पूर्व जन्मों के कर्मों से ही हमें इस जन्म में माता-पिता, भाई-बहिन, पति-पत्नी, प्रेमी-प्रेमिका, मित्र-शत्रु, सगे-सम्बन्धी सब मिलते हैं
'हमसफर मित्र न्यूज'
पूर्व जन्मों के कर्मों से ही हमें इस जन्म में माता-पिता, भाई-बहिन, पति-पत्नी, प्रेमी-प्रेमिका, मित्र-शत्रु, सगे-सम्बन्धी सब मिलते हैं। क्योंकि इन सबको हमें या तो कुछ देना होता है या इनसे कुछ लेना होता है। राजेश वैष्णव बताते हैं कि इसका स्पष्ट उल्लेख श्रीमद्भागवत गीता में किया गया है। अर्जुन और श्रीकृष्ण के संवाद के दौरान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं न तो मैं किसी को दुख देता हूं और न ही किसी को सुख। मनुष्य स्वयं अपने पूर्व जन्म के कर्मों को भोगता है।
आम तौर पर यह माना जाता है कि सन्तान के रुप में हमारा कोई पूर्व जन्म का संबंधी ही आकर जन्म लेता है। लेकिन जन्म को लेकर शास्त्रों में विभिन्न प्रकार की बातें की जाती हैं। वैष्णव जी के अनुसार शास्त्रों में जन्म को लेकर चार प्रकार की अवधारणाएं दी गई हैं। गीता में भी इन जन्मों का उल्लेख किया गया है।
- ऋणानुबन्ध: पूर्व जन्म का कोई ऐसा जीव जिससे आपने ऋण लिया हो या उसका किसी भी प्रकार से धन नष्ट किया हो, वह आपके घर में सन्तान बनकर जन्म लेगा और आपका धन बीमारी में या व्यर्थ के कार्यों में तब तक नष्ट करेगा, जब तक उसका हिसाब पूरा ना हो जाए।
- शत्रु पुत्र: पूर्व जन्म का कोई दुश्मन आपसे बदला लेने के लिए आपके घर में सन्तान बनकर आएगा और बड़ा होने पर माता-पिता से मारपीट, झगड़ा या उन्हें सारी जिन्दगी किसी भी प्रकार से सताता ही रहेगा। हमेशा कड़वा बोलकर उनकी बेइज्जती करेगा व उन्हें दु:खी रखकर खुश होगा ।
- उदासीन पुत्र: इस प्रकार की सन्तान ना तो माता-पिता की सेवा करती है और ना ही कोई सुख देती है। बस, उनको उनके हाल पर मरने के लिए छोड़ देती है । विवाह होने पर यह माता-पिता से अलग हो जाते हैं।
- सेवक पुत्र: पूर्व जन्म में यदि आपने किसी की खूब सेवा की है तो वह अपनी की हुई सेवा का ऋण उतारने के लिए आपका पुत्र या पुत्री बनकर आता है और आपकी सेवा करता है। जो बोया है, वही तो काटोगे। अपने मां-बाप की सेवा की है तो ही आपकी औलाद बुढ़ापे में आपकी सेवा करेगी, वर्ना कोई पानी पिलाने वाला भी पास नहीं होगा ।
ये बातें भी होती हैं लागू
यह सब बातें केवल मनुष्य पर ही लागू नहीं होतीं। इन चार प्रकार में कोई सा भी जीव आ सकता है। जैसे आपने किसी गाय कि नि:स्वार्थ भाव से सेवा की है तो वह भी पुत्र या पुत्री बनकर आ सकती है। यदि आपने गाय को स्वार्थ वश पाला है। उसे दूध बंद होने पर छोड़ दिया है तो ऋणानुबन्ध पुत्र या पुत्री बनकर जन्म लेगी। यदि आपने किसी निरपराध जीव को सताया है तो वह आपके जीवन में शत्रु बनकर आएगा और आपसे बदला लेगा।
यह है प्रकृति का नियम
कि जीवन में कभी किसी का बुरा नहीं करना चाहिए। राजेश वैष्णव उमरिया वाले ने बताया प्रकृति का नियम है कि आप जो भी करोगे, उसे वह आपको इस जन्म में या अगले जन्म में सौ गुना वापिस करके देगी। यदि आपने किसी को एक रुपए दिए हैं तो समझो आपके खाते में सौ रुपए जमा हो गए हैं। यदि आपने किसी का एक रुपया छीना है तो समझो आपकी जमा राशि से सौ रुपए निकल गए।
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