर चुम्‍बकत्‍व का मान कम हो जाता है। 

* चुम्‍बक को तोडने पर उसका प्रत्‍येक खंड पुन: एक नया चुम्‍बक बन जाता है। 

* चुुुुम्बक के उपयोग

लौह पदार्थो की पहचान करने मे ।

* दिक् सूचक  (राडार) के निर्माण मे।

कम्प्‍युटर  की मैमोरी के निर्माण मे ।

* ऐटीम तथा डेविट कार्डो पर चुम्‍बकीय पदार्थो का लेप होता है जिसमे प्रयोगकर्ता की पहचान अंकित होती है ।

* ध्‍वनि विस्‍तारक यंत्र , रेडियो टीवी ,पंखा के निर्माण मे ।

* अस्थायी चुम्‍बक नर्म लोहे के तथा स्‍थायी चुम्‍बक इस्‍पात के बनाये जाते है।

* विद्युत घंटी ,ट्रांसफार्मर के क्रोड डायनमों आदि अस्‍थायी चुम्‍बक का प्रयोग किया जाता है तथा लाउड स्‍पीकर  ,धारामापी, दिकसूचक , रेल के डिब्‍बो केा जोडने में स्थायी चुम्‍बक का प्रयोग होता है ।


चुम्‍बकीय क्षेत्र की तीव्रता


चुम्‍बक के चारो ओर का वह क्षेत्र जहा तक वह अन्‍य चुम्‍बक अथवा चुम्‍बकीय पदार्थो को आकार्षित  अथवा प्रतिकर्षित कर सकती है ,चुम्‍बकीय क्षेत्र कहलाता है तथा चुम्‍बक के इस प्रभाव को चुम्‍बकीय क्षेत्र की तीव्रता कहते है


चुम्‍बकीय क्षेत्र की तीव्रता एक सदिश राशि है जो कि चुम्‍बक से दूरी के व्‍युत्‍क्रमा‍नुपा‍ती होती है ।


चुम्‍बकीय क्षेत्र की तीव्रता की इकाई न्‍युटन-मीटर व बेबर/मीटर^2 हेाती है इसका एस आई मात्रक टेस्‍ला तथा CGS  इकाई गौस है


 1 गौस =10^-4 टेस्‍ला


चुम्‍बकीय बल रेखॉऐ


चुम्‍बकीय क्षेत्र मे स्थित वे काल्‍पनिक वक्र रेखाऐ जिनके किसी भी बिन्‍दु पर खीची गई स्‍पर्श रेखाऍं उस बिन्‍दु पर चुम्‍ब‍कीय क्षेत्र की तीव्रता की दिशा को निरूपित करती है,चुम्‍बकीय बल रेखाऍं कहलाती है। 


ये रेखाएं चुम्‍बक के अन्‍दर दक्षिणी ध्रुव से उत्‍तरी ध्रुव की ओर तथा चुम्‍बक के बाहर उत्‍तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव की ओर गमन करती है। 

ये रेखाऐ एक दूसरे को कभी नही काटती तथा जहॉ पर चुम्‍बकीय बल रेखाएं सघन होती है वहा पर चुम्‍बकीय क्षेत्र प्रबल होता है।


चुम्‍ब‍कीय प्रेरण


चुम्‍बकीय पदार्थ को किसी वाह्य चुम्‍बकीय क्षेत्र मे रखने पर पदार्थ के चुम्‍बकित होने को प्रेरित चुम्‍बकत्‍व कहते है तथा इस घटना को चुम्‍बकीय प्रेरण कहते है ।


नोट पृथ्वी भी एक विशाल चुम्‍बक की तरह कार्य करती है जिसे भूचुम्‍बकत्‍व कहते है । प्रथ्‍वी का चुम्‍बकीय अक्ष भौगोलिक अक्ष के साथ 15° का कोण बनाता है । पृथ्वी के सम्‍पूर्ण चुम्‍बकीय क्षेत्र का औसत मान 0.4 ×10⁻⁴ टेसला होता है ।


दिक्पात कोण


पृथ्वी के चुम्बकीय याम्‍योत्‍तर और  भौगोलिक याम्‍योत्‍तर के बीच के न्यून कोण को दिक्पात कोण कहते है ।


नमन कोण


किसी स्‍थान पर प्रथ्‍वी के चुम्बकीय क्षेत्र और क्षैतिज तल के बीच बने कोण को नमन कोण कहा जाता है ।ध्रुवो पर नमन कोण का 90° तथा विषुवत रेखा पर नमन कोण का मान 0° होता है इसे नीति कोण भी कहते है


चुम्‍बकशीलता


किसी पदार्थ का वह गुण जिसके कारण पदार्थ केा चुम्बकीय क्षेत्र मे रखने पर उसके अन्‍दर चुम्‍बकीय बल रेखाओ की संख्‍या मे कमी या ब्रद्धि हो जाती है अर्थात चुम्‍बकीय बल रेखाओ की सघनता का कम या ज्‍यादा होना हि पदार्थ की चुम्‍बकशीलता कहलाता है। इसे म्‍यु(µ)  से दर्शाते है


निर्वात की चुम्‍बकशीलता का मान -4π ×10^-7 न्‍युटन /ऐम्‍पीयर^2 या हेनरी/मीटर होता है।


µ=चुम्‍बकीय पदार्थ में प्रति वर्ग मीटर में गुजरने वाली बल रेखांऐ (B)/हवा में प्रति वर्ग मीटर बल रेखाओं की संख्‍या (N)


चुम्‍बकीय प्रव्रत्ति


किसी पदार्थ का वह गुण जो यह बताता है कि कोई पदार्थ कितनी आसानी से कितना अधिक चुम्‍बकीय गुण ग्रहण कर सकता है पदार्थ की चुम्‍बकीय प्रव्रत्ति कहलाता है । इसे पाई (π) से प्रदर्शित करते है। 


π=I/H =K =नियतांक

 

यहॉं


I=पदार्थ मे उत्‍पन्‍न चुम्‍बकीय तीव्रता। 


H =पदार्थ को चुम्‍बकित करने वाला बल। 


क्‍यूरी ताप


किसी लौह चुम्‍बकीय पदार्थ की चुम्‍बकीय प्रव्रत्ति उसके परम ताप के व्‍युत्‍क्रमानुपाती होती है इसे क्‍यूरी का नियम कहते है । लोहे के लिये क्‍यूरी ताप का मान 770 °C तथा निकिल के लिये क्‍यूरी ताप का मान 358 °C  होता है ।


 चुम्‍बकीय फ्लस्‍क


किसी समतल के अनुप्रस्‍थ काट के क्षेत्रफल  के लंबवत गुजरने वाली संपूर्ण चुंबकीय बल रेखाओं की संख्‍या चुम्‍बकीय फ्लस्‍क कहते है । इसे Φ से प्रदर्शित करते है ।


चुम्‍बकीय फ्लस्‍क का मात्रक बेबर अथवा न्‍युटन मीटर प्रति ऐम्‍पियर होता है। 


1 बेबर =1 न्‍युटन मीटर प्रति ऐम्‍पियर होता है


फैराडे के विद्युत चुम्‍बकीय प्रेरण के नियम


प्रथम नियम

जब किसी बंद कुण्‍डली से होकर जाने वाली चुम्‍बकीय बल रेखाओं की संख्‍या अर्थात् चुम्‍बकीय फ्लस्‍क मे परिवर्तन होता है तो उस कुंडली मे प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्‍पन्‍न होता है यह प्रेरित विद्युत बाहक बल केवल तब तक प्रभावी होता है जब तक कि चुम्‍बकीय फ्लस्‍क मे परिवर्तन होता रहता है


द्वितिय नियम

कुंडली मे उत्‍पन्‍न प्रेरित विद्युत वाहक बल का परिमाण चुम्‍बकीय फ्लस्‍क के परिवर्तन की दर के अनुक्रमानुपाती हेाता है।


माना कुंडली मे से गुजरने वाली फल्क्स का मान Φ₁, व इसका मान At समय पश्चात चुंबकीय फल्क्स Φ₂ हो जाता है तो पैदा होने वाला विद्युत वाहक बल निम्न होगा


F = kΔΦ/Δtk


नियतांक का जिसका मान एक होता है


F = ΔΦ/ Δt


लेन्‍ज का नियम


किसी कुण्‍डली मे प्रेरित विद्युत बाहक बल हमेशा उस कारण का विरोध करता है जिसके द्वारा वह स्‍वंय उत्‍पन्‍न होता है।इसे हि लेन्‍ज का नियम कहते है। यदि कुंडली के चुम्‍बकीय फ्लस्‍क मे व्रद्धि होतीहै तो प्रेरित विद्युत बाहक बल कुण्‍डली के चुम्‍बकीय फ्लस्‍क को घटाने की कोशिश करता है और यदि कुंडली के चुम्बकीय फ्लस्‍क में कमी हेाती है तो प्रेरित विद्युत वाहक बल चुम्‍बकीय फ्लस्‍क को बढाने की कोशिश करता है। 


कुछ महत्‍वपूर्ण बिन्‍दु


विद्युत जनित्र या डायनमो विद्युत चुम्‍बकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता हैजोकि यान्त्रिक ऊर्जा का रूपांतरण विद्युत ऊर्जा मे होता है। 

विद्युत मोटर एक ऐसी घूर्णन युक्ति होती है जो कि विद्युत ऊर्जा को यात्रिक ऊर्जा मे बदलती है

ट्रांसफार्मर का प्रयोग केवल प्रत्‍यावर्ती धारा की तीव्रता को कम या अधिक करने मे किया जाता है। 

दिष्‍टकारी अथवा रेक्‍टीफायर प्रत्‍यावर्ती धारा केा दिष्‍टधारा मे बदलता है। 

विद्युत चुम्‍बको के निर्माण मे केवल दिष्‍ट धारा का ही प्रयोग हेाता है। 

प्रत्‍यावती्र धारा केा दिष्‍टधारा की तरह संचायक सेलो मे आवेशन द्वारा संचित नही किया जा सकता ।

भारत मे प्रत्‍यावर्ती धारा की आव्रत्ति 220 वोल्‍ट या 50 हर्टज पर भेजी जाती है घरो मे भेजी गई धारा का मान 5 व 15 ऐम्‍पीयर होता है।

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