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Monday, October 4, 2021

 

सर्वपितृ अमावस्या 5 सितंबर को , पितरों की देहांत तिथि भूल चुके लोग इस दिन करें श्राद्ध

प्रस्तुति - 'मनितोष सरकार' (संपादक) 

'हमसफर मित्र न्यूज' 




पितृ पक्ष में सर्वपितृ अमावस्या को बहुत ही विशेष दिन माना गया है. सर्वपितृ अमावस्या के दिन उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु की तिथि पता नहीं होती है. सर्वपितृ अमावस्या को आश्विन अमावस्या, बड़मावस और दर्श अमावस्या भी कहा जाता है. हिन्दू पंचांग के मुताबिक इस साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या यानि सर्वपितृ अमावस्या 6 अक्टूबर 2021 दिन बुधवार को है.


शास्त्रसम्मत विधि के अनुसार जिस तिथि को परिजन की मृत्यु होती है, पितृपक्ष में उसी तिथि को उनके नाम से श्राद्ध करना चाहिए. यदि किसी कारणवश उनकी देहांत की तिथि भूल गए हैं तो सर्वपितृ अमावस्या के दिन आप श्राद्ध और तर्पण कर सकते हैं. आश्विन मास की इस अमावस्या की खास बात यह है कि इस बार इस दिन एक विशेष योग बन रहा है, जो कि कई सालों में बनता है.


मान्यता है कि कोई भी व्यक्ति जो पूरे साल में कभी भी श्राद्ध-तर्पण नहीं करता है, अगर वह भी इस तिथि पर श्राद्ध-तर्पण कर लेता है तो उसे सभी तिथियों के श्राद्ध कर्म के बराबर पुण्य फल मिल जाता है.


11 साल बाद बन रहा गजछाया योग

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, जिन परिजनों को अपने पितरों की देहांत तिथि ज्ञात नहीं है, वह सर्व पितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध और तर्पण कर सकते हैं. इस साल पितृ पक्ष 2021 में सर्व पितृ अमावस्या के दिन गजछाया योग बन रहा है. इससे पहले ये योग 11 साल पहले 2010 में बना था. ये गजछाया योग काफी शुभ होता है. 6 अक्टूबर के दिन सूर्य और चंद्रमा दोनों की सूर्योदय से लेकर शाम 4 बजकर 34 मिनट तक हस्त नक्षत्र में होंगे. इस स्थिति के कारण गजछाया योग बनता है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इस योग में श्राद्ध करने से पितृ प्रसन्न होते हैं. इतना ही नहीं, कहते हैं कि इस योग में तर्पण-श्राद्ध करने से कर्ज से मुक्ति मिलती है और घर में सुख-समृद्धि आती है. इस योग में श्राद्ध और दान करने से अगले 12 सालों के लिए पितरों की क्षुधा शांत हो जाती है. इसके बाद ये योग 8 साल 2029 में बनेगा.


पितरों के लिए बनायें सात्विक भोजन

 

इस अमावस्या पर पितरों के लिए सात्विक भोजन बनाना चाहिए. सात्विक भोजन यानी संतुलित आहार. इस दिन तामसिक भोजन का त्याग करें. तामसिक भोजन यानी लहसून-प्याज के साथ बने व्यंजन, अधिक तला-भुना मसालेदार खाना, मांसाहार. सात्विक भोजन में पुड़ी-सब्जी, खीर, मिठाई बनाई जा सकती है. श्राद्ध कर्म बहुत साधारण तरीके से करना चाहिए. बहुत अधिक धनी होने पर इस कर्म का ज्यादा विस्तार न करें यानी बड़े पैमाने पर न करें. ब्राह्मणों को भोजन कराने और श्राद्ध करने का समय मध्याह्न होना चाहिए. ब्राह्मणों को भोजन कराने से पहले पंचबली निकालनी चाहिए.


 तर्पण में रखें ख्याल

तर्पण में दूध, तिल, कुशा, पुष्प, गंध मिश्रित जल से पितरों को तृप्त किया जाता है. श्राद्ध का फल, दक्षिणा देने पर ही मिलता है. मान्यता है कि चंद्रलोक पर और सूर्यलोक के पास पितृलोक होने से, वहां पानी की कमी है. अत: पूर्वजों का तर्पण, हर पूर्णिमा और अमावस्या पर करें.


श्राद्ध में जरूरी बातें

स्वच्छ वस्त्र पहनकर पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध व दान का संकल्प लें. श्राद्ध में पूजा-पाठ की सामग्री के अलावा तर्पण के लिए खासतौर से साफ बर्तन, जौ, तिल, चावल, कुशा घास, दूध और पानी की जरूरत होती है. पिंडदान के लिए तर्पण चावल और उड़द का आटा जरूरी है. ब्राह्मण भोजन के लिए सात्विक भोजन बने. वस्त्रदान से पितरों तक वस्त्र पहुंचाए जाता है. श्राद्ध होने तक कुछ न खाएं.


 सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या से जुड़ी कथा


पुराने समय में अग्निष्वात और बर्हिषपद नाम के पितृ देव थे. उनकी मानस कन्या थीं अक्षोदा. अक्षोदा ने अश्विन मास की अमावस्या पर पितरों को प्रसन्न करने के लिए तप किया था. तपस्या से प्रसन्न होकर सभी पितर देवता अक्षोदा के सामने प्रकट हुए. उस समय अक्षोदा का पूरा ध्यान एक तेजस्वी पितर अमावसु की ओर ही था और वह उन्हें अपलक निहारती रहीं, उसने अमावसु से कहा, “वरदान में आप मुझे स्वीकारें मैं आपका संग चाहती हूं.’


अक्षदा की ये बात सुनकर सभी पितर देवता क्रोधित हो गए. उन्होंने उसे शाप दिया कि वह पितर लोक से पृथ्वी लोक जाएगी. ये सुनकर अक्षोदा को अपनी गलती का अहसास हुआ हुआ और वह क्षमा याचना करने लगी. तब पितरों ने दयाकर उससे कहा कि वह मत्स्य कन्या के रूप में जन्म लेगी.


भगवान ब्रह्मा के वंशज महर्षि पाराशर उस मत्स्य कन्या को पति रूप में मिलेंगे और उसके गर्भ से भगवान वेद व्यास जन्म लेंगे. इसके बाद फिर श्राप मुक्त होकर वह फिर से पितर लोक में वापस आ जाएगी.

 

पितृ अमावसु को पितर देवताओं ने दिया वरदान


सभी पितरों ने अमावसु की प्रशंसा की और वरदान दिया कि आपने सौंदर्य और स्त्री के आगे अपने मन को भटकने नहीं दिया और अपने संयम और नियम पर आप टिके रहे, इसलिए आज से ये तिथि आपके नाम से अमावसु के रूप में जानी जाएगी. मान्यता है कि तभी से ये दिन पितृमोक्ष अमावस्या के रूप में प्रसिद्ध हुआ है.



'साभार' 

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