काला_धागा और ताबीज_के_रहस्य??
*********************************आज के दौर में अंधविश्वास काफी कम हो चुकी है, फिर भी कुछ लोग आज भी काला धागा पैरों पर बांधते है जो अब फैशन का हिस्सा बन गया है परंतु इसके पीछे की सच्चाई चौंकाने वाली है।
कालांतर में पूरा देश छुआछूत और अंधविस्वास में पूरी तरह जकड़ा हुआ था। वर्ण और जाति के नाम से लोगों को पहचाना जाता था। शूद्र (OBC) और अति शूद्र (ST, SC),लाचारी, बीमारी और शोषण को अपनी नियति और किस्मत मान चुके थे, बीमार होने पर कोई इलाज नहीं करता था और उन्हें तड़प तड़प के मरना पड़ता था ।
प्रकृति किसी से भेदभाव नहीं करती कुछ शूद्रों के घर अच्छे रंग रूप के बच्चे बच्चियां पैदा हो जाते थे और ऊँची जाति में ख़राब रंगरूप के बच्चे हो जाते थे । इन सबका पहचान करना कठिन होता था ।वे आपस में खेलने लगते थे । ऐसे में अगर देख लिया जाये कि किसी निची जाति का बच्चा ऊँचे कुल के बच्चे के साथ खेल रहा हैं तो उन्हें तुरंत ही दंड दिया जाता था ।
इसलिये उच्च वर्ण ने तरकीब निकाली कि जो शूद्र बच्चे हैं उन्हें काला धागा हाँथ, पैर, कमर, और गले में पहनाया जाये।
धीरे-धीरे नीची जातियों ने इस काले धागे को पूरी तरह अपना लिया और इसमे जानवरों के दांत ,हड्डी या पेड़ पौधे के जड़ को ताबीज की तरह बांध कर पहनना शुरू कर दिया।
ये सब गुलामी का प्रतीक हैं जो आज भी खून में बसा हुआ हैं। ये गुलामी इस कदर दिमाग और डीएनए तक घुस चुकी हैं कि इन्हें अब डॉक्टरी दवाई से ज्यादा इस गुलामी के प्रतीक काला धागा और ताबीज में भरोसा हैं। अगर आज भी आप इन्ही सब चीजों पे विश्वास करते हैं तो सम्भल जायें ये मानसिक गुलामी हैं।
पहले इलाज का अभाव था समाज के कुछ गलत तत्वों ने जादू टोना के द्वारा इलाज का लालच देना शुरु किया और इन्हे मजबूर हो कर इन जादू टोना पे भरोसा करना पड़ा ,पंरतु आज ये मजबूर नहीं हैं फिर भी जादू- टोना,कालाधागा, ताबीज, हड्डी, राख, जड़, ने मानसिक गुलाम बना रखा हैं यही आपके तरक्की के रास्ते के अड़चन हैं जो आपके बच्चों और परिवार को आगे बढ़ने से रोक रही हैं।
* नोट- आज इस गुलामी के प्रतीक को लोग फैशन की तरह इस्तेमाल करने लगे हैं।
साभार फेसबुक✍️
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