गजल।।
हरा भरा है चमन यूं बहार आई है।
जैसे धरती पे कोई हूर उतर आई है।।
जानी पहचानी सी खूशबू है कहीं वो तो नही।
उनसे मिलके ए हवा मेरे नगर आई है।।
दिल की हसरत है तुम्हें पास आके देख सकूं।
तेरी यादों की तड़प और उभर आई है।।
हम दिल की बात जुबां से उनसे कह ना सके।
मेरी आँखों में चमक और निखर आई है।
सुहानी शाम सरोवर में उतरता सूरज।।
साफ पानी में परछाईं नजर आई है।।
बांस के झुंंड परिदों की फुदकती टोली।
मीठी कलरव की स्वर लहरी फ़जर आई है।।
कवि - एम.एल तिवारी, बिल्हा, वार्ड नं पांच, बिलासपुर, (छ.ग)
हरा भरा है चमन यूं बहार आई है।
जैसे धरती पे कोई हूर उतर आई है।।
जानी पहचानी सी खूशबू है कहीं वो तो नही।
उनसे मिलके ए हवा मेरे नगर आई है।।
दिल की हसरत है तुम्हें पास आके देख सकूं।
तेरी यादों की तड़प और उभर आई है।।
हम दिल की बात जुबां से उनसे कह ना सके।
मेरी आँखों में चमक और निखर आई है।
सुहानी शाम सरोवर में उतरता सूरज।।
साफ पानी में परछाईं नजर आई है।।
बांस के झुंंड परिदों की फुदकती टोली।
मीठी कलरव की स्वर लहरी फ़जर आई है।।
कवि - एम.एल तिवारी, बिल्हा, वार्ड नं पांच, बिलासपुर, (छ.ग)
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