लोककथा -
पांच असमर्थ
'हमसफर मित्र'।
बहुत समय पहले की बात है। पांच असमर्थ और दिव्यांग लोग एक जगह इकट्ठा हुए। वे सभी अपनी जिंदगी से बेहद दुखी थे। उन्हें भगवान से शिकायत थी कि उन्हें दूसरों की तरह उन्हें समर्थ नहीं बनाया। उनका कहना था कि यदि भगवान उन्हें समर्थ बनाते तो वे बहुत परमार्थ करते। दृष्टिहीन व्यक्ति ने कहा यदि मेरी आंखें होती तो मैं जहां कहीं भी कुछ बुरा होते हुए देखता तो मैं उसे तुरंत सुधारने में लग जाता है। पैरों से लाचार व्यक्ति ने कहा यदि मेरे दोनों पैर सलामत होते तो मैं दौड़ - दौड़ कर दूसरों की भलाई के काम करता। निर्बल ने कहा यदि मेरे पास शक्ति होती तो मैं अत्याचारों को ऐसा सबक सिखाता कि वे फिर किसी पर जुल्म करने की सोच भी नहीं पाते। निर्धन ने कहा मेरे पास धन होता तो मैं दीन दुखियों की सेवा में अपना सर्वस्व समर्पित कर देता। मूढमति ने कहा यदि भगवान ने मुझे बुद्धि दी होती तो मैं संसार में ज्ञान की गंगा बहा देता।वरुण देव उनकी बातें सुन रहे थे। उनकी सच्चाई को परखने के लिए उन्होंने वरदान दिया और पांचों व्यक्तियों को उनकी इच्छित वस्तु मिल गई। लेकिन परिस्थिति बदलते ही उनके विचार भी बदल गए। अब दृष्टिहीन सुंदर वस्तुओं को देखने में ही लगा रहता था और अपने इतने दिन की अतृप्ति बुझाता था। पैर से लाचार सैर-सपाटा के लिए निकल पड़ा। निर्धन को धन मिलते ही अपने लिए संपत्ति जमा करने में लग गया। निर्बल ने बल हासिल होते ही दुसरों पर आतंकित करना शुरू कर दिया। मूढमति विद्यान बनते ही अपनी चतुरता के बल पर दुनिया को उल्लू बनाने में लग गया।
कई दिनों बाद वरुण देव का उधर से दोबारा गुजरना हुआ। उन असमर्थो की प्रतिज्ञा निभी या नही, यह देखने के लिए वे रुक गया। पता चला कि वे अपनी-अपनी स्वार्थ - सिद्धि में लगे हुए थे। वरुण देव ने खिन्न होकर उन्हें दिये वरदान वापस ले लिए। पांचों फिर जैसे के तैसे हो गये। अब उन्हें अपने संकल्प याद आए और वे पछताने लगे कि उन्होंने पाये हुए सुअवसर को इस प्रकार प्रमाद में क्यों खो दिया। पर अब समय निकल चुका था।
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