प्रेरक प्रसंग
गुण से विद्वान का पहचान होती है
मनुष्य के पहनावे से यह ज्ञात नहीं किया जा सकता है कि वह अधिक विद्वान होंगे। कभी-कभी अर्धवस्त्रों परिधान में आए व्यक्ति उससे कहीं अधिक ज्ञानी हो सकती हैं।
एक बार एक राजा ने अपनी सभा में विद्वानों को आमंत्रित किया। विभिन्न क्षेत्र से विद्वान आए। राजा एक विद्वान के पहनावे से प्रभावित हुआ और उसने अपने समीप आसन पर बैठाया। एक-एक कर विद्वानों ने भाषण दिया। अंत में एक ऐसा विद्वान मंच पर आया जो पुराने वस्त्र पहने हुए था। उसका भाषण सुनकर राजा भी उसके विद्वता से बहुत प्रभावित हुआ। राजा ने उसका बहुत सम्मान किया यहां तक कि राजा उसे द्वार तक छोड़ने गए। राजा के सलाहकार ने पूछा, महाराज, जिस विद्वान को आपने आसन के समीप बिठाया उसे आप छोड़ने द्वार तक नहीं गए लेकिन दुसरे को द्वार तक छोड़ने गए। इसका कोई कारण है क्या?
राजा ने उत्तर दिया कि विद्वान होना किसी के मस्तक पर नहीं लिखा होता है। मैंने उसके सुंदर पहनावे को देखकर उसका मान-सम्मान किया। जब तक कोई व्यक्ति नहीं बोलता तब तक उसके वस्त्रों की चमक-दमक से उसके बड़ा होने का अनुमान लगाया जाता है। उस विद्वान का भाषण साधारण था लेकिन जब साधारण दिखने वाले उस विद्वान ने बोलना शुरू किया तो मैं उसके गुणों से बहुत अधिक प्रभावित हुआ जिसकी वजह से जाते समय उसे द्वार तक छोड़ने गया। सभा में सभी व्यक्ति कहने लगे, 'आते वस्त्रों का और जाते गुणों का सम्मान होता है।
साभार
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