त्रिजटा नामक राक्षसी
पं. प्रदुम्न जी महाराज, मुढ़ीपार
'हमसफर मित्र'।
जय श्रीराम ,,,
श्री राम चरित्र में कथा आता है ,,,,त्रिजटा नाम राक्षसी एका ,, रामचरण रति निपुन विवेका,,,, सूंदर कांड दोहा नंबर 10 चौपाई 1 ,, त्रिजटा में तीन जटा थी साहब इसीलिये उसे त्रिजटा कहा जाता है,,, 1 रति ,2 निपुण ,3 विवेका ,, मतलब ये श्री राम जी के चरणों मे इतने तत्तलीन थी कि इनकी पहली जटा 1 , श्री राम जी कि चरणों मे रति बहुत थी 2 इनकी भक्ति ऐसी थी निपुन 3 और रति तथा निपुन से काम बनने वाले नही है उसमें विवेक भी होने चाहिए जो त्रिजटा के पास थी ।
जय श्री राम।
पंडित श्री प्रदुम्न जी महराज मुढ़ीपार बिल्हा ९९२६२७३७७२
No comments:
Post a Comment