[कविता]
।अंधकार छा रहा बुरे विचारों का।
कवि - विजेंद्र घृतलहरे
'हमसफर मित्र न्यूज'
अंधकार छा रहा बुरे विचारों का।
इंसान शिकार हो रहा बुरे इरादों का।
साम्राज्य उदय हो रहा बुराइयों का।।
इंसान प्रकाश ढूंढ रहा अच्छाइयों का।।
हर तरफ नजर आ रहा चेहरा बुराइयों का।
मानवता ढूंढ रहा वजूद अच्छाइयों का।।
हर जगह उदय हो रहा शासन अपराधियों का।
दर्दो से तड़प रहा इंसान देख पर को बुराइयों का।।
निकल रहा क्रूरता वंश परोपकार का।
हर हृदय में भर रहा भावना द्वेष का।।
खत्म हो रहा भावना कोमलता का।
सिर कट रहा विनम्रता का।।
हर महफिल में सजी है ताज अपराधियों का।
हर जगह सिर उठाए खड़ा है दानव पापियों का।।
जीना मुश्किल हो गया है अच्छाइयों का।
परिभाषा ही बदल गया है मानवीय विचारों का।।
अंधकार छा रहा बुरे विचारों का
मानव शिकार हो रहा बुरे इरादों का।।।
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