रिसर्च से बड़ी खुलासा : मजदूर और किसानों को क्यों नहीं होता कोरोना
'हमसफर मित्र न्यूज'।
कोविड-19 के 500 से ज्यादा स्ट्रेन पता किए जा चुके हो और इनमें से कुछ तो बेहद जानलेवा है। यह इतनी खतरनाक है कि जांच रिपोर्ट आने से पहले संक्रमित व्यक्ति की मौत हो जाती है। एक बात सब ने ध्यान दी है कि कोरोनावायरस सबसे ज्यादा उन लोगों को शिकार बना रहा है जो एयर कंडीशनर में रहते हैं और फास्ट फूड खाते हैं। उच्च मध्यमवर्गीय और मिडिल क्लास में वायरस का शिकार हुआ है लेकिन गरीब मजदूर और किसान वायरस से मरते हुए नहीं दिखाई दिए। हर कोई यह सवाल करता है कि मजदूरों को कोरोना नहीं होता क्या। अमेरिका में हुई एक रिसर्च में इसका खुलासा हुआ है।
अमेरिका की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कोरोना पर की अपनी एक रिसर्च में बताया है कि जो लोग शारीरिक श्रम नहीं करते हैं या बेहद कम करते हैं, उनमें कोरोना का संक्रमण घातक साबित हो सकता है। ऐसे लोगों को संक्रमित होने पर अस्पताल में भर्ती कराना पड़ता है। साथ ही ऐसे मरीजों में मौतों का आंकड़ा भी ज्यादा है। वहीं शारीरिक श्रम करने वाले लोग अगर संक्रमित हो भी गए तो कोरोना उन्हें ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा पाता है। कई बार तो उन्हें पता ही नहीं चलता कि वह संक्रमित हुए थे।
शारीरिक रूप से सक्रिय ना रहने वाले लोगों में संक्रमण का खतरा
शरीर से निकलने वाला पसीना कोरोनावायरस को कमजोर करता है
रिसर्च से ये बात भी साफ हो गई है कि गांवों में क्यों कोरोना संक्रमण उतना घातक नहीं है, जितना वह शहरों में है। दरअसल गांव के लोगों की जीवनशैली शारीरिक श्रम वाली रही है। जिसके चलते कोरोना ग्रामीण इलाकों में ज्यादा नुकसान नहीं कर पाया। शायद शरीर से निकलने वाला पसीना कोरोनावायरस के संक्रमण को प्रभावी होने से रोकता है।
कोरोनावायरस का शिकार वही हो रहे हैं जिनके शरीर से पसीना नहीं निकलता
माना जा रहा है कि यही वजह है कि अमेरिका समेत विकसित देशों में कोरोना का संक्रमण बेकाबू होने की प्रमुख वजह यही हो सकती है क्योंकि जीवन शैली और तकनीक के चलते यूरोपीय, अमेरिका आदि देशों में लोग ज्यादा शारीरिक श्रम नहीं करते हैं। जिसके कारण वहां संक्रमण बेकाबू भी हुआ।
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