कैसे बने हवाई जहाज, जानिए इसका दिलचस्प कहानी - HUMSAFAR MITRA NEWS

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Wednesday, November 3, 2021

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 [विज्ञान नॉलेज] 
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कैसे बने हवाई जहाज, जानिए इसका दिलचस्प कहानी 
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लेखक - 'मनितोष सरकार' (संपादक) 

'हमसफर मित्र न्यूज' 





पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण कोई भी वस्तु ऊपर से नीचे गिर जाता है। इसका अवलोकन 17 वीं सदी में महान वैज्ञानिक आइजक न्यूटन ने किया है। एक दिन आइजक न्यूटन ने एक सेब के पेड़ के नीचे बैठकर कुछ गवेषणा में मौन थे, तभी पेड़ से एक सेब जमीन पर गिरे, जिसे देखते ही उनके मन में सवाल पैदा हुआ, कि आखिर यह सेब नीचे क्यों गिरा...? तब उन्होंने यह सिद्ध किया कि पृथ्वी का आकर्षण शक्ति हैं जो सेब को नीचें की ओर खींच लिया है। दोस्तो, इस बात को यहां इस लिए कह रहा हूं कि हम ऊपर से नीचे आसानी से गिर सकते हैं पर नीचे से ऊपर जाना आसान नहीं है क्योंकि पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण हमें नीचे की ओर खींच लेंगे। पर आज हम ऊंचाइयों पर आसानी से उड़ने में समर्थ हो गए हैं। 


17 दिसंबर 1903 वह दिन था जो, मनुष्य पहली बार मशीन के सहारे ऊंचाइयों पर उड़ान भरकर इतिहास रचा हैं। जी हां, अमेरिका के राइट बंधु ओरविल और विलबर ने यह कारनामा कर दिखाया है। एक दिन राइट बंधुओं ने आसमान की ओर देख रहे थे कि आसमान के ऊचाईयों पर पक्षियों ने डाना फैला कर बड़ी आसानी से उड़ान भर रहे थे, क्या हम उन पक्षियों की तरह उड़ान नहीं भर सकतें..? यही सोच एक दिन मनुष्य के लिए वरदान साबित हो गया और आज हम हवाई जहाज से उड़ान भर कर मीलों दूर चंद घंटों में पहुंच जाते हैं। 


ऐसा नहीं है कि राइट बंधुओं के पहले ऐसा किसी ने सोचा नहीं है। सोचा है पर सक्सेस नहीं हो पाया और कई प्रयासों में जान गंवाना पड़ा। 


जर्मनी के लीलीएंथल नामक एक व्यक्ति ने पहली बार उड़ने के तरीकों के बारे में गंभीरतापूर्वक सोचा। उसने पंख के आकार की एक मशीन बनाई, उसने स्वयं को मशीन से कसकर बाँध लिया, फिर वह पहाड़ी की ऊंची चोटी से कूद गया। पांच साल तक रोज वह इस प्रकार ‘उड़ता’ रहा लेकिन वह कभी भी कुछ सेकंडों से ज्यादा नहीं उड़ सका। इस बीच उसने वायु की धाराओं और उड़ने की समस्याओं पर अच्छा शोध कर लिया। एक दिन जब वह जमीन से लगभग 50 फीट ऊपर उड़ रहा था तब उसकी मशीन हवा के तेज झोंके की चपेट में आ गई और वह नीचे गिर गया और गिरकर मारा गया। 


अमेरिका के स्मिथसोनियन इंस्टिट्यूट के प्रोफेसर लैंग्ली नामक एक व्यक्ति ने भी अपने जीवन के अंतिम वर्षों में उड़ने से सम्बंधित विषयों पर बहुत काम किया और उन्होंने एक गतिशील मशीन भी बनाई लेकिन वे भी उससे एक बार में कुछ सौ मीटर से ज्यादा दूर नहीं उड़ पाए। 


प्रोफेसर लैंग्ली के प्रयोगों ने लोगों का ध्यान अपनी और खींचा। बेहतर तकनीकी योग्यता रखनेवाले फ्रांसीसी और अंग्रेज वैज्ञानिकों ने भी उड़ने के विज्ञान पर बहुत काम किया लेकिन हवा से भारी और बाह्य ऊर्जा द्वारा चलायमान विमान की सहायता से उड़ने में सफलता प्राप्त करने का श्रेय दो अमेरिकी बंधुओं औरविल और विल्बर राइट को जाता है. राइट बंधुओं ने केवल हाईस्कूल तक शिक्षा पाई थी और उनमें कोई तकनीकी कौशल या योग्यता नहीं थी. उनके पास अपने काम के लिए आवश्यक धनराशि भी नहीं थी। 


राइट बंधुओं का जन्म ओहियो के नगर डेटन में हुआ था. वे हमेशा यंत्रों में रूचि लेते थे और साइकिल मरम्मत की दूकान चलाते थे। वर्ष 1896 में लीलिएंथल की मृत्यु और किताबों में उड़ने के विषय में चल रहे प्रयोगों के बारे में पढ़कर उनमें इस बारे में रूचि जाग्रत हुई। उन्होंने बिना किसी सोच विचार के अपना वायुयान बनाने का निश्चय कर लिया। 


प्रयोगों में लगाने के लिए उनके पास धन नहीं था। उन्हें तो इसके खतरों के बारे में भी ज्यादा पता नहीं था। उन्होंने तय किया कि वे पक्षियों की उड़ान का अध्ययन करेंगे और इसके साथ ही उन्होंने तब तक बन चुकी सारी उड़ान मशीनों का भी अध्ययन कर लिया। 


राइट बंधुओं ने हमेशा अपनी मशीनें स्वयं बनाईं है। सबसे पहले उन्होंने एक ग्लाइडर बनाया जिसे वे पतंग की तरह उड़ाते थे। इसे लीवरों की सहायता से जमीन पर रस्सियाँ बांधकर नियंत्रित किया जाता था। इस प्रकार उन्होंने उड़ान के सिद्धांतों का अध्ययन कर लिया और यह भी सीख लिया कि हवा में मशीन को कैसे चलायमान रखा जाए। 


इसके बाद उन्होंने एक मानवयुक्त ग्लाइडर बनाया। इसे उन्होंने लीलिएंथल की ही भांति पहाड़ी से कूदकर उड़ाया। इस ग्लाइडर को हवा में तिराना तो आसान था लेकिन अपनी मनमर्जी से उसे उड़ाना और उसका संतुलन बनाए रखना मुश्किल था। सुरक्षा की दृष्टि से प्रयोग जारी रखने के लिए वे वर्ष 1900 में नॉर्थ कैरोलाइना में एक एकांत स्थल में चले आये जहाँ ऊंची रेतीली पहाड़ियां थीं। इस प्रकार वे कठोर पथरीली जमीन पर गिरने से बच सकते थे। अगले दो सालों में उन्होंने लगभग दो हज़ार बार अपने ग्लाइडर में उड़ान भरी जिनमें से सबसे लम्बी उड़ान 600 फीट की दूरी तक गई। 


इस प्रक्रिया में सबसे महत्वपूर्ण चरण था ग्लाइडर को प्रणोदित करना। 1903 में उन्होंने तरल ईंधन से चलनेवाली एक मोटर बनाई और उसका परीक्षण करने के लिए वे पुनः नॉर्थ कैरोलाइना गए। उन्हें यकीन था कि उनकी मशीन काम करेगी लेकिन उन्होंने इसकी कोई औपचारिक घोषणा नहीं की। हालांकि इसी वर्ष 17 दिसंबर को औपचारिक रूप से विमान का सफल उड़ान माना गया है। 


उनकी पहली उड़ान केवल 12 सेकंड के लिए ही थी लेकिन मानव के इतिहास में यह पहली उड़ान थी, जिसमें एक मशीन ने स्वयं गति करके हवा से भारी विमान को मानव सहित उड़ा लिया। कुछ समय हवा में नियंत्रित रहने के बाद उनका विमान बिना किसी नुकसान के नीचे उतर भी गया। उसी दिन उन्होंने दो और प्रयास किये जो कुछ अधिक समय के थे। उनकी चौथी उड़ान 59 सेकंडों की थी और उसने बारह मील की रफ़्तार से चल रही हवा की दिशा में 835 फीट की दूरी तक तय की। 


राइट बंधुओं ने यह सब मनबहलाव के लिए शुरू किया था लेकिन इसमें सफलता मिलने पर वे इसके प्रति गंभीर हो गए और 1905 तक वे अपने प्रयोगों में इतने पारंगत हो चुके थे कि उन्होंने 35 मील प्रति घंटे की रफ़्तार से 24 मील की उड़ान भरी। अचरज की बात यह है कि इस समय तक उनकी उपलब्धियों के बारे में किसी को भी पता नहीं चला और किसी भी समाचार पत्र या पत्रिका में इस बारे में कुछ नहीं छपा। जब लोगों ने उनकी 24 मील लंबी उड़ान के बारे में सुना तो बहुत कम लोगों ने इसपर विश्वास किया। 


वर्ष 1908 में विल्बर राइट एक मशीन को फ्रांस ले गए। फ्रांसीसी समाचार पत्र ने विल्बर राइट को लंबी गर्दन वाले एक पक्षी के रूप में चित्रित किया और उनकी भोंडी सी दिखने वाली मशीन का भी मजाक उड़ाया। उसी दिन विल्बर ने हवा में 91 मिनट उड़कर 52 मील की दूरी तक उड़ने का कीर्तिमान बनाया। कुछ दिनों बाद उन्हें 2 लाख फ्रैंक का पुरस्कार दिया गया, इसके साथ ही फ्रांसीसी सरकार ने उन्हें 30 इंजन बनाने का आर्डर भी दे दिया। 


जिस समय विल्बर फ्रांस में रिकॉर्ड बनाकर पुरस्कार प्राप्त कर रहे थे, औरविल वर्जीनिया के फोर्ट मेयर में सहयात्री को बिठाकर एक घंटे से भी लम्बी उडानें भर रहे थे। 


वर्ष 1909 में विमानन के क्षेत्र में अभूतपूर्व उन्नति हुई। ब्लेरिओट नामक एक फ्रांसीसी ने अपने विमान से इंग्लिश चैनल को पार किया। इसके बाद इंजनयुक्त एक बड़े गुब्बारे ज़ेपेलिन ने 220 मील की दूरी तय की। औरविल राइट वर्जीनिया से नॉर्थ कैरोलाइना तक अपने विमान को उड़ा ले गए। NC-4 नामक एक अमेरिकी विमान ने वर्ष 1919 में अटलांटिक सागर को पार किया। R-34 नामक एक अंग्रेज विमान ने कुछ दिनों बाद यही करिश्मा फिर से दोहराया। 


आज तो प्रतिदिन हजारों विमान उड़ान भरते हैं और पायलट हर तरह के हैरतंगेज़ कारनामों को करके दिखाते हैं। एक मशीन में बैठकर उड़ना और ऊपर से पृथ्वी को देखना सबके लिए रोमांचित करनेवाला अनुभव होता है। राइट बंधुओं ने अपनी लगन और मेहनत के दम पर वह कर दिखाया जिसके सपने मानव चिरकाल से देखता रहा था और जिसे सच साबित करने के लिए न जाने कितने ही मेधावी और दुस्साहसी युवकों को अपने प्राण गंवाने पड़े। दुनियावालों की नज़रों से दूर बिना किसी यश या धन प्राप्ति की चाह के राइट बंधु अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सतत प्रयास करते रहे। अत्यंत विनम्र स्वभाव के राइट बंधुओं ने अपने अविष्कारों के बदले में किसी कीर्ति की अपेक्षा नहीं की। विमानन के इतिहास में उनका नाम सदा के लिए स्वर्ण अक्षरों में अंकित हो गया है।

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